मधुरेंद्र सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
नया साल आते ही सभी के जेहन में बजट कौंधने लगता है। उस पर चर्चा शुरू हो जाती है, विद्वान तर्क-वितर्क देने लगते हैं।
जो वित्त मंत्रालय तक नहीं पहुँच पाये होते हैं, वे अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से अपनी माँगें रखने लग जाते हैं। लेकिन तब तक तो बजट बन चुका होता है और 90% से ज्यादा तय हो चुका होता है। जानकार बताते हैं कि बजट बनाने की प्रक्रिया सितंबर महीने से ही शुरू हो जाती है और जनवरी तक पूर्ण हो जाती है। और अब तो बजट की छपाई का महत्वपूर्ण कार्य ही रह गया होगा।
अब एक बड़ी बात यह है कि यह साल लोक सभा चुनाव का है और इस वजह से 1 फरवरी को पूर्ण बजट पेश नहीं किया जा सकता है। वर्ष 2019 में भी आपने देखा होगा कि मोदी सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था और उसमें वह बड़ी घोषणाएँ करने से बची थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने की उम्मीद है। इस बजट में आप कुछ भी ऐसा नहीं पायेंगे जो आपको बहुत आकर्षित कर सके। टैक्स में कटौती नहीं, और न ही प्रलोभन वाले कुछ प्रावधान। यह एक लेखानुदान (वोट ऑन एकाउंट) होगा, जिसमें सरकार देश चलाने के लिए जरूरी खर्च के वास्ते धन की माँग करेगी और प्रस्ताव रखेगी। उसके बाद होने वाले आम चुनाव में जो दल जीत कर आयेगा, वह पूर्ण बजट पेश करेगा। उस पूर्ण बजट में वह ऐसे तमाम प्रावधान रख सकता है, जो वह चाहेगा और उसमें करों (टैक्स) में कटौती या बढ़ोतरी की बातें हो सकती हैं।
इस बजट में सरकार कुछ मुद्दों पर चर्चा कर सकती है जिसमें राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) भी है। पिछली बार सरकार ने प्रशंसनीय रूप से राजकोषीय घाटा एक सीमा में रखने की कोशिश की थी और लोक-लुभावना एवं खर्चीला बजट पेश करने से बचती रही। इस बार भी ऐसी ही संभावना लगती है कि वित्त-मंत्री राजकोषीय घाटे की सीमा को नियंत्रित करना चाहेंगी।
सरकार ने कहा था कि वह राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9% पर बनाये रखेगी, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह शायद संभव नहीं होगा। सरकार तो यह भी कह रही है कि वह राजकोषीय घाटे को और कम करेगी। उसकी मंशा है कि वह इसे 2025-26 के बजट में गिरा कर जीडीपी के 4.5% पर ले आयेगी। यह आशावादिता से भरा हुआ बयान है और सरकार के बढ़ते खर्चों को देखते हुए संभव नहीं लगता। सरकार बजट में रखे खर्च के लक्ष्य से कहीं ज्यादा खर्च कर चुकी है और आने वाले समय में लोक सभा चुनाव के कारण मतदाताओं को खुश करने के लिए और भी खर्च कर सकती है।
हालाँकि वित्त मंत्री को इस बात से संतोष मिलेगा कि कर (टैक्स) वसूली - चाहे वह प्रत्य़क्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) हो या जीएसटी हो, लक्ष्य से कहीं ज्यादा हो रही है। यह उसके लिए बड़ा संबल है। लेकिन एक बात यह भी है कि सरकार विनिवेश के अपने लक्ष्य से भटक गयी है। यानी विनिवेश से उसे उतनी रकम की प्राप्ति नहीं हो रही है, जितना बजट में निर्धारित किया गया था। फिर भी राजकोषीय घाटे का 5% से ऊपर जाना चिंताजनक होगा।
अभी के हालात में करदाताओं को किसी भी तरह की राहत मिलने की संभावना नहीं है। कुछ जरूरी समायोजन (ऐडजस्टमेंट) कर दिये जाएँ तो आश्तर्य नहीं होगा। जैसे, एक बहुत बड़े तबके ने वित्त मंत्री से इस बात पर ध्यान देने की माँग रखी है कि टैक्स रिटर्न नियत समय पर दाखिल नहीं करने वालों के साथ की जा रही सख्ती का कोई औचित्य नहीं है। टैक्स रिटर्न समय पर न भरने और बाद में भरने पर जुर्माना बहुत ज्यादा है। अगर दो साल हो गये तो समझिए कि आफत ही है। सरकार को इस बारे में संवेदनशील होना चाहिए। ऐसे हजारों लोग मिल जायेंगे, जिनका कोई टैक्स बकाया नहीं निकलता है, उन्हें बाद में भी रिटर्न दाखिल करने की इजाजत मिलनी चाहिए। विलंब से जुड़ा यह प्रावधान कठोर है और अनावश्यक भी है।
बहुत-से ऐसे विषय हैं, जिन पर वित्त मंत्रालय विचार कर सकता है। वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) के एनपीएस और ईपीएफ पर भी टैक्स लगा दिया गया है। एक वित्त-वर्ष में 7.50 लाख रुपये से ज्यादा निकासी पर सरकार ने टैक्स लगा दिया है। यह कोई कमाई थी क्या, जिस पर सरकार ने टैक्स लगा दिया? यह मनमाना टैक्स खत्म होना चाहिए। यह स्पष्ट है कि भारत में सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के बाद पुराने सरकारी कर्मचारियों के अलावा किसी को कुछ भी नहीं मिलता। ऐसे में यह कदम निराशाजनक है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को बढ़ती हुई महँगाई पर ध्यान देना चाहिए और न्यूनतम कर सीमा में बदलाव करना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि हमारी अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है और महँगाई ग्राहक के खर्च करने की क्षमता को सीमित करती है। ऐसे बहुत छोटे, किंतु महत्वपूर्ण प्रावधान हो सकते हैं जिन पर सरकार ध्यान दे सकती है। हो सकता है उनमें से कुछ पर वित्त मंत्रालय की नजर पड़ी हो और कुछ सुधारात्मक कदम उठाये गये हों।
तो पहली फरवरी का इंतजार कीजिए। शायद इस सर्द सुबह में कुछ अच्छी खबरें मिल जायें। अगर न मिलें, तो फिर पूर्ण बजट का इंतजार करें। लोक सभा चुनाव सामने हैं तो कुछ-न-कुछ मिल ही जायेगा।
(शेयर मंथन, 31 जनवरी 2024)