मनीष खेमका
चेयरमैन, ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट
आर्थिक मोर्चे पर तमाम चुनौतियों के बावजूद यह एक संतुलित, सेहतमंद और विकासवादी बजट (Budget) है। मगर करदाताओं (Taxpayers) के सरोकारों पर सरकार को संवेदनशील होना चाहिए।
गाँव-गरीब-किसान के लिए निश्चित ही यह बजट मिठास से भरा है। लेकिन व्यक्तिगत करदाताओं को देश के विकास की उम्मीद के अलावा कोई तत्काल लाभ हासिल नहीं हुआ। आय कर (Income Tax) की पहली श्रेणी को पिछले बजट में सरकार ने घटा कर 5% का किया था। इंडोनेशिया की तरह यह विश्व में आय कर की न्यूनतम दर है। लेकिन आय कर की दूसरी श्रेणी अभी भी 20% है। हम करदाताओं ने इस बड़े फर्क़ को कम करके 15% करने की माँग की थी। साथ ही महँगी शिक्षा और स्वास्थ्य पर ख़र्च के लिए 80सी और 80डी की कटौतियाँ बढ़नी चाहिए थीं। मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) भी सबको नहीं मिला। यह व्यक्तिगत करदाताओं के लिए चाय में चीनी कम जैसा अहसास है।
नोटबंदी और जीएसटी के बाद आज 25-30 हजार रुपये महीना कमाने वाला मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी आय कर के दायरे में है। अत: करदाता को अमीर समझने की मानसिकता हमें छोड़नी होगी। सरकार को गरीब मतदाताओं के साथ देशहित में करदाताओं के हितों की चिंता भी करनी होगी। (शेयर मंथन, 01 फरवरी 2018)