शेयर बाजार तो अभी मुझे कमजोर ही लग रहा है। वैश्विक स्तर पर भी कमजोरी के आसार हैं। यहाँ भी चुनावी नतीजे बाजार की पसंद के मुताबिक नहीं आने वाले हैं।
दुनिया का दस्तूर है कि बाजार जो सोचता है, उसका उल्टा होता है, चाहे यह एक शेयर की बात हो या अर्थव्यवस्था की या राजनीति की। बाजार एक उम्मीद पर चल रहा है, लेकिन उस उम्मीद का मुझे कोई खास आधार नजर नहीं आता है। लोग जो सोच रहे हैं, अगर वैसा ही होता भी है तो वह उम्मीद मौजूदा बाजार भावों में पहले से भुनायी जा चुकी है। इसलिए बाजार के ऊपर चढ़ने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है, गिरावट की आशंका ज्यादा है।
मेरा मानना है कि भारतीय बाजार अभी उचित मूल्यांकन से काफी ज्यादा महँगा हो चुका है। अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन भी गये तो उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। मुझे यह समझ में नहीं आया कि वे जो बातें कर रहे हैं, उनमें से एक भी बात होगी कैसे? आप कहते हैं कि बुलेट ट्रेन बना देंगे। बुलेट ट्रेन की लागत 13 करोड़ डॉलर यानी 800 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर आती है। आप कम-से-कम 100 किलोमीटर का तो नेटवर्क बनायेंगे ना कम-से-कम! इसके लिए 80,000 करोड़ रुपये कहाँ से आयेंगे? यह तो एक उदाहरण है। ऐसी कितनी ही बातें हैं, जिन्हें एक सीमा से बढ़ कर किया गया वादा कहा जा सकता है। केजरीवाल ने दो वादे किये थे दिल्ली में, बिजली और पानी के लिए। इन्होंने दो लाख वादे कर दिये हैं! उनके वादे पूरे हो ही नहीं सकते हैं।
आप बाजार की उम्मीदों की बात करते हैं। बाजार क्या है? बाजार का मतलब है 50 शेयर, 20 ब्रोकर और 100 एफआईआई! यही है ना! ऐसा तो है नहीं कि इस बाजार में पाँच करोड़ भारतीय हैं। बस चार सौ लोगों का बाजार है। बाजार इन नतीजों को आँकने में केवल गलती नहीं कर रहा, बल्कि इतने बेबुनियाद तरीके से समझ रखा है कि लोगों की समझ पर तरस आती है। वे विश्लेषक हैं ना कि सामान्य व्यक्ति। उन्हें आँकड़ों पर चलना चाहिए, विश्लेषण करना चाहिए।
लोग मान रहे हैं कि मोदी के आने पर पता नहीं क्या-क्या हो जायेगा। मेरे हिसाब से वे ऐसा कुछ नहीं कर पायेंगे। केवल बातें हैं। अगर इस पूरी बहस में मुझे एक तरफ बैठना हो तो मैं कहूँगा कि मोदी आयेंगे ही नहीं। इसकी संभावना नहीं बनती है। मेरे हिसाब से भाजपा को 160-170 सीटों से ज्यादा नहीं मिलने वाली है। एनडीए के बाकी दलों को मिला कर भी बहुत फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि इस समय जो एनडीए है, उसके बाकी दलों की सीटें लगभग 25 रहेंगीं। कुल मिला कर 200-205 तक ही हो पायेगा।
उसके बाद भी 70-80 सीटों की जरूरत बाकी रहेगी। इन 80 सीटों के लिए सपा, बसपा, बीजेडी, एआईएडीएमके और टीएमसी, इन सबको साथ लाना जरूरी होगा। इनमें से आधे आये तो भी बात नहीं बनेगी। ये सब 20-20 सीटों के दल हैं। ऐसे चार-पाँच दल साथ आने पर ही 80-90 सीटें जुड़ सकेंगी और इन सबके साथ आने की संभावना ही नहीं है। ज्यादा-से-ज्यादा एक-दो आ सकते हैं, उस पर भी मुझे संदेह है।
मेरा अंदाजा है कि अगली सरकार कांग्रेस अन्य दलों के समर्थन से बनायेगी या अन्य दलों की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनेगी। मेरे हिसाब से यही दो विकल्प हैं। बिल्कुल यह कहा जा सकता है कि इससे बाजार में एक बार बड़ी गिरावट आ सकती है, और वही खरीदारी का शानदार मौका होगा।
अगर कांग्रेस की सरकार अन्य दलों के समर्थन से बनी तो बाजार के लिए कोई समस्या ही नहीं है। अगर कांग्रेस की 140 सीटें आती हैं तो उसकी सरकार बन जायेगी। इतनी ही सीटों के साथ 2004 में उसकी सरकार बनी थी। उसके बाद हमने भारत में सबसे अच्छी विकास दर वाले पाँच साल देखे थे। यह आप नहीं कह सकते कि 140 सीटें मिलने पर सरकार कैसे चलायेंगे, अच्छी चली है और पूरे पाँच साल चली है सरकार। उस दौरान लगभग 8% की विकास दर रही है। शेयर बाजार के लिए 2004 से लेकर 2007-08 तक सबसे अच्छा दौर रहा है।
दूसरी संभावना भी देखें कि अगर बाकी दलों की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी, तो उसके लिए भी इतिहास में 1996 से 1998 का दौर दिखता है, जब संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। उस समय भी विकास दर अविश्वसनीय ढंग से अच्छी थी। एक साल 8% विकास दर रही थी और अगले साल जब एशियाई संकट आया तो जहाँ बाकी देशों में 10% की गिरावट आ गयी, वहीं भारत ने 5% विकास दर हासिल की। उसी दौरान दो प्रधानमंत्री बदले। मगर भारत का कर्ज भी कम रहा, सरकारी घाटा भी कम रहा। सारे आँकड़े बिल्कुल दुरुस्त रहे। इसलिए यह कहना भी बिल्कुल गलत होगा कि अगर संयुक्त मोर्चा जैसी सरकार आती है तो देश का कबाड़ा हो जायेगा। जब पहले ऐसी सरकार आयी थी तो अर्थव्यवस्था बिल्कुल अच्छी तरह चली थी।
इसलिए इन दोनों विकल्पों में मुझे अर्थव्यवस्था के लिए कोई क्षति नजर नहीं आती। पर इसमें शक नहीं है कि ऐसा होने पर बाजार में कुछ तो गिरावट आ ही जायेगी, चाहे 10% हो या 20% हो। लेकिन अगर बाजार में 20% की क्षति होगी तो वह खरीदारी का एक बड़ा अवसर होगा। मैं तो कहूँगा कि अगर बाजार 10% नीचे आ जाये तो वहाँ भी खरीदेंगे। अगर मुझे 100 रुपये लगाने हों तो 30-40 रुपये उतनी गिरावट पर भी लगा देंगे।
मेरे हिसाब से भारत की बुनियादी स्थिति अभी विश्व में सबसे अच्छी है। दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है, जो बुनियादी रूप से भारत के आसपास भी है। चीन की वित्तीय स्थिति सुजलॉन की तरह है और भारत की वित्तीय स्थिति हिंदुस्तान यूनिलीवर की तरह है। चीन में कर्ज-ही-कर्ज है, भारत पर वैसा कर्ज नहीं है। यह बहुत बड़ा फर्क है। चीन एक बहुत बड़ी मंदी के कगार पर खड़ा है। भारत की अभी उससे कोई तुलना ही नहीं हो सकती।
चीन पाँच साल पहले मुझे मजबूत लगता था, लेकिन बाजार में कोई भी नजरिया स्थायी नहीं होता। अब इस समय मैं कह रहा हूँ कि भारतीय बाजार 20% नीचे आयेगा तो मैं खरीदूँगा। लेकिन कोई जरूरी तो नहीं है कि यह 20% पर ही रुक जाये। हो सकता है कि यह 20% और घट जाये। आखिरकार यह एक बाजार है, जिसमें कुछ भी स्थिर नहीं है। सब कुछ बदलता रहता है। मुझे इन्फोसिस का शेयर 2000 में अच्छा लगता था, 2001 में अच्छा नहीं लगता था।
भारत बुनियादी रूप से किसी भी अन्य देश से मजबूत है। इसलिए मेरा मानना है कि अगर बाजार में गिरावट आती है तो पैसा वापस भारत में ही आयेगा। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को इस समय भारतीय बाजार अच्छा ही लग रहा है। लेकिन एफआईआई निवेश कितना है, इसे बहुत ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए। वे बाजार का बहुत बुनियादी आकलन करके नहीं चलते हैं, वे बाजार की चाल देख कर पैसा लगाते हैं। अभी भारत में सकारात्मक चाल है, इसलिए अभी उनका निवेश आ रहा है। आगे भी उनका निवेश आयेगा, और आयेगा, क्योंकि बुनियादी रूप से हम अच्छी स्थिति में हैं। लेकिन उनकी सोच क्या है, उससे अलग मेरा मानना है कि बाजार में गिरावट आने पर खरीदारी ठीक रहेगी।
बाजार में प्रमुख क्षेत्र तो गिने-चुने ही हैं। गिरावट आने पर उन्हीं में से खरीदारी के लिए चुना जायेगा। अभी ऑटो क्षेत्र अच्छा लगता है, उसे खरीदेंगे। फार्मा शेयरों को लेंगे। उपभोक्ता श्रेणी वाले शेयरों को खरीदेंगे। बैंकिंग और बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) क्षेत्र के शेयर नहीं खरीदेंगे। अभी बुनियादी ढाँचे में उतना विकास नहीं हो सकता है, जितना लोग सोचते हैं, चाहे कोई भी आ जाये। आईटी क्षेत्र मोटे तौर पर ठीक लग रहा है। फिलहाल इस बाजार में हम चुपचाप बैठे हैं। न तो अभी खरीदारी करनी है, न ही बिकवाली करनी है। चुनावी नतीजे आ जाने के बाद देखा जायेगा। शंकर शर्मा, वाइस चेयरमैन और जेएमडी, फर्स्ट ग्लोबल (Shankar Sharma, Vice Chairman & Jt. Managing Director, First Global)
(शेयर मंथन, 12 मई 2014)