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पतवाड़ी गाँव को लेकर संकट के बादल छटे

ग्रेटर नोएडा (पश्चिम) के पतवाड़ी गाँव में किसानों की जमीन वापस लेने की याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।

न्यायालय का कहना है कि हरकरन आदि की याचिका को आधार मानते हुए गाँव के अन्य किसान अब जमीन वापस नहीं माँग सकते हैं। निर्णय में न्यायालय का कहना है कि जो किसान उच्च खंडपीठ के आदेश के बाद 64.7% अतिरिक्त मुआवजा ले चुके हैं, वह अब जमीन वापस माँगने के हकदार नहीं होंगे। इस फैसले से पतवाड़ी गाँव के बारे में बनी असमंजस की स्थिति साफ हो गयी है।  इससे पहले उच्च न्यायालय ने 23 जुलाई 2014 को ही एक अन्य फैसले में पतवाड़ी गाँव की जमीन दो माह के अंदर किसानों को लौटाने के निर्देश प्राधिकरण को दिए थे। इससे असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। मगर, मौजूदा निर्णय से निवेशकों के साथ ही साथ बिल्डरों को बड़ी राहत मिली है। पतवाड़ी गाँव की बिल्डर परियोजनाओं में फ्लैट बुक कराने वाले करीब 27 हजार निवेशक व तीन हजार प्राधिकरण के आवंटी हैं।

गौरतलब है कि पतवाड़ी गाँव की 589 हेक्टेयर भूमि पर आवासीय सेक्टर दो बसाया गया है। इसमें डेढ़ दर्जन बिल्डर परियोजनाओं के अलावा तीन हजार व्यक्तिगत आवासीय भूखंड व मकान भी आवंटित किए गये हैं। पतवाड़ी के हरकरन आदि की याचिका पर उच्च न्यायालय ने 19 जुलाई 2011 को गाँव का जमीन अधिग्रहण रद्द कर दिया था। इस निर्णय को प्राधिकरण ने उच्च खंडपीठ में चुनौती दी थी। उच्च खंडपीठ ने 21 अक्टूबर 2011 के अहम फैसले में किसानों को 64.7% अतिरिक्त मुआवजा व अर्जित भूमि की एवज में 10% विकसित भूखंड देने के निर्देश प्राधिकरण को दिए थे। हालाँकि, न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ हरकरन उच्चतम न्यायालय में चला गया, लेकिन गाँव के 80 फीसदी किसानों ने अपनी जमीन का मुआवजा ले लिया। उधर, मुआवजा लेने के बाद भी किसानों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अपनी जमीन वापस माँगनी शुरू कर दी। उच्च न्यायालय पूर्व में दो बार अवमानना याचिका पर किसानों की जमीन लौटाने के निर्देश प्राधिकरण को दे चुका है। गाँव के यतेंद्र कुमार व दो अन्य ने न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि वह जमीन का मुआवजा वापस करने को तैयार है। हरकरन की तरह वह भी अपनी जमीन वापस चाहते हैं। 5 अगस्त 2014 को न्यायालय में याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप शाही व न्यायाधीश विवेक कुमार बिरला की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जो किसान 21 अक्टूबर 2011 के उच्च न्यायालय के फैसले के बाद अतिरिक्त मुआवजा उठा चुके हैं, उनकी याचिकाएँ अब हरकरन के साथ शामिल नहीं की जायेंगी। ऐसे किसान जमीन वापस नहीं माँग सकते।

(शेयर मंथन, 09 अगस्त 2014)

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