राजीव रंजन झा
यह इंतजार का बाजार है। सबको बाजार सँभलने का इंतजार है। लेकिन बाजार सँभलने से पहले लोगों को एक बड़ी गिरावट का इंतजार है। इंतजार इस बात का भी है कि यह गिरावट तिमाही नतीजों की प्रतिक्रिया में आयेगी, या फिर चुनावी गुणा-भाग से पैदा असमंजस के चलते, या फिर अंतरराष्ट्रीय बाजारों के किसी भूकंप से, या फिर किसी सूनामी की तरह चुपचाप ये गिरावट हमारे सामने आ खड़ी होगी। अभी लोग इंतजार करेंगे कि वास्तव में सरकार की कम-से-कम 7% विकास दर के अनुमान सही साबित होते हैं, या फिर विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) या गोल्डमैन सैक्स वगैरह के अनुमान, जिन्होंने भारत की विकास दर 6% या उससे भी कम रह जाने की बात कह रखी है।
इसीलिए म्यूचुअल फंड 370 अरब रुपये की नकदी लेकर बैठे हैं। सैंकड़ों धनी निवेशक भी बीते साल बाजार के उतार-चढ़ाव में अपनी लुटिया जितनी बचा सके, उसे संभाल कर चुपचाप बैठे हैं कि चलो बाजार नीचे तो आयेगा ही, तब खरीदेंगे। हजारों-लाखों छोटे निवेशक भी इसी इंतजार में हैं। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी अपने घर में लगी आग बुझने के इंतजार में बैठे हैं। और बाकी सारे लोग उनके इंतजार में भी बैठे हैं! यानी इंतजार ये है कि या तो बाजार एकदम से टूट जाये तब खरीद लेंगे, या फिर जब एफआईआई की खरीदारी फिर से चालू होती दिखे तब खरीदेंगे।
इस हफ्ते बाजार को सरकार की नयी राहत योजना का इंतजार रहेगा। जमीन-जायदाद के खरीदारों को दाम घटने का इंतजार है। वहीं गाड़ियों के दाम घटने के बावजूद ऑटो कंपनियों को ग्राहकों का इंतजार है। आईटी कंपनियों को अब अपने ग्राहकों के सालाना आईटी बजट पर फैसला होने का इंतजार है। सत्यम के निवेशकों को कंपनी के प्रबंधन और बोर्ड में बदलाव का इंतजार है। पिरामिड साईमीरा के मामले में बाजार को सेबी की जाँच का इंतजार है।
देर-सबेर इनमें से काफी इंतजार पूरे होंगे और कई इंतजार कभी पूरे नहीं होंगे। इन इंतजारों का नतीजा तो कोई पक्के तौर पर नहीं बता सकता, लेकिन जब तक आपके इंतजार पूरे होंगे, तब तक शायद उससे जुड़े मौके आपके हाथ से निकल चुके होंगे। खैर, फिलहाल एक इंतजार तो हम सबको है, जो जरूर पूरा होगा और वह भी केवल 5 दिनों में – नये साल का इंतजार।