राजीव रंजन झा : शेयर बाजार में हमेशा ही तर्क कम, भावनाओं का जोर ज्यादा चलता है।
इसीलिए लोग तेजी के बाजार में खरीदारी का रुख करते हैं, जबकि शेयरों के भाव पहले ही चढ़ चुके होते हैं। दूसरी तरफ, गिरावट के दौर में जब भाव काफी नीचे होते हैं, तब उन्हें खरीदने की हिम्मत नहीं होती। उन्हें यह डर होता है कि बाजार अभी पता नहीं और कितना फिसलेगा। यही डर उन्हें मौके का फायदा नहीं लेने देता। ऊपरी स्तरों पर लालच उन्हें गलत निवेश में फँसा देता है।
लेकिन निवेशकों या कारोबारियों के लिए सबसे ज्यादा उलझाने वाली स्थिति तब होती है जब बाजार एक दायरे में फँस जाता है। वैसी हालत में न तो डर होता है, न ही लालच – उस समय वे असमंजस की मनोदशा में घिर जाते हैं। हालाँकि कई बार इस तरह से बाजार का दायरे में फँसना इसकी सेहत के लिए अच्छा भी होता है। एक दायरे में टिके रहने पर बाजार का जमना (कंसोलिडेशन) संभव हो पाता है, जिससे बाजार की अगली नयी चाल की गुंजाइश बन पाती है।
लेकिन यह नयी चाल हमेशा ऊपर की हो, यह जरूरी नहीं है। अगर ऐसा पक्का होता, तो बाजार कभी इस तरह दायरे में बँधता ही नहीं। दायरे में बँधने का मतलब ही यही है कि इस समय बाजार में ऊपर खींचने वाली और नीचे खींचने वाली शक्तियाँ लगभग बराबर जोर लगा रही हैं। इसीलिए बाजार मोटे तौर पर एक ही जगह पर ठहर गया है।
सवाल है कि इस समय आपको किस तरह की रणनीति चुननी चाहिए? चतुर कारोबारी चाहें तो इस दायरे का भी फायदा उठा सकते हैं। जब बाजार में दायरे की सीमा-रेखाएँ साफ-साफ दिख रही हों, तो उस दायरे को ध्यान में रख कर झटपट वाले सौदे किये जा सकते हैं। लेकिन ऐसे सौदों के लिए बाजार पर लगातार नजर जमाये रखना और हर पल सावधान रहना जरूरी है।
अगर यह भरोसा हो कि बाजार इस दायरे को ऊपर की ओर ही तोड़ेगा, तो निवेश की रणनीति भी बनायी जा सकती है। लेकिन वैसी हालत में यह ध्यान में रखना चाहिए कि नीचे फिसलने का जोखिम कितना है। क्या ऊपर जाने की संभावना नीचे फिसलने के जोखिम से ज्यादा मजबूत है? क्या लाभ और जोखिम का अनुपात लाभ के पक्ष में ज्यादा झुका है? और फिर, अपनी मनोदशा पहले तय करें। यह पक्का कर लें कि अगर बाजार नीचे फिसलने लग गया, तो आप क्या करेंगे? अक्सर लोग यही गलती करते हैं कि फिसलते बाजार में अपना निवेश बेच कर घाटा उठा लेते हैं, जबकि शायद उन्हें निचले स्तरों पर और खरीदारी करनी चाहिए थी। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 31 दिसंबर 2012)
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