भारत सरकार ने धीमी होती अर्थव्यवस्था में नयी जान फूँकने के लिए अपनी राहत योजना की दूसरी किश्त का ऐलान कर दिया है, जिसमें खास तौर पर संकटग्रस्त क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। खास तौर पर निर्यातकों और लघु उद्योगों को रियायतें दी गयी हैं। इसके अलावा सीमेंट और इस्पात जैसे उद्योगों को सस्ते आयात से सुरक्षा देने के लिए कदम उठाये गये हैं। साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक ने भी रेपो दर, रिवर्स रेपो दर और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती की है। जहाँ राहत योजना की पहली किश्त में केंद्र सरकार अपने योजना-खर्च को बढ़ाने पर ध्यान दिया था, वहीं इस दूसरी किश्त में राज्य सरकारों के खर्च को बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
राहत योजना की दूसरी किश्त के तहत कुछ खास फैसले इस प्रकार हैं -
- बुनियादी ढाँचे और रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों द्वारा विदेशों से ली जाने वाली उधारी के नियमों में ढील दी गयी है।
- कॉरपोरेट बांड बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा निवेश की सीमा 6 अरब डॉलर से बढ़ा कर 15 अरब डॉलर कर दी गयी है।
- राज्य सरकारों को अधिक खर्च करने में सक्षम बनाने के लिए यह फैसला किया गया है कि उन्हें इस वित्त-वर्ष में अपने राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.5% के बराबर अतिरिक्त ऋण लेने की मंजूरी दी जायेगी। यह ऋण पूंजीगत खर्चों के लिए लिया जा सकेगा और इनकी कुल रकम 30,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
- इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (आईआईएफसीएल) को कर-मुक्त बांडों के जरिये 30,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम जुटाने की मंजूरी दी गयी है। आईआईएफसीएल इस साल जुटायी गयी रकम का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर लेने के बाद यह अतिरिक्त रकम जुटायेगी। इस रकम का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे की पीपीपी परियोजनाओं के लिए बैंकों द्वारा दिये जाने वाले कर्ज को रीफाइनेंस करने में होगा।
- सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिये जाने वाले कर्ज का लक्ष्य बढ़ाया जा रहा है। सरकार इनके द्वारा दिये गये कर्जों की पाक्षिक समीक्षा करेगी।
- जल्दी ही एक ऐसी विशेष प्रयोजन कंपनी (एसपीवी यानी स्पेशल परपस व्हीकल) बनायी जायेगी, जो कुछ शर्तों को पूरा करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को निवेश-स्तर के पेपर्स के बदले में नकदी सहायता उपलब्ध करायेगी। इसके जरिये 25,000 करोड़ रुपये तक की नकदी उपलब्ध करायी जा सकेगी।
- कारोबारी गाड़ियों की खरीद के लिए एनबीएफसी को सरकारी बैंकों से लाइन ऑफ क्रेडिट उपलब्ध कराया जायेगा।
- डॉलर महँगा होने से परेशान निर्यातकों को राहत देने के लिए डीईपीबी दरों को नवंबर 2008 से पहले के स्तरों पर ला दिया गया है।
- डीईपीबी योजना की अवधि 31.12.2009 तक बढ़ा दी गयी है।
- निटेड फैब्रिक, साइकल, खेती वाले हाथ के औजार और यार्न के कुछ खास वर्गों समेत कई सामानों पर ड्यूटी ड्रॉ-बैक का लाभ बढ़ाया गया है, जो 1 सितंबर 2008 से ही लागू माना जायेगा।
- टीएमटी बार और स्ट्रक्चरल्स पर सीवीडी की छूट हटा ली गयी है, जिससे घरेलू उद्योगों को सस्ते आयात से सुरक्षा मिलेगी।
- इसी तरह सीमेंट पर सीवीडी और स्पेशल सीवीडी की छूट हटायी गयी है।
- राज्य सरकारों को अपनी शहरी यातायात प्रणाली के लिए बसें खरीदने में मदद दी जायेगी। केवल एक बार की यह मदद 30.06.2009 तक उपलब्ध होगी।
- 01.01.2009 से 31.03.2009 के बीच खरीदी जाने वाली कारोबारी गाड़ियों पर 50% का त्वरित मूल्यह्रास (एक्सेलेरेटेड डेप्रिसिएशन) लागू होगा। इससे कंपनियों को कारोबारी गाड़ियाँ खरीदने का प्रोत्साहन मिलेगा और ऑटो कंपनियों की बिक्री बढ़ेगी।
- सभी मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत खर्च की रफ्तार बढ़ाने के लिए इन पर खास नजर रखी जायेगी। केंद्र सरकार की योजनाओं की जल्दी मंजूरी और अमल पर निगरानी रखने के लिए एक फास्ट ट्रैक मॉनिटरिंग कमेटी बनायी जायेगी। राज्य सरकारों को भी ऐसा ही करने की सलाह दी गयी है।