भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने खुदरा निवेशकों को संभावित नुकसान से बचाने के लिए फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग से जुड़े नियमों में बदलाव किया है। सेबी के नये निर्देशों के मुताबिक इंडेक्स डेरिवेटिव के लिए न्यूनतम अनुबंध मूल्य को बढ़ा कर 15 लाख रुपये कर दिया गया है, जो पहले 5-10 लाख रुपये था।
हाल ही में सेबी ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले 3 सालों में फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग करने वाले 1.13 करोड़ कारोबारियों को कुल 1.81 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। बाजार नियामक ने 1 अक्टूबर को जारी अपने सर्कुलर में जिन बदलावों की घोषणा की है, वे 20 नवंबर से चरणबद्ध तरीके से लागू किये जायेंगे। सेबी ने इक्विटी इंडेक्स डेरिवेटिव फ्रेमवर्क को मजबूत करने के लिए एक एक्सपर्ट वर्किंग ग्रुप की सलाह के आधार पर ये दिशानिर्देश तैयार किये हैं।
सौदों का आकार बढ़ा, वीकली एक्सपायरी होगी कम
इस सर्कुलर में इंडेक्स डेरिवेटिव के लिए सौदों (कॉन्ट्रैक्ट) का आकार 5-10 लाख रुपये से बढ़ा कर 15 लाख रुपये कर दिया गया है। इसके साथ ही, हर एक्सचेंज अब सिर्फ एक ही सूचकांक (इंडेक्स) की साप्ताहिक (वीकली) एक्सपायरी रख पायेगा। अभी बीएसई और एनएसई की ओर से सप्ताह के 5 दिनों में कुल मिला कर 6 वीकली एक्सपायरी होती हैं, जिनमें से 4 एनएसई और 2 बीएसई की हैं। सेबी सौदों के आकार (कॉन्ट्रैक्ट साइज) और वीकली एक्सपायरी को मिला कर कुल 6 नये नियम लागू करेगा।
1. सेबी का कहना है कि ऑप्शन की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव होता है। ये समयबद्ध सौदे होते हैं, जिनकी कीमतों में बहुत कम समय में वृद्धि या गिरावट हो सकती है। इसलिए, ग्राहकों को इंट्राडे में अनुचित उधारी (लीवरेज) नहीं मिले, इसके लिए ऑप्शन खरीदारों से ऑप्शन प्रीमियम की अग्रिम वसूली (अपफ्रंट कलेक्शन) की जायेगी। सेबी के सर्कुलर के मुताबिक अपफ्रंट मार्जिन कलेक्शन की आवश्यकता में ग्राहकों के स्तर (क्लाएंट लेवल) पर नेट ऑप्शंस प्रीमियम भी शामिल किया जायेगा। यह नियम 1 फरवरी 2025 से लागू होगा।
2. सेबी ने अपने सर्कुलर में इंडेक्स फ्यूचर्स और ऑप्शंस के लिए न्यूनतम कॉन्ट्रैक्ट साइज को 5-10 लाख रुपये से बढ़ा कर 15 लाख रुपये कर दिया है। साथ ही लॉट का आकार इस तरह से तय होगा कि समीक्षा (रिव्यू) के दिन डेरिवेटिव की कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू 15 लाख रुपये से 20 लाख रुपये के बीच रहे। यह नियम 20 नवंबर 2024 से लागू हो जायेगा।
3. सर्कुलर में सेबी ने वीकली इंडेक्स एक्सपायरी को हर एक्सचेंज के लिए 1 तक सीमित कर दिया है। यानी बीएसई और एनएसई वीकली एक्सपायरी सौदों के लिए केवल एक-एक इंडेक्स डेरिवेटिव उत्पाद ही पेश कर पायेंगे। मतलब यह कि हर एक्सचेंज पर अब हर हफ्ते खत्म होने वाले डेरिवेटिव सौदे सिर्फ एक ही इंडेक्स पर आधारित होंगे। यह नियम भी 20 नवंबर 2024 से लागू हो जायेगा।
4. सेबी ने शॉर्ट ऑप्शन सौदों के लिए 2% का अतिरिक्त एक्सट्रीम लॉस मार्जिन (ईएलएम) लगा कर टेल रिस्क कवरेज बढ़ाने का फैसला किया है। यह दिन की शुरुआत में सभी खुले हुए (ओपन) शॉर्ट ऑप्शन के साथ-साथ उस दिन शुरू किये गये शॉर्ट ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट पर भी लागू होगा, जिनकी एक्सपायरी उसी दिन होनी है। यह नियम भी 20 नवंबर 2024 से लागू हो जायेगा।
5. सेबी ने एक्सपायरी के दिन कैलेंडर स्प्रेड ट्रीटमेंट को हटाने का फैसला किया है। यह नियम 1 फरवरी 2025 से लागू होगा। इस तरह, 1 फरवरी, 2025 से एक्सपायरी के दिन कैलेंडर स्प्रेड का लाभ नहीं मिलेगा।
6. सेबी ने एक्सचेंजों को इक्विटी इंडेक्स डेरिवेटिव के लिए मौजूदा पोजिशन लिमिट की निगरानी करने को कहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि एक्सपायरी वाले दिन बड़ी मात्रा में पोजिशन के कारण तय सीमाओं (लिमिट) से ज्यादा पोजीशन बन जाने का जोखिम रहता है। यह नियम भी 1 अप्रैल 2025 से इक्विटी इंडेक्स डेरिवेटिव सौदों पर लागू होगा।
नये नियम की क्यों पड़ी जरूरत?
सेबी का मानना है कि डेरिवेटिव मार्केट काफी जोखिम भरा है। 10 में 9 लोगों को इसमें नुकसान होता है। सेबी इस बात से चिंतित है कि इसमें खुदरा निवेशकों की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। लोग अपनी जमा पूँजी बैंकों से निकाल कर इस बाजार में लगा रहे हैं। सेबी के मुताबिक ऐसा इसलिए हो रहा है कि क्योंकि उन्हें लगता है कि वे डेरिवेटिव मार्केट से कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन परेशानी की बात यह है कि ज्यादातर खुदरा निवेशक इस बाजार को समझ ही नहीं पाते हैं और अपना भारी नुकसान कर बैठते हैं। (शेयर मंथन, 4 अक्तूबर 2024)
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