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राजीव रंजन झा
दुबई संकट को वैश्विक संकट की दूसरी लहर बताया जाने लगा है।
लेकिन इस संकट को अभी से इतना बड़ा कह देना जल्दबाजी रहेगी। दुबई के इस आर्थिक संकट ने भले ही गुरुवार से असर दिखाना शुरू किया हो, भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की भूमिका पहले ही बन चुकी थी। वायदा कारोबार के सेट्लमेंट से ठीक पहले भारतीय बाजार बेहद सीमित दायरे में बँधते नजर आये थे। यह अपने-आप में एक संकेत होता है कि बाजार खुद को किसी बड़ी हलचल के लिए तैयार कर रहा है। यह बड़ी हलचल कल गुरुवार को वायदा कारोबार के सेट्लमेंट के दिन ही शुरू हो गयी और आज शुक्रवार को भी जारी रही।
बाजार के इस भूकंप का केंद्र तो दुबई में है, लेकिन लोगों को इंतजार है कि अमेरिकी बाजार में इसके झटके कितने गंभीर रहते हैं। भारतीय बाजार में तो निवेशकों और कारोबारियों ने अमेरिकी बाजार की प्रतिक्रिया के इंतजार में ही उथल-पुथल भरे ये दो दिन निकाले हैं। कल गुरुवार को थैक्सगिविंग डे के चलते अमेरिकी बाजार बंद थे। लेकिन यूरोपीय बाजारों में तेज गिरावट ने तमाम एशियाई बाजारों को भी डराया और भारतीय बाजार उससे बच नहीं सके।
फिर आज शुक्रवार को तमाम एशियाई बाजार फिर से पिटे रहे। हांग कांग के सूचकांक हैंग सेंग ने तो 1076 अंक गँवा दिये हैं, 4.84% का नुकसान झेला है इसने। जापान के निक्केई ने भी 302 अंक यानी 3.22% की गिरावट सही है। दक्षिण कोरिया का कॉस्पी भी 4.7% टूटा है। ये सभी एशियाई बाजार मोटे तौर पर दिन के सबसे निचले स्तरों के करीब ही बंद हुए। आखिरी घंटों में इन सबसे में गिरावट बढ़ी। लेकिन उनसे अलग भारतीय बाजार ने अपने निचले स्तरों से शानदार वापसी की है। इस वापसी की रफ्तार भी गजब की रही। लगता तो है कि इस तेज वापसी में भी कुछ संकेत हैं।
एक अच्छी वापसी यूरोपीय बाजारों में भी दिख रही है। इन पंक्तियों को लिखने के समय अमेरिकी बाजार के खुलने का इंतजार है और यूरोपीय बाजारों में शाम होने को आ रही है, यानी उनके बंद होने का समय करीब है। शुरुआती कारोबार में 1-1.5% गिरावट दिखाने वाले तीनों प्रमुख यूरोपीय बाजार इस समय हरे निशान में आ चुके हैं।
अमेरिकी बाजार का कमजोर खुलना तो लगभग तय माना जा रहा है। बुधवार से अब तक दुनिया भर के शेयर बाजार अच्छी खासी गिरावट झेल चुके हैं और कल बंद होने के चलते अमेरिकी बाजार पर उसका असर नहीं पड़ा। वह असर आज पड़ने की बारी है। लेकिन देखने वाली अहम बात यही होगी कि असर कितना रहता है। देखना होगा कि शुरुआती चोट के बाद क्या अमेरिकी बाजार भी वापस सँभल जाते हैं या दबाव बना रह जाता है। (शेयर मंथन, 27 नवंबर 2009)
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