शिशिर बैजल
चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, नाइट फ्रैंक इंडिया
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के लिहाज से 2018 को लगातार अस्थिरता वाले साल के रूप में पहचाना जायेगा।
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर तनाव और मध्य-पूर्व एवं यूरोप में अनिश्चितता जैसे कई कारक बाजारों में तनाव का कारण बने। वहीं घरेलू स्तर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में नकदी संकट ने शेयरधारकों को प्रभावित किया। इसके अलावा कमजोर भारतीय मुद्रा और कच्चे तेल की उच्च कीमतों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव डाला।
रियल एस्टेट उद्योग ने पिछले 24 महीनों में रेरा, जीएसटी और नोटबंदी जैसे संरचनात्मक सुधारों के प्रभाव का अनुभव भी किया, जिससे देश में व्यवसाय करने की पूरी संचरचना बदल गयी। फिर भी भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र, जिसमें काफी संभावनाएँ रहीं, में 2018 के दौरान वैश्विक और घरेलू घटनाओं पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देने वाले विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों के लिए भी कई लुभावनी चीजें रहीं।
जब भी कार्यालय, औद्योगिक और खुदरा क्षेत्रों में अच्छी तेजी दिखी, तभी सह-कामकाजी, सह-जीवन और छात्र आवास जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भी उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ी। महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्गों और औद्योगिक गलियारों के निर्माण पर निरंतर नीतिगत फोकस को ध्यान में रखते हुए, कारोबारी और विदेशी निवेशकों की ओर से बढ़ती रुचि के साथ रसद और भंडारण गृहों में लगातार तेजी देखने को मिली।
वहीं आवासीय क्षेत्र पर दबाव देखने को मिला। हालाँकि कंपनियों ने पर्याप्त संख्या में परियोजनाएँ पेश कीं, लेकिन विशेष रूप से प्रीमियम और लक्जरी आवासीय क्षेत्रों में उपभोक्ता माँग में कमी आयी। मगर सस्ते आवास क्षेत्र में कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों की ओर से तेजी की उम्मीद है, जिससे आने वाले समय में आवासीय क्षेत्र को काफी सहारा मिलेगा। इसके अलावा आवासीय बाजार की महँगाई बताने वाला सूचक नाइट फ्रैंक अफोर्डेबिलिटी इंडेक्स कई प्रमुख शहरों में उपभोक्ताओं के खरीदारी के लिए बढ़ते सामर्थ्य की तरफ इशारा करता है। पुणे, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों में सूचकांक बेंचमार्क के सुविधा स्तर (Comfirt Level) के अंतर्गत है। वहीं एनसीआर, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद में यह बेंचमार्क के करीब है।
भविष्य में कारोबारी क्षेत्र के शानदार प्रदर्शन जारी रखने की उम्मीद है। हालाँकि कारोबारी क्षेत्र को आपूर्ति की कमी के अंतरिम जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। फिर भी इसे औद्योगिक, खुदरा क्षेत्रों के साथ सह-जीवन, छात्र आवास आदि जैसे फ्रंटियर क्षेत्रों के लिए पकड़ मजबूत रख कर विकास जारी रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त सस्ते आवास के लिए सकारात्मक संकेत हैं।
यहाँ यह भी याद रखना जरूरी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों ने एक निश्चित तेजी प्राप्त कर ली है, जहाँ से उनमें वृद्धि जारी रहेगी। अंत में यह आवासीय क्षेत्र के लिए भी बेहतर रहेगा। चूँकि अर्थव्यवस्था के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि हो रही है, इसलिए अगले दो वर्षों में वित्तीय सुरक्षा (Financial Security) में बढ़त होने से आवासीय अचल संपत्ति में हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए। (शेयर मंथन, 22 दिसंबर 2018)