अजय बग्गा, चेयरमैन, एफपीएसबीआई
साल 2009 आने के समय हालात ऐसे हैं कि कोई भी साल 2008 को याद नहीं रखना चाहता। यह स्थिति पिछले दिसंबर से ठीक विपरीत है, जब निवेशक बड़ी आशा और आत्मविश्वास के साथ साल 2008 का स्वागत कर रहे थे। इसके पीछे यह सोच थी कि भारतीय शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था, अमेरिकी अर्थव्यवस्था से एक हद तक अलग (डिकपल्ड) हो गये हैं। लेकिन अमेरिकी बाजारों में सबप्राइम ऋणों के कारण उत्पन्न कर्ज के संकट से शुरु होने वाली इस समस्या ने गंभीर रूप ले लिया। इसने बेयर स्टर्न्स, लेहमन ब्रदर्स, वाशिंगटन म्युचुअल और मेरिल लिंच जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं को ध्वस्त कर दिया। ऐसा क्यों हो गया?
इस संकट की जड़ें 2003-06 के दौरान वित्तीय संस्थाओं और आम लोगों द्वारा ली गयी भारी उधारी में निहित हैं, जब धन आसानी से उपलब्ध था और बाजारों में नकदी काफी ज्यादा थी।
जोखिम प्रबंधन (रिस्क मैनेजमेंट) के गलत तरीकों, धन की आसानी से उपलब्धता, जटिल उत्पादों (जिन्हें कोई व्यक्ति पूरी तरह से समझ नहीं पाया) और साथ ही शेयर, कमोडिटी और रियल एस्टेट संपत्तियों के बुलबुलों ने इन उत्साह भरे सालों में इतनी बड़ी उधारी पैदा की, जिसे वापस पलटना ही था। जब सबप्राइम घर कर्जों के डूबने से अमेरिकी हाउसिंग बाजार का बुलबुला फूटा तो वित्तीय संस्थाओं को बड़ी मात्रा में इन डूबे कर्जों को बट्टे खाते में डालना पड़ा। ढीले-ढाले नियमों की वजह से वित्तीय संस्थाओं ने अपनी पूँजी के कई-कई गुना तक उधारी ले रखी थी। कुछ कंपनियों ने तो अपनी पूँजी के 60-80 गुना तक उधारी ले रखी थी। अब तक 1,000 अरब डॉलर से अधिक की रकम बट्टे खाते में डाली जा चुकी है।
45 लाख से अधिक अमेरिकी घर बिना बिके पड़े हैं, क्योंकि इनके मालिक अपने कर्जों को चुकाने की हालत में नहीं हैं।
तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं का नाम आर्थिक परिदृश्य से गायब हो चुका है। अब कोई ऐसी संस्था नहीं बची, जिसे शुद्ध रूप से निवेश बैंक कहा जा सके। अपना अस्तित्व बचाने के लिए गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टैनले अब फेडरल बैंक द्वारा नियंत्रित वाणिज्यिक बैंक बन गये हैं।
ऐसा नहीं है कि इन स्थितियों के आने का आभास किसी को नहीं था। कुछ लोगों को इसका आभास मिला और उन लोगों ने साल 2008 में खूब पैसा भी बनाया।
साल 2008 में केवल तीन परिसंपत्तियों ने फायदा दिया - येन बनाम अमेरिकी डॉलर, गिल्ट और सोना। अन्य परिसंपत्तियों की बात की जाये, तो तेल में 61% और एमएससीआई वर्ल्ड इंडेक्स में -44% का घाटा दर्ज किया गया।
विश्व बाजारों से भारतीय बाजार की कदमताल
भारत में पिछले चार सालों से जबरदस्त तेजी का दौर था। अधिकांश निवेशक और विश्लेषक आत्मसंतुष्ट थे और आने वाले संकट को नहीं देख सके। अमेरिकी अर्थव्यवस्था से अलगाव (डिकपलिंग) के मिथक का दुखद अंत हो गया, क्योंकि भारतीय बाजार शेष विश्व के बाजारों के साथ कदमताल मिलाते नजर आये।
बीते साल के सबक
साल 2009 में आगे बढ़ने से पहले यह जरूरी है कि हम साल 2008 के अनुभवों के आधार पर कुछ बातें गाँठ बाँध लें।
पहली बात, विविधता काफी जरूरी है। काफी लोगों ने केवल मँझोले और छोटे शेयरों में निवेश पर ध्यान केंद्रित कर रखा था, जो 60-90% टूट गये। बीते साल के दौरान बीएसई का रियल्टी सूचकांक करीब 90% लुढ़क गया। इसलिए परिसंपत्तियों के विभिन्न वर्गों की विविधता और इन परिसंपत्ति-वर्गों के भीतर विभिन्न घटकों की विविधता ही जोखिम घटाने की कुंजी है।
दूसरी बात यह है कि बुनियादी बातों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी कंपनी के शेयर में निवेश तभी अच्छा हो सकता है जब उस कंपनी को अच्छी आमदनी और वास्तविक मुनाफा हो रहा हो, और आमदनी में टिकाऊ तरीके से बढ़ोतरी हो रही हो।
तीसरी बात, इक्विटी पर मिलने वाला रिटर्न देखना जरूरी है। साल 2007 में आईपीओ बाजार से 45,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जुटायी गयी। ईसीबी, एफसीसीबी और प्राइवेट इक्विटी निवेशों के जरिये भी अच्छी खासी पूँजी बाजार से उठायी गयी। तेजी के बाजार में जोखिम भरी महँगी परिसंपत्तियाँ खरीदने के पीछे एक सीधा-सा तर्क यह था कि धन आसानी से उपलब्ध है, इसलिए उधारी लेकर कंपनी का कारोबार बढ़ाते जायें। उधारी लेते समय उसे चुकाने की क्षमता, रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) और वास्तव में हो रही कमाई पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।
चौथी बात, शेयर बाजार अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकेतक होते हैं। जनवरी से ही भारतीय बाजार का विश्व बाजारों से जुड़ाव और आर्थिक धीमेपन का संकेत मिलने लगा था। लेकिन तब अधिकांश विश्लेषक संकट को नकार रहे थे और इसे छोटी अवधि का कनवर्जेंस मान कर यह सोच रहे थे कि कुछ ही महीनों में भारत अपनी अंतर्निहित ताकत और दिखा कर एक अलग चाल पकड़ लेगा।
अंत में वारेन बफेट का पाठ सभी निवेशकों के लिए सफलता की कुंजी है – जब जब दूसरे लालच में पड़े दिख रहे हों तब डरो, और जब दूसरे भयभीत हों तो लालची बन जाओ। तेजी और मंदी दोनों ही तरह के बाजारों इसे याद रखना चाहिए।