बाजार में इस बारे में कयास लगने शुरू हो गये हैं कि 4-5 अप्रैल को इस वित्त वर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पहली बैठक में किस तरह के फैसले लिये जायेंगे।
आम राय यह बन रही है कि आरबीआई रेपो दर और रिवर्स रेपो दर को वर्तमान स्तरों पर ही बनाये रखेगा। इस समय रेपो दर 6.00% और रिवर्स रेपो दर 5.75% पर है। जानकार यह संभावना जता रहे हैं कि शायद आरबीआई इस पूरे साल के दौरान ही इन दरों में बदलाव न करे।
लेकिन दरों में बदलाव नहीं होने पर भी बाजार की नजर इस बैठक से निकलने वाले अन्य संकेतों पर रहेगी। कोटक म्यूचुअल फंड की सीआईओ - डेब्ट लक्ष्मी अय्यर का कहना है कि "एमपीसी की यह बैठक आरबीआई के पूर्वानुमानों (गाइडेंस) के लिहाज से महत्वपूर्ण रहेगी। आम धारणा है कि आरबीआई दरों को लंबे समय तक स्थिर रखेगा। सरकार के उधारी कार्यक्रम में हाल में कटौती होने के ऊपर भी बाजार यह देखेगा कि एमपीसी की प्रतिक्रिया क्या रहती है और सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर उसका नजरिया क्या है।"
लक्ष्मी अय्यर का आगे कहना है कि भले ही हमारा नजरिया यथास्थिति बने रहने का है, पर यह देखना दिलचस्प रहेगा कि घरेलू खुदरा महँगाई में कमी आने पर एमपीसी का अनुकूल रुख बनता है या नहीं, और हाल की वैश्विक घटनाओं पर उसकी प्रतिक्रिया क्या रहती है।
गौरतलब है कि आरबीआई के पिछले अनुमानों के मुताबिक 2018-19 की पहली छमाही में खुदरा महँगाई दर (CPI) 5.1-5.6% के स्तर पर और उसके बाद दूसरी छमाही में 4.5% पर रहेगी। ताजा आँकड़ों के अनुसार फरवरी 2018 में खुदरा महँगाई दर कुछ घट कर 4.4% पर रही है। इससे पहले जून 2017 में यह 1.46% के निचले स्तर तक आ गयी थी, पर वहाँ से बढ़ते हुए दिसंबर 2017 तक यह 17 महीनों के उच्चतम स्तर पर चली गयी थी।
दूसरी ओर बीती कुछ तिमाहियों में आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी बढ़ने की दर कमजोर रहने के चलते आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव भी बन रहा था। मगर 2017-18 की तीसरी तिमाही में विकास दर सुधर कर 7.2% हो गयी, जो 2017-18 की दूसरी तिमाही में 6.3% थी। लिहाजा एक तरफ जहाँ विकास दर सँभलने से दरें घटाने का दबाव कम हुआ है, तो दूसरी ओर महँगाई दर में नरमी आने से आरबीआई को अब तुरंत दरें बढ़ाने की भी जरूरत महसूस नहीं होगी। (शेयर मंथन, 30 मार्च 2018)