हांगकांग स्थित वैश्विक पूँजी बाजार एवं निवेश कंपनी सीएलएसए ने भारत और चीन में निवेश को लेकर अपने रुख में फिर से बदलाव किया है। कंपनी ने अक्टूबर की शुरुआत में ही भारत से निवेश का कुछ हिस्सा हटाकर चीन के बाजार का आवंटन बढ़ाया था। लेकिन अब कंपनी का मानना है कि उसने गणना करने और अनुमान लगाने में गलती की, जिसे वह सुधार रही है।
कंपनी ने अपनी हालिया वैश्विक इक्विटी रणनीति रपट में बाजार के परिदृश्य के बारे में बात करते हुए यह जानकारी दी है। इस रपट को ‘दहाड़ता बाघ, झिझकता ड्रैगन’ शीर्षक दिया गया है। आपको बता दें कि वैश्विक कूटनीतिक अर्थों में बाघ संबोधन का इस्तेमाल भारत के अर्थों में किया जाता है, जबकि चीन को ड्रैगन के नाम से जाना जाता है।
सीएलएसए ने अक्टूबर महीने की शुरुआत में भारतीय बाजार के लिए अपना आवंटन बेंचमार्क से 20% ओवरवेट से घटाकर 10% ओवरवेट कर दिया था। इसके साथ ही उसने चीनी बाजार के लिए आवंटन को बढ़ाकर 5% ओवरवेट कर दिया था। यानी सीएलएसए ने भारतीय बाजार से आवंटन को घटाकर उसे चीनी बाजार की ओर मोड़ दिया था। अब उसने फिर से एक महीने पहले वाली स्थिति को बहाल करने का निर्णय लिया है। उसने कहा है कि फिर से भारतीय बाजार के लिए आवंटन को बढ़ाकर 20% ओवरवेट किया जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर चीन के लिए आवंटन को घटाकर बेंचमार्क के बराबर किया जा रहा है।
पूँजी बाजार कंपनी का मानना है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में फिर से बनने जा रही सरकार में चीन को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है। साथ ही उसने यह भी कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप सरकार की आक्रामक व्यापार नीतियों से सबसे कम असर भारत के ऊपर पड़ने की उम्मीद है। सीएलएसए की मानें तो चीन की अर्थव्यवस्था अभी 2018 की तुलना में निर्यात पर ज्यादा निर्भर है। ऐसे में अगर ट्रंप सरकार के पहले कार्यकाल की तरह ट्रंप 2.0 में भी आक्रामक शुल्क (टैरिफ) नीति पर अमल किया गया तो उस समय की अपेक्षा अभी चीन की अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान होगा। चीन में घोषित हालिया सरकारी राहत को कंपनी आगामी खतरों से बचाव की तैयारी के प्रयास के तौर पर देख रही है।
भारत को लेकर कंपनी का मानना है कि उसे अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ने से फायदा हो सकता है। बकौल सीएलएसए, ट्रंप सरकार की संभावित प्रतिकूल व्यापार नीतियों से भारत सबसे कम प्रभावित होता दिख रहा है। भारत ऊर्जा (कच्चे तेल की कीमतें) को लेकर संवेदनशील लग रहा है। जब तक तेल की कीमतें स्थिर बनी रहती हैं, भारत मजबूत होते डॉलर के दौर में अपेक्षाकृत मौद्रिक स्थिरता प्रदान कर सकता है।
(शेयर मंथन, 15 नवंबर 2024)
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