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टेलीकॉम : सोने की मुर्गी हलाल की मीडिया और अदालत ने!

राजीव रंजन झा : संचार (टेलीकॉम) क्षेत्र को किसने मार डाला, यह सुन लीजिए संचार मंत्री कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) से।

माननीय मंत्री जी बता रहे हैं कि सरकार को 2जी घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये का घाटा होने के सीएजी के अनुमानित आँकड़े पर फैली सनसनी ने यह कारनामा किया। जब मंत्री जी ने यह फैसला सुना ही दिया कि इस हत्या का अपराधी कौन है तो इस हत्या में शामिल अपराधियों के खिलाफ सजा भी सुना दें सिब्बल जी। किस-किस पर सनसनी फैलाने का इल्जाम डालेंगे आप? सबसे पहले तो सर्वोच्च न्यायालय को कठघरे में खड़ा कीजिए। ए. राजा (A. Raja) ने 2जी स्पेक्ट्रम और लाइसेंस आवंटन किस तरीके से किया, यह बात तो उस समय सरकार में प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से लेकर शायद हर मंत्री को, और विपक्ष के भी तमाम लोगों को मालूम थी। अरुण शौरी (Arun Shourie) संसद की लॉबी में खुद प्रधानमंत्री को आगाह कर चुके थे कि राजा कैसी गड़बड़ियाँ कर रहे हैं। लेकिन बात सरकार से लेकर विपक्ष तक सबको मालूम होने के बावजूद हंगामा तभी मचा जब कुछ लोग यह मसला सर्वोच्च न्यायालय में ले गये, जब सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी कमान में जाँच शुरू करायी। सीएजी (CAG) की रिपोर्ट ने तो सर्वोच्च न्यायालय में चल रही कार्रवाई के दौरान आग में घी का काम किया। इसलिए सिब्बल साहब, आपका असली अपराधी तो सर्वोच्च न्यायालय है। जब तक आप मंत्री हैं, तब तक आपका अभिमान शायद आपको सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी अपना फैसला सुनाने का हक देता है। इसलिए सुना दीजिए, देश सुन रहा है।
संचार मंत्री ने हाल में मीडिया से बातचीत में बार-बार दोहराया है कि 1.76 लाख करोड़ के आँकड़े से पैदा सनसनी ने सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मार डाला। जब उनसे पूछा जाता है कि इसका इल्जाम किस पर है तो वे कहते हैं कि परिस्थितियों पर। लेकिन इसके बाद वे जो कहते हैं, उससे स्पष्ट है कि वे किस पर इल्जाम डालना चाहते हैं। वे कहते हैं कि सीएजी को अपनी समझ से जो ठीक लगा, उतने नुकसान का अंदाजा उन्होंने सामने रखा। मीडिया ने इस अनुमानित घाटे को सनसनीखेज बना दिया। मीडिया की पैदा की इस सनसनी के चलते आखिरकार न्यायालय ने एक आदेश दिया, जिससे 122 लाइसेंस रद्द हो गये। तो सिब्बल साहब, मुख्य अभियुक्त है मीडिया, और सह-अभियुक्त है न्यायालय। ठीक है ना!
फरवरी 2012 के आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने सबसे ज्यादा पन्ने इस बात पर खर्च किये थे कि ए राजा ने कैसे नियमों को उलटा-पलटा और तोड़ा-मरोड़ा, न कि इस बात पर कि सीएजी का 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान सही है या नहीं। आज कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम (P Chidambaram) ऐसा आभास देना चाहते हैं मानो 2जी घोटाले जैसी कोई घटना घटी ही नहीं। तो फिर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले के जिन पन्नों पर ए. राजा की कारगुजारियों के किस्से लिखे हैं, उन पन्नों का अब क्या करेंगे आप?
माननीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने फैसला सुनाया है कि 2जी घोटाला एक मिथ यानी काल्पनिक बात है। इस काल्पनिक बात पर फरवरी 2012 में 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द कर देने के अपराध के लिए आप कौन-सी सजा सुना रहे हैं सर्वोच्च न्यायालय को? साथ में सजा सुना दीजिए सीएजी को। सजा सुनाइये उन सभी लोगों और संगठनों को जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में वह मुकदमा लड़ा था। इन सबसे पहले फाँसी दे दीजिए मीडिया को। और साथ में बाइज्जत बरी कर दीजिए ए राजा, कनिमोई और उन तमाम लोगों को, जिन पर आप की ही सीबीआई (CBI) ने (अदालती अंकुश के चलते मन मार कर) मुकदमे चलाये हैं। दरअसल आपके इस फैसले के बाद हम तो इंतजार कर रहे हैं उस पल का, जब ए राजा वापस मंत्रिमंडल में अपना पावन स्थान दोबारा सुशोभित करेंगे।
मंत्रीगण सवाल उठा रहे हैं कि अगर घाटे का सीएजी का आँकड़ा सही था तो आज वे 1.76 लाख करोड़ रुपये कहाँ गये? आपके इस सवाल का जवाब जरूर दिया जा सकता है, अगर आप 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकारी खजाने में आयी रकम उन कंपनियों को वापस कर दें। आखिर सिब्बल साहब ने खुद ही कहा है ना कि 3जी स्पेक्ट्रम से सरकार को पैसा तो मिला, लेकिन ग्राहकों को सेवाएँ नहीं मिली हैं। कौन लेगा इतनी महँगी सेवाएँ? और जब आपने कंपनियों को इतना महँगा 3जी स्पेक्ट्रम दिया, तो 3जी सेवाएँ सस्ती कैसे होंगी?
इतना समय तो नहीं बीत गया है 3जी की नीलामी पूरी होने के बाद, कि आप उस समय अतिरिक्त स्पेक्ट्रम के लिए परेशान भूखी कंपनियों के सामने नीलामी में एकदम थोड़ा-सा स्पेक्ट्रम रखने की अपनी चालबाजी भूल जायें? उस समय नीलामी से ठीक पहले किसने पैदा की थी स्पेक्ट्रम की कृत्रिम कमी? उस नीलामी से ठीक पहले 2जी स्पेक्ट्रम की उपलब्धता और अतिरिक्त शुल्क को लेकर अनिश्चितता का माहौल किसने बनाया था? अगर आपने उस समय अपने पास उपलब्ध पर्याप्त स्पेक्ट्रम उस नीलामी में रखा होता, तो क्या 3जी की बोलियाँ तब भी वैसे आसमानी भावों पर लगतीं? टेलीकॉम क्षेत्र को सनसनी ने जरूर मारा, लेकिन वह 1.76 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित घाटे से पैदा सनसनी नहीं थी, बल्कि 3जी की आसमानी बोलियों से पैदा होने वाली सनसनी थी, जिसका बोझ इस देश की प्रमुख मोबाइल कंपनियाँ अब भी ढो रही हैं।
सीएजी ने सरकारी खजाने को 2जी स्पेक्ट्रम में होने वाले नुकसान का अनुमान 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में मिली रकम के आधार पर लगाया था। अगर मंत्रीगण इस अनुमान को खारिज कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि सरकार 3जी नीलामी में मिली रकम भी उन कंपनियों को लौटा दें। चाहें तो 3जी स्पेक्ट्रम की भी नये सिरे से नीलामी करा लें। आज के बाजार की हकीकत पता चल जायेगी।
सिब्बल जी, कहाँ गये 1.76 लाख करोड़ रुपये, इस सवाल का जवाब आपको उन सैंकड़ों आवेदकों से पूछना चाहिए जो 2008 में 2जी स्पेक्ट्रम पाने की कतार में खड़े थे और अब नदारद हैं। उनसे पता करें ना कि तब कौन-सा लड्डू पाने की कतार में वे खड़े थे और आज वह लड्डू कहाँ गायब हो गया? तब क्या लंगर का प्रसाद बँट रहा था?
ताजा 2जी नीलामी की नाकामी का ठीकरा संचार मंत्री सीधे-सीधे सर्वोच्च न्यायालय के सिर पर फोड़ना चाहते हैं। मंत्री जी कह रहे हैं कि हम सर्वोच्च न्यायालय के एक अंतिम आदेश से बँधे थे। जब आप इतना खुल कर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को अपनी नाकामी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो यह भी बता दीजिए कि अदालत के आदेश की किस बात ने आपको बाँध रखा था? अदालत ने आपको केवल यह कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन खुली नीलामी से हो। क्या अदालत ने आपको यह भी आदेश दिया था कि आप 14,000 करोड़ रुपये का आसमानी आरक्षित मूल्य (रिजर्व प्राइस) तय करें इस नीलामी में?
सरकार कीमत और प्रक्रिया के बीच घालमेल पैदा करके सबको भरमाना चाहती है। अदालत का कहना है कि आप उचित प्रक्रिया से पारदर्शी ढंग से देश के कीमती प्राकृतिक संसाधन किसी को दें। सरकार ऐसा आभास पैदा कर रही है मानो अदालत ने कहा हो कि आप फलाँ रकम से कम कीमत में किसी को स्पेक्ट्रम नहीं दे सकते।
जब उनसे पूछा जाता है कि क्या 2जी की अगली नीलामी में वे आरक्षित मूल्य घटायेंगे, तो वे कहते हैं कि समय आने पर उचित फैसला होगा। जब उनसे पूछा जाता है कि क्या इस नीलामी में आरक्षित मूल्य 14,000 करोड़ रुपये के बदले कम रखना बेहतर नहीं होता, तो वे कहते हैं कि ऐसा करने पर सरकार को ज्यादा पैसे नहीं मिलते और यह मिट्टी के मोल स्पेक्ट्रम बाँटने जैसा होता।
सिब्बल जी, एक तरफ आप नीलामी की ऊँची कीमत के चलते मिली नाकामी का ठीकरा सीएजी और मीडिया से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के सिर पर फोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि कीमत नीचे रखना भी ठीक नहीं होता। साफ-साफ बताइये ना कि आप कहना क्या चाहते हैं? दरअसल सिब्बल जी सरकार के माथे पर लगे कलंक को धोने की कोशिश के साथ-साथ पूरे देश को लगातार भ्रम में रखना चाहते हैं।
अदालत ने तो आपसे कहा था कि जिन 122 लाइसेंसों को रद्द किया गया है, उनका सारा स्पेक्ट्रम आप नीलाम करें। आपने इन रद्द लाइसेंसों से खाली होने वाले स्पेक्ट्रम का केवल एक छोटा टुकड़ा इस नीलामी में क्यों रखा? कल ही खुद सर्वोच्च न्यायालय ने आपसे यह सवाल पूछ लिया है। सबको इंतजार रहेगा कि आप सर्वोच्च न्यायालय को इस सवाल के जवाब में अपना कौन-सा “फैसला” सुनायेंगे।
अगर सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 2012 के फैसले में प्रधानमंत्री पद का जरा लिहाज नहीं रख लिया होता, तो शायद इस समय केंद्रीय मंत्रियों के ऐसे बोल-बचन सुनने को नहीं मिलते। सर्वोच्च न्यायालय ने तब अपने फैसले में यह तो देखा और लिखा कि ए. राजा ने प्रधानमंत्री की बातें अनसुनी करके अपनी मनमानी की। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर नहीं दिया कि प्रधानमंत्री ने अपनी अनसुनी करने वाले मंत्री को सख्त आदेश दे कर काबू में क्यों नहीं रखा? जब प्रधानमंत्री की आपत्ति पर ए. राजा ने फौरन उनकी आपत्ति को दरकिनार करने वाला जवाब लिख भेजा, और उसके बाद प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं कहा, तो इसे राजा की सफाई पर प्रधानमंत्री के संतुष्ट होने के रूप में क्यों नहीं देखा जाये? लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पहलू पर भी जोर नहीं दिया। यह देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पद को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का लिहाज था। अगर सर्वोच्च न्यायालय ने तब इस बारे में एक वाक्य भी लिख दिया होता तो बीते 9-10 महीनों का हमारा राजनीतिक इतिहास कुछ और ही होता।
टेलीकॉम क्षेत्र की सोने की मुर्गी हलाल हो गयी है, इस बात में तो कोई संदेह नहीं। सिब्बल जी, आपने यह जो जुमला उछाला है, उससे महीनों-सालों पहले मैंने कई बार यह बात उठायी। इस मुर्गी के कत्ल का इल्जाम तो दरअसल सरकार पर है। आप एक कुशल वकील की तरह इल्जाम किसी और पर उछाल देना चाहते हैं। लेकिन जाने किस बौखलाहट में आपने यह इल्जाम अदालत पर ही उछाल दिया है। याद रखिए, उस अदालत में आपको आगे भी अनगिनत बार हाजिरी लगानी है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 20 नवंबर 2012)

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