एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) की ओर से मंगलवार (31 अक्तूबर) को नई दिल्ली में ‘चार्टिंग ए सस्टेनेबल पाथ’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India) की शोध और नियामक इकाई के पूर्णकालिक सदस्य सुधाकर शुकला ने बताया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code) के तहत लाये गये 42000 कसों का समाधान किया गया। इसके परिणामस्वरूप महत्वूर्ण मूल्य की प्राप्ति संभव हुई।
उन्होंने बताया कि 2016 में आईबीसी कोड पेश होने के बाद काफी सकारात्मकता आयी है। इसने भारत में कर्जदाता के हालात का समयबद्ध समाधान करने का ढाँचा तैयार किया है। सुधाकर शुक्ला ने कहा किया 26000 से ज्यादा मामलों का निपटारा बोर्ड में दाखिल होने से पहले ही हो गया, जिससे नौ लाख करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति छुड़ाई जा सकी। यह आईबीसी से प्रेरित बर्ताव में बदलाव के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
उन्होंने आज के प्रतिस्पर्धी बाजार में कंपनियों की लंबी उम्र के लिए समाधानशीलता सुनिश्चित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा और नयापन किसी भी सफल कंपनी को प्रेरित करने वाली ताकत होती है। कंपनियों को फलने-फूलने के लिए प्रतियोगिता के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए नयेपन को सहज अपनाना चाहिये। समाधानशीलता संजोने वाला एक लक्ष्य है, यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियाँ टिकाऊ और अनुकूल बनी रहें।’
समयबद्ध समाधान की अहमियत बताते हुए शुक्ला ने कहा कि, समयबद्ध समाधान जरूरी है। कोड में बतायी गयी समयसीमा के अंदर समाधान करने वाली कंपनियों को 41% का वसूली योग्य मूल्य प्राप्त हुआ, जबकि लंबी अवधि के बाद समाधान करने वालों के लिए 21% की महत्वपूर्ण गिरावट आई। समय सार का है।
शुक्ला ने मजबूत लेखा मानकों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देने में एसोचैम और एसोसिएशन ऑफ सर्टिफाइड चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (ACCA) के प्रयासों की भी सराहना की। उन्होंने कंपनियों के लिए समाधान क्षमता बनाए रखने और 'लिविंग विल' रखने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे वे तनावपूर्ण समय में वैकल्पिक हल का पता लगाने में सक्षम हो सकें।
(शेयर मंथन, 31 अक्तूबर 2023)