राजीव रंजन झा
उद्योग संगठन फिक्की की एक ताजा रिपोर्ट अब सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) के लिए भी खतरे की घंटी बजा रही है। अब तक मैन्युफैक्चरिंग को लेकर ही ज्यादा चिंता जतायी जाती रही है, लेकिन फिक्की की रिपोर्ट से जाहिर हो रहा है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 63% योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र धीमा पड़ने लगा है। स्वाभाविक रूप से सेवा क्षेत्र के धीमेपन का देश की आर्थिक विकास दर पर बड़ा असर होगा। सेवा क्षेत्र ने 2007-08 में 10.7% की दर से बढ़त हासिल कर जीडीपी को अच्छा सहारा दिया था।
सबसे ज्यादा अनिश्चितता वित्तीय सेवा, आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, हवाईसेवा और जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) के क्षेत्रों में दिख रही है। एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अक्टूबर 2008 से स्थिति अचानक ही ज्यादा बिगड़ी है। अक्टूबर में शेयर बाजार ने जो गोता लगाया था, वह भी अब इसी बात को जताता है कि पहले के अनुमानों की तुलना में स्थिति कुछ ज्यादा बिगड़ गयी। आम तौर पर कहा जाता है कि शेयर बाजार भविष्य के अनुमानों पर चलता है। लेकिन बीते अक्टूबर से अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर उभरने लगी, उसके बारे में बाजार को पहले से अंदाजा भी नहीं था।
राहत की बात केवल यही है कि फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक सेवा क्षेत्र की बढ़त थोड़ी धीमी रफ्तार से ही सही, लेकिन चलती रहेगी। फिक्की को जिन 31 क्षेत्रों के आँकड़े हासिल हो सके, उनमें से केवल 3 क्षेत्रों के ही बढ़ने की रफ्तार अप्रैल-नवंबर 2008 के दौरान 20% से ज्यादा रही है, जबकि 2007-08 में ऐसे क्षेत्रों की संख्या 12 थी। इसी तरह से 10-20% के दायरे में बढ़त दर्ज करने वाले क्षेत्रों की संख्या 14 से घट कर 9 रह गयी है, जबकि 0-10% की बढ़त वाले क्षेत्रों की संख्या 4 से बढ़ कर 14 हो गयी है। पिछले कारोबारी साल में केवल एक क्षेत्र ने नकारात्मक बढ़त दिखायी थी, लेकिन अप्रैल-नवंबर में ऐसे क्षेत्रों की संख्या 6 है। इससे साफ है कि ज्यादातर क्षेत्र वृद्धि दर के पैमाने पर एक-दो पायदान नीचे उतर गये हैं।
जीडीपी में लगभग दो-तिहाई भागीदारी करने वाले इस सेवा क्षेत्र की अगर वास्तव में यही हालत है, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार किस आधार पर 7% से ज्यादा ही विकास दर रहने की उम्मीदें जता रही है।