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राजीव रंजन झा : कल भारतीय शेयर बाजार ने फिर से नये रिकॉर्ड स्तरों को चूमा, लेकिन तुरंत मुनाफावसूली की चपेट में भी आ गया।
यह मुनाफावसूली इस बात के बावजूद उभरी कि गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी के लिए साल भर में 7600 का नया लक्ष्य सामने रख दिया है। यह लक्ष्य फरवरी की तलहटी से इस समय करीब 10% ऊपर होने के बावजूद मौजूदा स्तर से लगभग 17% ऊपर का है। मगर इस ऊँचे लक्ष्य से पैदा जोश कल बेहद क्षणिक साबित हुआ और बाजार कल सुबह की सारी बढ़त गँवा बैठा। आज सुबह भी सेंसेक्स और निफ्टी एक दायरे में सपाट रुझान के साथ चल रहे हैं। तो क्या गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट को बाजार ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी?
दरअसल इस रिपोर्ट में दिये गये लक्ष्य के साथ जो शर्तें जुड़ी हैं, उन्हें बाजार ने पहले ही काफी भुना लिया है। गोल्डमैन सैक्स पहली विदेशी ब्रोकिंग फर्म नहीं है, जिसने भारतीय बाजार के बारे में अपनी राय बदली हो। इससे पहले बीएनपी पारिबा और डॉयशे बैंक की ओर से भी ऐसी ही राय सामने आ चुकी है। इससे आगे और ज्यादा भुनाने के लिए जरूरी है कि वे शर्तें पूरी होती दिखायी दें, जिनके आधार पर यह रिपोर्ट बनायी गयी है।
अपनी 14 मार्च की रिपोर्ट में गोल्डमैन सैक्स ने भारतीय शेयर बाजार की रेटिंग मार्केटवेट से बढ़ा कर ओवरवेट कर दी है। इसका मतलब यह है कि गोल्डमैन सैक्स भारतीय शेयर बाजार को इस समय खरीदारी के लायक मान रहा है। आप चाहें तो ताज्जुब कर सकते हैं कि जब निफ्टी 5100 पर था या जब 5900 पर था, उस समय यह बाजार खरीदारी के लायक क्यों नहीं था और इस समय 6500 के निफ्टी पर यह खरीदारी के लायक कैसे बन गया? किस्सा वही है - चुनाव। जब निफ्टी 5100 पर था, उस समय यह साफ नहीं था कि चुनाव के बाद की तस्वीर कैसी होगी। अब यह तस्वीर लोगों को कुछ साफ दिखने लगी है, इसलिए ऊपर के लक्ष्य भी दिख रहे हैं और बाजार खरीदारी के लायक भी लग रहा है।
इसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संसदीय चुनावों के नतीजे का असर आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया पर भी होगा। पिछले चुनावों से पहले भारतीय बाजार की चाल के विश्लेषण से इसने कहा है कि अभी चुनाव-पूर्व तेजी और आगे बढ़ने की उम्मीद है।
गोल्डमैन सैक्स की राय बदलने के पीछे केवल चुनावी संभावनाएँ ही हों, ऐसा नहीं है। इसने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था में चक्रीय बदलावों (साइक्लिकल ऐडजस्टमेंट) के चलते बाहरी खतरों का जोखिम घटा है। इशारा सरकारी घाटे और चालू खाते के घाटे की तरफ है, जिनमें सुधार के चलते अंतरराष्ट्रीय कारणों से रुपये में कमजोरी आने का जोखिम घटा है। इसका मानना है कि कंपनियों की आमदनी के अनुमानों को घटाने का चक्र पूरा हो चुका है। विकास दर के बारे में भी अनुमान है कि दूसरी तिमाही से घरेलू अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुधार दिखने लगेंगे। दूसरी तिमाही से विकास दर में सुधार की उम्मीद जतायी गयी है।
लेकिन इसने साथ में यह जोखिम भी माना है कि अगर चुनावों के बाद अनिर्णायक फैसला सामने आया तो इसके चलते भारतीय बाजार में किया गया निवेश वापस लौटने लगेगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 19 मार्च 2014)
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