राजीव रंजन झा
मुंबई में कोई भी बड़ी आतंकवादी घटना होने पर मन में यही ख्याल आता है कि शेयर बाजार में भी एक अफरातफरी मचेगी, लोग घबराहट में औने-पौने भावों पर बिकवाली करेंगे और सेंसेक्स में एक बड़ी गिरावट दिखेगी। हम सबके मन में एक बार फिर से 1993 की यादें कौंध जाती हैं। लेकिन ऐसे किसी भी मौके पर हमारा घबरा जाना ही वह लक्ष्य है, जो हमारा दुश्मन चाहता है। ऐसी वारदातें क्यों होती हैं, हमें डराने और घबराने के लिए ही तो। इसलिए इन घटनाओं के जवाब में हमारी पहली प्रतिक्रिया यही होनी चाहिए कि हम घबरायें नहीं। यही उम्मीद करनी चाहिए बाजार में शुरुआती डगमगाहट जो भी हो, लेकिन मुंबई में आतंकवादी हमले का शेयर भावों पर कोई खास असर नहीं रहेगा।
लेकिन ऐसे मौकों पर सब कुछ सामान्य रहने का दिखावा करने की भी जरूरत नहीं है। मैं इस राय से सहमत नहीं कि हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए मानो कुछ न घटा हो। हमारे ऊपर एक बड़ा हमला हो, तो हमें घबराने की नहीं, लेकिन उसका सामना करने की जरूरत है। अगर हम यह दिखाते हैं कि हमारी जिंदगी एकदम सामान्य है और उस पर कोई फर्क पड़ा ही नहीं है, तो इसका मतलब है कि 100-150 जानें चली जाने से हमें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। बेशक 100-150 जानें लेकर कोई हमारे देश को कमजोर नहीं बना सकता, लेकिन यह जतला देने का वक्त आ गया है कि हमारे हर नागरिक की जान कीमती है। हमारी मजबूती इस बात में नहीं है कि हम ऐसे हमलों को सह सकते हैं। हमारी मजबूती तब दिखेगी जब हम ऐसे हमलों को रोक सकेंगे और अगर हमला हो तो दुश्मनों को उनके दुस्साहस पर पूरा सबक सिखायेंगे। अब तक एक देश के रूप में हमने बाकी दुनिया को यह नहीं दिखाया है कि अपने एक भी नागरिक की जान जाने पर हमें दर्द होता है, हमें गुस्सा आता है। इस देश के लोगों की जानें इतनी सस्ती नहीं हैं।
छुटभैये नेताओं तक की सुरक्षा में पुलिसकर्मियों की पूरी फौज लगा देने वाली अपनी सरकारों से हमें यह सवाल पूछना ही होगा कि एक आम नागरिक की जान को वह इतना सस्ता क्यों मानती है। हमारी सरकारों ने अब तक ऐसा क्या किया है, जिससे आतंकवादी इस तरह की वारदातें करने की हिम्मत ही न जुटा सकें। कब हमारी सरकारें वह तेवर दिखायेंगी, जिससे ऐसी कोई घटना घटने पर घबराहट हो उन लोगों को, जो आतंकवादियों को पालते-पोसते हैं। कब हम पूरी मजबूती से कह सकेंगे कि घबरायें हमारे दुश्मन?