केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार 31 जनवरी 2022 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 प्रस्तुत की।
इसमें कहा गया है कि 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए अर्थव्यवस्था तैयार है। बृहद (मैक्रो) आर्थिक स्थायित्व के संकेतकों से इस बात के संकेत मिल रहे हैं। इसमें वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक अर्थ (रियल टर्म) में 9.2% विकास दर यानी जीडीपी वृद्धि दर रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं अगले वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी वृद्धि दर 8.0-8.5% रहने की आशा व्यक्त की गयी है। आईएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य अनुमान के तहत 2021-22 और 2022-23 में भारत की रियल जीडीपी विकास दर 9% और 2023-24 में 7.1% रहने की संभावना है, जिससे भारत अगले तीन साल तक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के काम-काज और अर्थव्यवस्था की स्थिति का एक लेखा-जोखा होता है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सरकार पूँजीगत खर्च बढ़ायेगी। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2021-22 में कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में 3.9% वृद्धि संभव है। वहीं औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Sector) में वृद्धि 11.8% रह सकती है। इसके अलावा सर्वेक्षण में 2021-22 में सेवा क्षेत्र (Services Sector) 8.2% वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि जीडीपी वृद्धि के ये अनुमान कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने पर आधारित हैं।
राजस्व प्राप्तियों में भारी बढ़ोतरी
केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान 67.2% बढ़ी हैं, जबकि 2021-22 के बजट अनुमान में 2020-21 के अनंतिम आँकड़ों की तुलना में 9.6% की वृद्धि का आकलन किया गया था। सालाना आधार पर अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान सकल कर-राजस्व में 50% से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। यह 2019-20 के महामारी से पहले के स्तरों की तुलना में भी बेहतर प्रदर्शन है। टिकाऊ राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति से अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को बजट अनुमान के 46.2% के स्तर पर सीमित रखने में सफलता मिली।
अर्थव्यवस्था में सुधार से सरकार को कर्ज में कमी की उम्मीद है। कोविड-19 के चलते उधारी बढ़ने के साथ 2020-21 में केंद्र सरकार का कर्ज बढ़ कर जीडीपी का 59.3% हो गया, जो 2019-20 में जीडीपी के 49.1% के स्तर पर था। हालाँकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ इसमें गिरावट आने का अनुमान है।
सरकार ने माना है कि व्यापक (मैक्रो) अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अगले वित्त वर्ष में चुनौतियाँ रहेंगी। सर्वेक्षण में टीकाकरण (वैक्सीनेशन) के बढ़ते दायरे से विकास के इंजन को मजबूती मिलने की बात कही गयी है। सरकार के मुताबिक आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में सुधार होने से विकास को सहारा मिलेगा। सरकार के आपूर्ति के क्षेत्र में किये गये सुधारों से अर्थव्यवस्था स्थायी दीर्घकालिक विस्तार के लिए तैयार हो रही है। जीडीपी वृद्धि में निर्यात (एक्सपोर्ट) की अहम भूमिका रहने वाली है। इसके अलावा सरकार की ओर से किये जाने वाले पूँजीगत व्यय (कैपेक्स) से भी विकास को बल मिलेगा। बुनियादी ढाँचे से जुड़े क्षेत्रों पर जोर के साथ अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान पूँजीगत व्यय में सालाना आधार पर 13.5% की बढ़ोतरी हुई।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि रेलवे में 2020-21 में पूँजीगत व्यय बढ़ कर 1,55,181 करोड़ रुपये हुआ था, जिसे 2021-22 के बजट में और बढ़ा कर 2,15,058 करोड़ रुपये किया गया, जो 2014 के स्तर की तुलना में पाँच गुना ज्यादा है। वहीं 2020-21 में प्रतिदिन सड़क निर्माण बढ़ कर 36.5 किलोमीटर हुआ, जिसमें पिछले साल की तुलना में 30.4% की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
आर्थिक सर्वेक्षण में दिसंबर 2021 में खुदरा महँगाई (रिटेल इन्फ्लेशन) 5.6% लक्ष्य के मुताबिक रहने की बात कही गयी है। बैंकों में पूँजी की किसी तरह की कोई कमी नहीं होने का दावा किया है। सरकार ने भरोसा जताया है कि वह वित्तीय घाटे के लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकती है। सर्वेक्षण में भविष्य में निजी निवेश में बढ़ोतरी की उम्मीद भी जतायी गयी है।
निर्यात और आयात में भी तेजी से सुधार देखने को मिला है और यह कोरोना के पहले के स्तर पर आ गया है। सरकार के पास 13 महीनों के आयात के बराबर विदेशी मुद्रा भंडार है। विदेशी मुद्रा भंडार 31 दिसंबर 2021 तक 633.6 अरब डॉलर के स्तर पर पहुँच गया है। अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के साथ 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान रोजगार के संकेतक महामारी से पहले के स्तरों पर पहुँच गये हैं।
सर्वेक्षण में इस बात का भी जिक्र है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक भारत तेजी से वृद्धि दर्ज करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। हालाँकि सरकार को अंदेशा है कि वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी छमाही में चालू खाता घाटा (CAD) में बढ़ोतरी हो सकती है। अर्थव्यवस्था में सुधार से सरकार की आय में वृद्धि होगी। वैश्विक बाजार में अभी भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में खुदरा महँगाई (सीपीआई) घट कर 5.2% रह गयी। इस अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 2.9% के निचले स्तर पर रही। प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें काबू में रहीं। पर यह कहा गया है कि कमोडिटी कीमतों में बढ़ोतरी से महँगाई पर असर देखने को मिल सकता है। सर्वेक्षण में इस बात का जिक्र है कि सेवा क्षेत्र की ऋण वृद्धि दर (क्रेडिट ग्रोथ) में सुधार आना अभी बाकी है। हालाँकि सरकार ने भरोसा जताया है कि वैश्विक तरलता (लिक्विडिटी) में बदलाव से निपटने के लिए वह तैयार है। सर्वेक्षण के अनुसार 31 दिसंबर 2021 तक बैंक ऋण में 9.2% की बढ़ोतरी हुई है।
इस सर्वेक्षण में अगले एक दशक में रेलवे में बड़े स्तर पर पूँजी निवेश आने की उम्मीद जतायी गयी है। साथ ही यह आशा रखी गयी है कि एयर इंडिया के विनिवेश से निजीकरण को गति देने में मदद मिलेगी। शेयर बाजार में दिख रहे उत्साह का जिक्र करते हुए सर्वेक्षण में बताया गया है कि 75 आईपीओ के माध्यम से 89,066 करोड़ रुपये जुटाये गये, जो पिछले दशक के किसी भी वर्ष से ज्यादा धनराशि है। (शेयर मंथन, 31 जनवरी 2022)