राजीव रंजन झा
शंकर शर्मा फर्स्ट ग्लोबल के निदेशक हैं और भारतीय शेयर बाजार के कुछ बेहद चमकदार नामों में से एक हैं। हाल में उनकी बातों का वजन कुछ इसलिए भी बढ़ा है, क्योंकि सेंसेक्स के चार अंकों में लौटने की बात उन्होंने तब कही थी, जब जनवरी-फरवरी के झटकों के बाद सेंसेक्स 17,000 के आसपास चल रहा था। तब शायद ही किसी को इस बात पर यकीन था।
शंकर शर्मा ने शेयर मंथन से 26 सितंबर 2007 को कहा था कि सेंसेक्स 6 महीनों में 25,000 तक चला जा सकता है। उसी दिन कुछ टेलीविजन चैनलों से बातचीत में उन्होंने कहा था कि मुझे बड़ा आश्चर्य होगा, अगर अगले 6-9 महीनों में सेंसेक्स 25,000-30,000 के बीच नहीं जाये। पर यह लक्ष्य या 6-9 महीने पूरे होने से काफी पहले उनके विचार बदल गये।
करीब साढ़े चार महीनों बाद ही उन्होंने सेंसेक्स के चार अंकों में लौटने की टिप्पणी की थी। हालांकि इससे पहले ही उनकी कंपनी फर्स्ट ग्लोबल का नजरिया बदलने लगा था। दिलचस्प बात यह है कि 18, 21 और 22 जनवरी 2008 की बड़ी गिरावटों से ठीक पहले 17 जनवरी को ही शेयर मंथन में फर्स्ट ग्लोबल की निदेशिका (और शंकर शर्मा की पत्नी) देविना मेहरा ने टिप्पणी की थी कि बाजार अब कुछ ज्यादा ही आगे जा रहा है और जिन भावों पर लोग खरीद रहे हैं उनका बुनियादी बातों से कोई लेना देना नहीं रह गया है। उससे ज्यादा सामयिक चेतावनी भला क्या हो सकती थी!
लेकिन जो बात लोगों को आज तक समझ में नहीं आयी, वह यही है कि सितंबर के आखिरी हफ्ते से जनवरी के दूसरे-तीसरे हफ्ते के बीच में ऐसी क्या बात रही, जिसके चलते 25-30,000 का लक्ष्य भूलना पड़ा। तेजी का जो नजरिया कम-से-कम अगले 6-9 महीनों का था, वह बीच रास्ते में ही मंदी के नजरिये में बदल गया। जिस भारतीय बाजार का पीई अनुपात 25-35 गुना तक जाना उन्हें बड़ा स्वाभाविक लग रहा था, उसके मूल्यांकन को लेकर अचानक से चिंताएँ पैदा हो गयीं।
खैर, अब शंकर शर्मा कह रहे हैं कि उन्हें भारतीय बाजार के तमाम शेयरों के भाव 2002 के स्तरों पर लौटते दिख रहे हैं। तो क्या सेंसेक्स भी 3,000 पर लौट जायेगा? आखिर जब शेयरों के भाव उन स्तरों पर लौटेंगे, तो सेंसेक्स कैसे ऊपर अटका रहेगा? हालांकि 3000 के सेंसेक्स की बात कहने से उन्होंने परहेज बरता है क्योंकि वे ‘इतनी कठोर भविष्यवाणी नहीं करना चाहते’। लेकिन संदेश तो साफ है। इसलिए तैयार रहें सेंसेक्स के 3000 पर जाने के लिए, या फिर बीच रास्ते में शंकर शर्मा जी की राय बदल जाने के लिए!
ऐसा न समझें कि स्थितियाँ बदल जाने पर विचार बदल लेना कोई बुरी बात है। और निस्संदेह पिछले साल सितंबर से अब तक अंतरराष्ट्रीय और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थितियाँ काफी बदली हैं। इसलिए यह जरूरी है कि किसी भी नये विचार को तर्क की कसौटी पर ही परखा जाये। सीधे 25,000 की भविष्यवाणी से चार अंकों के सेंसेक्स की भविष्यवाणी करके शंकर शर्मा ने काफी निवेशकों की भावनाओं को आहत किया होगा। लेकिन जैसा कि खुद शंकर शर्मा कहते हैं, निवेश की दुनिया में भावनाओं की कोई जगह नहीं होती। इसलिए किसी के तर्क को इस बात पर नकारा नहीं जा सकता कि उसके तर्क बार-बार बदलते हैं। इस समय जो तर्क सामने है, उसे या तो मानें या फिर नकारें।
आखिर क्या वजह है कि शंकर शर्मा तमाम शेयरों को साल 2002 के स्तरों की ओर वापस लौटते देख रहे हैं? उनकी ताजा सोच की नींव इस धारणा पर टिकी है कि विश्व अर्थव्यवस्था के मौजूदा संकट के चलते भारत और चीन जैसे देश अपनी मौजूदा विकास दरों को बनाये नहीं रख सकते। वास्तव में यह बात तो हर कोई मान रहा है। लेकिन शंकर शर्मा भारत और चीन की विकास दर को बाकी विश्लेषकों की तुलना में कहीं ज्यादा धीमा होता देख रहे हैं। उनका आकलन है कि चीन के लिए 8% की विकास दर को भी बनाये रखना मुश्किल हो रहा है और आने वाले समय में उसकी विकास दर 6% तक फिसल सकती है। इसके आगे उनका तर्क है कि अगर चीन की विकास दर 6% तक फिसल गयी, तो भारत की विकास दर उससे भी 2% कम ही रहेगी, यानी 4% तक फिसल जायेगी।
अगर भारत की विकास दर 4% पर फिसलती है, तो कंपनियों पर इसका असर कहीं ज्यादा बड़े अनुपात में होगा। वैसी हालत में आज मुनाफा दिखा रही काफी कंपनियाँ घाटे में चली जा सकती हैं। उनका आकलन है कि दुनिया भर में मंदी के चलते कमोडिटी के भाव 2002 के स्तरों पर लौट जायेंगे। हो सकता है कि कच्चा तेल 10 डॉलर के स्तर पर नजर आये। उनका मानना है कि यह सब होने पर शेयरों के भाव भी 2002 के स्तरों पर लौट जायेंगे, जहाँ मौजूदा तेजी से पहले की तलहटी बनी थी। अगर अलग-अलग दौर में शंकर शर्मा के तर्कों को ध्यान से पढ़ें-सुनें, तो यह दिखता है कि उनकी सोच दो बड़ी बातों से प्रभावित रही है – विदेशी पूँजी की दिशा और चीन बनाम भारत की तुलना। जब वे सेंसेक्स के 25-30,000 पर जाने की बातें कर रहे थे, तब उनके मन में यह बात हावी थी कि अगर चीन के बाजार को 40-45 का पीई अनुपात मिल रहा है और उन स्तरों पर भी वहाँ बिकवाली के कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं, तो भारतीय बाजार को भला 17-19 के पीई अनुपात पर महँगा कैसे बताया जा सकता है। इसलिए उन्हें यह स्वाभाविक लग रहा था कि भारतीय बाजार का पीई अनुपात भी आसानी से 25-35 तक जा सकता है और वैसी हालत में 25-30,000 का लक्ष्य तो काफी आसान था। आज उन्हें चीन की विकास दर 6% तक फिसलती दिख रही है। उनके लिए (या किसी के लिए भी) यह मानना मुश्किल है कि भारत की विकास दर चीन से ज्यादा तेज या उसके बराबर रह सकती है, इसलिए चीन की अनुमानित विकास दर से थोड़ा घटा दें तो भारत की विकास दर का अनुमान मिल जायेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में विदेशी पूँजी की जरूरत को भी शंकर शर्मा ने अपने विश्लेषण में काफी अहमियत दी है। इस वजह से भी उन्हें लगता है कि अगर विदेशी पूँजी की धारा सूख गयी, तो भारत के लिए विकास की तेज रफ्तार को बनाये रखना संभव नहीं होगा। भारत और चीन के निर्यात के ताजा आँकड़ों को भी वे अपने तर्कों की पुष्टि में रखते हैं। कुल मिला कर उनके विश्लेषण और 2002 के स्तरों पर भारतीय बाजार के ज्यादातर शेयरों के लौटने की भविष्यवाणी की बुनियाद इस धारणा पर टिकी है कि भारत की विकास दर घट कर 4% के आसपास रह जायेगी। लेकिन जिस क्षण भारत की किस्मत से यह सोच गलत साबित होती लगी, तो शायद शंकर शर्मा जी को अपनी सोच बदलने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। या फिर, जिस क्षण उन्हें लगा कि विदेशी निवेशकों ने फिर से भारत का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया है, तो उनके तर्क एक बार फिर बदल सकते हैं। लेकिन अगर वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था में इस तरह का ठहराव आया भी, तो क्या सेंसेक्स का 3,000 पर जाना संभव है? असंभव तो कुछ भी नहीं, लेकिन उन स्तरों पर सेंसेक्स शायद 3-4 के पीई अनुपात पर होगा। बीते 100 सालों के इतिहास ने शंकर शर्मा को यह बताया था कि कोई बाजार लगातार 5 सालों तक 55% सालाना औसत बढ़ोतरी नहीं दिखा सकता। सेंसेक्स का इतिहास तो कुछ छोटा ही है, जो यह बताता है कि 3 का पीई अनुपात आना अगर असंभव नहीं तो काफी मुश्किल जरूर है।