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बाजार को यह फैसला सुनाने में जरा भी देर नहीं लगी कि स्विस कंपनी होल्सिम (Holcim) ने भारतीय बाजार में अपनी दो कंपनियों - अंबुजा सीमेंट और एसीसी की इक्विटी संरचना के पुनर्गठन का जो खाका पेश किया है, वह इनके अल्पसंख्यक शेयरधारकों के फायदे में नहीं है। नतीजा सामने है, अंबुजा सीमेंट के आम शेयरधारकों में भगदड़ मची है और यह शेयर आज सुबह से ही 12% से ज्यादा के नुकसान पर दिख रहा है। कमजोरी एसीसी के शेयर में भी है, पर अंबुजा सीमेंट जितनी नहीं। मतलब यह कि बाजार के मुताबिक होल्सिम-एसीसी-अंबुजा सीमेंट का नया ढाँचा एसीसी के लिए भी फायदेमंद नहीं है। फायदा केवल होल्सिम के खाते में जाता दिख रहा है।
यह बात और पहलू सामने लाती है। अगर किसी कंपनी पर एमएनसी ठप्पा लगा है तो कतई न सोचें कि वह आम शेयरधारकों का ख्याल रखने में बाकी भारतीय कंपनियों के मुकाबले बेहतर होगी। स्वार्थ-सिद्धि प्रमोटर स्वभाव है, चाहे वह प्रमोटर देशी हो या विदेशी।
होल्सिम ने जो नयी संरचना बनायी है, पहले उसे जरा समझ लें। इसकी मोटी बात यह है कि अंबुजा सीमेंट में होल्सिम की हिस्सेदारी मौजूदा 50.01% से बढ़ कर 61.3% हो जायेगी। साथ में अंबुजा सीमेंट एसीसी में होल्सिम की 50.1% हिस्सेदारी खरीद लेगी। यानी एसीसी की जो बहुमत हिस्सेदारी अभी सीधे होल्सिम के पास है, वह अब अंबुजा सीमेंट के हाथों में चली जायेगी। इस तरह एसीसी अब अंबुजा सीमेंट की सहायक कंपनी बन जायेगी। पहले एसीसी और अंबुजा सीमेंट दोनों सीधे-सीधे होल्सिम की सहायक कंपनियाँ थीं।
इस लेनदेन को पूरा करने के लिए अंबुजा सीमेंट होल्सिम इंडिया में 24% हिस्सेदारी 3500 करोड़ रुपये में खरीदेगी। यानी अंबुजा सीमेंट के पास मौजूद नकदी स्विस कंपनी होल्सिम के पास चली जायेगी। इसके बाद अंबुजा सीमेंट में होल्सिम इंडिया का विलय होगा, लेकिन यह विलय शेयरों की अदला-बदला से होगा।
इस पूरे सौदे के फायदों के बारे में कहा जा रहा है कि इसके चलते ज्यादा आपसी तालमेल के जरिये 900 करोड़ रुपये के फायदों की संभावनाएँ खुलेंगी। कहा जा रहा है कि एसीसी और अंबुजा की संयुक्त उत्पादन क्षमता बढ़ कर सालाना 5.8 करोड़ टन हो जायेगी। लेकिन ये आपसी तालमेल और संयुक्त उत्पादन क्षमता का फायदा मौजूदा इक्विटी संरचना में क्यों नहीं मिल रहा और नयी संरचना में कैसे मिलने लगेगा? आखिर इस समय भी होल्सिम मूल कंपनी है और सहायक कंपनियों के रूप में वह अंबुजा सीमेंट और एसीसी दोनों पर नियंत्रण रखती है?
इसलिए बेहतर आपसी तालमेल और ज्यादा संयुक्त उत्पादन क्षमता के तर्क में कोई वजन नहीं है। आखिर एसीसी कागजों पर होल्सिम की सहायक कंपनी रहने के बदले अंबुजा सीमेंट कंपनी की सहायक कंपनी बन जायेगी तो क्या एसीसी और अंबुजा सीमेंट की संयुक्त उत्पादन क्षमता बढ़ जायेगी?
होल्सिम के लिए यह आरोप नकार पाना मुश्किल होगा कि उसने यह सारी कवायद अंबुजा सीमेंट के खातों में मौजूद 3700 करोड़ रुपये की नकदी का लगभग पूरा हिस्सा (3500 करोड़ रुपये) अपने खाते में ले जाने के लिए की है। साथ ही अंबुजा सीमेंट होल्सिम को अपने 58.4 करोड़ शेयर जारी करेगी जिससे उसका इक्विटी आधार 28% फैल जायेगा। इसके चलते कंपनी की प्रति शेयर आय (ईपीएस) में कमी आयेगी।
आम निवेशकों को होल्सिम के इस फैसले से सीधे तौर पर नुकसान हो रहा है। शेयर भावों में गिरावट से वह नुकसान स्पष्ट दिख रहा है। अनौपचारिक बातचीत में कई विश्लेषक तो इसे निवेशकों से धोखेबाजी तक की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन क्या निवेशकों के पास कोई रास्ता है? आम तौर पर इक्विटी पुनर्गठन योजनाओं के लिए उच्च न्यायालय से मंजूरी लेनी पड़ती है। अगर अल्पसंख्यक शेयरधारक समूह बना कर इस पुनर्गठन योजना का विरोध उच्च न्यायालय और सेबी के सामने करें तो संभवतः वे अपने हितों की सुरक्षा कर पायेंगे। लेकिन भारत में ऐसे मामलों में निवेशक-सक्रियता का रुझान अब तक तो नहीं दिखा है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 25 जुलाई 2013)
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