आर वेंकटरमन, कार्यकारी निदेशक, इंडिया इन्फोलाइन
इतिहास में 15 सितंबर 2008 की तारीख मील का पत्थर मानी जायेगी। इसी दिन अमेरिका के दिग्गज निवेश बैंकों में से एक लेहमन ब्रदर्स ढह गया। लेहमन ब्रदर्स के ढहने से ‘टू बिग टु फेल’ का सिद्धांत गलत साबित हो गया। साल 2009 के लिए सबक यही है कि बुनियादी बातों को हमेशा याद रखा जाये। मूल्यांकन को कभी अनदेखा न करें और इतिहास को न भूलें।
साल 2009 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्थितियाँ कमजोर रहेंगीं और शेयर बाजारों में कमजोरी बनी रहेगी। कारोबारी साल 2008-09 में भारत की विकास दर घट कर 7-7.5% रहेगी, जबकि 2009-10 में यह 5.5-6% पर आ सकती है। ब्याज दरों में और कमी आयेगी, क्योंकि एक ओर महँगाई दर में कमी आयेगी और दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी विकास की रफ्तार फिर से बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
साल 2009 का पहला हिस्सा खराब ही रहने की संभावना है। इसके पीछे तीन बड़े कारण हैं – कॉरपोरेट नतीजे, चुनावों के परिणाम और विदेशी निवेश में कमी।
आने वाले साल के लिए निवेश रणनीति में सबसे अहमियत ‘घरेलू खपत’ को देनी चाहिए। टेलीकॉम, कंज्यूमर गुड्स और फार्मा जैसे रक्षात्मक क्षेत्रों पर खास ध्यान रहेगा। नकदी की उपलब्धता और नये पूँजी निवेश पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों का प्रदर्शन खराब रहने की आशंका है।