नीलेश शाह, डिप्टी एमडी, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी
वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए साल 2009 संक्रमण का साल होगा। देश के लिए साल के पहले 6 महीने बुनियादी बातों के बजाय घटनाओं से संचालित होंगे। इस दौरान जारी किये जाने वाले आर्थिक आँकड़े वैश्विक स्तर पर कमजोरी और उसकी वजह से माँग में आयी कमी के गवाह बनेंगे। कारोबार में कमी, मार्जिन पर दबाव और सरकारी घाटे की वजह से कॉरपोरेट क्षेत्र के मुनाफे पर असर पड़ेगा। वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से पूँजी का प्रवाह सीमित हो जायेगा। इस बात पर ध्यान केंद्रित रहेगा कि राहत योजनाओं और मौद्रिक नीतियों से किस तरह विकास दर को रफ्तार को कायम रखा जाये।
हालांकि राहत की बात यह है कि इनमें से अधिकांश नकारात्मक खबरें बाजार की धारणा में पहले से ही शामिल हैं और मूल्यांकन पहले से ही करीब 10 गुना पीई अनुपात के आकर्षक स्तर पर हैं। इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों की वजह से उतार-चढ़ाव बढ़ेगा और स्थिरता पाने के लिए बाजारों को इन सभी अनिश्चितताओं से पार पाना होगा।
जहाँ साल 2009 के पहले 6 महीनों में 2008 की आर्थिक मंदी का असर दिखेगा, वहीं साल की दूसरी छमाही विकास के अनुकूल रहने का अनुमान है। बाजार की दिशा तय करने में ब्याज दर महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे, जो महँगाई दर के मौजूदा रुझान के मद्देनजर अब भी काफी ऊँचे स्तरों पर हैं। इसलिए ब्याज दरों में गिरावट के साथ-साथ कमोडिटी की कीमतों, खास कर तेल के दामों में कमी और घटती महँगाई दर से माँग का एक नया चक्र बन सकता है। यही 2009 के लिए बाजारों में नयी उत्तेजना लायेगा।
साल 2009 का दूसरा हिस्सा भी ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और एशिया सहित विभिन्न वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में बचत की अधिकता हो जाने के चलते कई अवसर उपलब्ध करायेगा, जिनकी वजह से भारत में पूँजी प्रवाह बढ़ सकता है। भारत इन अवसरों का फायदा उठा कर कमोडिटी की निचली कीमतों और कैपिटल गुड्स के मूल्यों में गिरावट के इस दौर में कितने प्रभावी तरीके से बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाता है, इसी से तय होगा कि भविष्य में भारत की विकास दर कितनी रहेगी। घरेलू बचत और निवेश की 30% से अधिक की दर भी नयी माँग उत्पन्न करने में काफी सहायक होगी, जो आने वाले सालों में भारत की विकास दर 7% से ऊपर बनाये रखने में मदद करेगी। इसलिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भारत की विकास दर को आगे बढ़ाने में सहयोग तो करेगा, लेकिन यह विदेशी निवेश नहीं आने पर भी भारत अपनी एक रफ्तार से विकास जारी रख सकेगा। लिहाजा, निवेशकों को यह भरोसा रहेगा कि भारत की विकास दर विश्व में ज्यादातर दूसरे समकक्ष देशों की तुलना में ऊँची रहेगी। इसलिए हमारा मानना है कि निवेशकों की निवेश योजना में 2009 काफी महत्वपूर्ण साल होगा।
नये साल में आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल एएमसी का निवेश बुनियादी बातों से तय होगा। टॉप डाउन और बॉटम अप एप्रोच का व्यावहारिक मिश्रण सुनिश्चित करने के साथ-साथ समझदारी के साथ निवेश के ऐसे अवसरों की पहचान करने पर ध्यान रहेगा, जिनमें लंबी अवधि में अच्छा फायदा मिले। कॉरपोरेट प्रशासन, कर्ज के लिए योग्यता और विकास की संभावनाओं का बारीक विश्लेषण ही निवेश के बारे में हमारे निर्णयों का आधार होगा। हम ऊँचे लाभ की संभावना वाला रिस्क-ऐडजस्टेड पोर्टफोलिओ बनाना जारी रखेंगे, जिससे निवेशकों के हित हमेशा सुरक्षित रहें।