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जब नूरा-कुश्ती ही है तो कोऊ नृप होई हमें का हानि

राजीव रंजन झा : संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों प्रमुख दलों के नेताओं की बातें सुन कर बरबस यह पंक्ति याद आ गयी कि कोई नृप होई हमें का हानि।

बात खुदरा (रिटेल) क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की हो रही थी। कांग्रेस कह रही है कि सदन में चर्चा कर लीजिए। भाजपा कह रही है कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार अहंकार दिखा रही है। हुजूर, जब आप दोनों चर्चा के लिए तैयार हैं तो कम-से-कम चर्चा होने न होने पर कैसा विवाद? सदन में बैठिये, अपनी-अपनी बात रखिये। लेकिन ऐसा होगा नहीं। भाजपा चर्चा से भागेगी। कांग्रेस मतदान से भागेगी।
भाजपा ने आज तक यह नहीं बताया कि 2004 के चुनावी घोषणा-पत्र में रिटेल एफडीआई का समर्थन करने के बाद वह 2009 में इसके विरोध में कैसे आ गयी? क्या बदला इस दौरान? कांग्रेस ने आज तक यह नहीं बताया कि एनडीए शासन के दौरान रिटेल एफडीआई पर विरोध जताने वाले डॉ. मनमोहन सिंह को आज यह इतना जरूरी क्यों लग रहा है? बीमा और पेंशन को लेकर भी दोनों दलों का यही रवैया है। दोनों का विरोध वैचारिक नहीं, रणनीतिक है। बस इतना मामला है कि हम विपक्ष में हैं तो विरोध करेंगे। इसीलिए लोग सोचने लगे हैं कि इनके बीच कोई वास्तविक विरोध नहीं है, केवल नूराकुश्ती चलती है।
अगर कांग्रेस और भाजपा आर्थिक मुद्दों पर आपसी सहमति बना कर आगे बढ़ें तो बाकी दलों का समर्थन या विरोध उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जायेगा। दोनों के बीच आर्थिक मुद्दों पर वैचारिक सहमति वाले काफी मुद्दे हैं। लेकिन सरकार भी वैचारिक टकराव वाले मुद्दों को जरा पीछे रख कर सहमति वाले मुद्दों को आगे लाने की कोशिश करती नहीं दिख रही है।
सरकार चलने-गिरने की जहाँ तक बात है, कांग्रेस खेमा इस समय यह देख कर काफी संतुष्ट होगा कि ममता बनर्जी को अविश्वास प्रस्ताव लाने भर के लिए जरूरी 50 लोकसभा सांसदों की संख्या भी नहीं जुट पा रही। इसमें खुद ममता बनर्जी के लिए भी एक संदेश है। संदेश यही है कि कोई उन्हें विश्वसनीय सहयोगी नहीं मान रहा। उन्होंने अतीत में जब चाहा एनडीए का हाथ पकड़ा, जब चाहा उसे झटक कर यूपीए का हाथ पकड़ लिया और जब चाहा यूपीए का हाथ भी झटक दिया। लेकिन इस मनमौजीपने से वे ऐसी स्थिति में आ गयी हैं, जहाँ अब कोई उनका हाथ नहीं पकड़ रहा।
राजनीतिक गलियारों में आगे जो भी राजनीतिक प्रहसन चलेगा, उस पर बाजार की नजर लगातार बनी रहेगी। घटनाक्रम के हिसाब से बाजार अच्छी-बुरी प्रतिक्रियाएँ भी देता रहेगा। लेकिन इन सबके बीच बाजार में एक अंतर्धारा इस सोच की भी चलती रहेगी कि बस उन कंपनियों का धंधा ठीक चलते रहे, जिनके शेयर में पैसा लगाना है, फिर कोऊ नृप होई हमें का हानि। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 22 नवंबर 2012)

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