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बढ़ सकता है कल्याण कार्यक्रमों का आवंटन

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिल्ली में वैश्विक आर्थिक नीति फोरम के कार्यक्रम में कहा है कि फरवरी में पेश होने वाला बजट नयी सरकार के गठन तक सरकारी खर्चों का हिसाब-किताब रखेगा।

उन्होंने कहा कि यह परंपरा के अनुरूप वोट ऑन अकाउंट (लेखानुदान) होगा। हम चुनावी वर्ष में हैं। सरकार जो बजट पेश करेगी, उसमें कोई शानदार घोषणा नहीं होगी। हमें जुलाई तक इंतजार करना होगा, जब पूरा बजट आयेगा। लोकसभा चुनाव के पहले अपने कार्यकाल के आखिरी साल में सरकार अंतरिम बजट या लेखानुदान पेश करती है। इसकी आवश्यकता इसलिए होती है कि सरकार चलाने के लिए भारत की संचित निधि से धन निकालने वास्ते संसद से मंजूरी की आवश्यकता होती है, क्योंकि चालू बजट की वैधता 1 अप्रैल से मार्च 31 तक ही होती है।
इस साल अप्रैल-मई में चुनाव होंगे। इसलिए चुनाव संपन्न होने के बाद नयी सरकार के सत्तारूढ़ होने तक देश चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसलिए लेखानुदान की आवश्यकता होती है, जो सरकार को जरूरी कामकाज चलाने के लिए धन मुहैया कराती है। आजादी के बाद से अब तक 14 अंतरिम बजट या लेखानुदान देश देख चुका है। चुनाव आयोग की आचार संहिता सत्ताधारी दल को अंतरिम बजट में कर-सुधार या कोई बड़ी योजना घोषित करने की अनुमति नहीं देता है, जिससे मतदाता प्रभावित हो सकता है और जिससे स्वच्छ चुनाव प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
अंतरिम बजट को आप मिनी बजट भी मान सकते हैं, जिसमें सत्तारूढ़ सरकार संसद में अपने व्यय, राजस्व, राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट), वित्तीय प्रदर्शन और आगामी वित्त-वर्ष के लिए अनुदान पेश करती है। लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुसार सरकार अंतरिम बजट में ऐसी कोई नीतिगत घोषणा नहीं करती है, जो पूर्ण बजट करने वाली आगामी सरकार पर वित्तीय बोझ साबित हो। लेकिन सरकार यदि लेखानुदान पेश करती है, तब किसी भी परिस्थिति में प्रत्यक्ष करों में बदलाव करने में असमर्थ होती है। लेखानुदान एक औपचारिक प्रक्रिया होती है। इसे बिना किसी विचार-विमर्श के लोक सभा पारित करती है। वित्तमंत्री सीतरमण ने कहा भी है कि यह बजट लेखानुदान होगा। इसलिए करदाताओं को किसी शानदार घोषणा की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। सरकार अंतरिम बजट के साथ आर्थिक सर्वेक्षण भी पेश नहीं करती है, जो सामान्यतः बजट से एक दिन पहले पेश किया जाता है।
पर निश्चित रूप से मोदी सरकार की कार्यशैली को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि इस अंतरिम बजट में कुछ भी बदलाव नहीं होंगे। ध्यातव्य है कि फरवरी 2019 के अंतरिम बजट में आय कर में कारगर राहत प्रदान की गयी थी। आय कर में उन बदलावों से मध्य वर्ग के तीन करोड़ करदाताओं को 23,000 करोड़ रुपये की राहत दी गयी थी। बैंक से ब्याज के लिए स्रोत पर कर कटौती (टीसीएस) की सीमा 10,000 रुपये से बढ़ा कर 40,000 रुपये की गयी थी, जिसका लाभ सभी बैंकों और डाक घर के जमाकर्ताओं को मिला था। मानक कटौती भी 40,000 से बढ़ा कर 50,000 रुपये की गयी थी। इसके साथ-साथ सामाजिक और कृषि कल्याण के ऐतिहासिक कार्यक्रमों की घोषणा की गयी थी। इसमें 12 करोड़ सीमांत और छोटे किसानों को साल में 6,000 रुपये देने के लिए 75,000 करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना शुरू की गयी और कर्ज में अतिरिक्त ब्याज सहायता दी गयी। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना शुरू की गयी।
अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि आगामी बजट में सामाजिक कल्याण, महिला, युवा और किसान संबंधी कार्यक्रमों को अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है। किसान सम्मान की राशि को बढ़ा कर 8,000 रुपये सालाना करने की उम्मीद सबसे ज्यादा व्यक्त की गयी है। युवाओं से संबंधित सामाजिक कल्याण योजनाओं को समाहित कर नयी आकर्षक योजना को अंतरिम बजट में तरजीह दी जा सकती है। पूँजी व्यय को लेकर अधिकांश नीति निर्धारक चाहते हैं कि इसके बजट आवंटन में खासी वृद्धि होनी चाहिए, विशेष कर ग्रामीण क्षेत्र में। बुनियादी ढाँचे के खर्च के लिए पिछले बजट में 10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इस खर्च की वृद्धि में सरकार कोई कोताही बरतेगी, इसकी आशंका फिजूल है। मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने के बाद भी सरकार को सामाजिक कल्याण, कृषि, युवा और महिलाओं के लिए बजट खर्च बढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी, क्योंकि राजस्व संग्रह में उम्मीद से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इससे अर्थव्यवस्था में उपभोग स्तर बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो मोदी सरकार के लिए अरसे से सिरदर्द बना हुआ है। इसके बाद भी मोदी सरकार आगामी अंतरिम बजट में राहत देने में कंजूसी बरतती है, तो माना जाना चाहिए कि वह आगामी लोक सभा चुनावों में अपनी जीत के लिए पूर्ण रूप से आश्वस्त है।
(शेयर मंथन, 31 जनवरी 2024)

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