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साल 2022 का निफ्टी (Nifty) – कौन अंदर कौन बाहर?

राजीव रंजन झा : अगर कोई आपसे कहे कि एचडीएफसी बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, ओएनजीसी, टाटा स्टील, एनटीपीसी और बीएचईएल जैसी बड़ी कंपनियों के नाम शायद 10 साल बाद हमें निफ्टी (Nifty) के 50 चुनिंदा दिग्गजों की सूची में नहीं मिलेंगे, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

शायद आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन ऐंबिट कैपिटल ने अपनी हाल की एक रिपोर्ट में इस तरह के 20 नामों की एक सूची तैयार की है, जो शायद 10 साल बाद 2022 में निफ्टी का हिस्सा न रह सकें। ऊपर जिन नामों का मैंने जिक्र किया, वे सब ऐसे 20 शेयरों की सूची में शामिल हैं। इनके अलावा ऐक्सिस बैंक, आईडीएफसी, टाटा पावर, गेल, जिंदल स्टील, हिंडाल्को, कैर्न इंडिया, पीएनबी, जेपी एसोसिएट्स, बीपीसीएल, डीएलएफ, सेसा गोवा, रिलायंस इन्फ्रा और सीमेंस को भी उन 20 शेयरों की सूची में ऐंबिट कैपिटल ने रखा है, जो 2022 के निफ्टी से बाहर रह सकते हैं।
जाहिर है कि अगर 20 नाम हटेंगे तो नये 20 नाम उनकी जगह भी लेंगे। तो ऐसी कौन-सी कंपनियाँ हैं, जो अगले 10 सालों के दौरान निफ्टी में अपनी जगह बनाने का दावा ठोक सकती हैं? अभी तो इनमें से ज्यादातर मँझोली कंपनियाँ हैं। ऐंबिट ने ऐसी संभावित 20 कंपनियों की जो सूची बनायी है, उनमें एनएमडीसी ही ऐसी है, जिसकी मौजूदा बाजार पूँजी अभी 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। बाकी सभी शेयर 1,000 करोड़ रुपये से 10,000 करोड़ रुपये के बीच की बाजार पूँजी वाले हैं।
ऐंबिट की रिपोर्ट में इन संभावित 20 दावेदारों के नाम हैं – नेस्ले इंडिया, टाइटन, इंडसइंड बैंक, कोलगेट पामोलिव, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मा, बॉश, फेडरल बैंक, डाबर इंडिया, ग्लैक्सोस्मिथ सीएचएल, कमिंस इंडिया, एक्साइड इंडस्ट्रीज, यूनाइटेड ब्रेवरीज, कैडिला हेल्थ, ओरेकल फाइनेंशियल, कैस्ट्रॉल इंडिया, एमएंडएम फाइनेंशियल, क्रिसिल, टोरंट पावर और बाटा इंडिया।
आप निफ्टी से बाहर जाने वाले या इसके अंदर आने वाले शेयरों की संभावित सूची के सारे नामों से सहमत हों, यह जरूरी नहीं। लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि एक दशक में निफ्टी की तस्वीर काफी बदल जाती है। नवंबर 1995 में निफ्टी की शुरुआत के समय जो 50 शेयर इसमें शामिल थे, उनमें से 22 नाम अप्रैल 2002 तक इससे बाहर हो गये थे। अप्रैल 2002 में इसके जो 50 शेयर थे, उनमें से 24 नाम अगले एक दशक में इससे बाहर हो गये। इसलिए अगर ऐंबिट का अनुमान है कि अगले एक दशक में, यानी साल 2022 तक फिर से करीब 20 मौजूदा नाम इससे बाहर हो जायेंगे, तो इसमें आश्चर्य कैसा?
ऐंबिट ने अपनी रिपोर्ट में यह भी जिक्र किया है कि 2002-2012 के 10 सालों में जो 22 शेयर निफ्टी से बाहर गये, उनमें से 15 नामों ने पिछले दशक के दौरान ही निफ्टी में जगह पायी थी। मतलब यह है कि निफ्टी में आ जाने के बाद भी उसके अंदर बने रहने के लिए किसी कंपनी को लगातार संघर्ष करना पड़ता है। निफ्टी में बने रहने का मतलब है भारतीय अर्थव्यवस्था के 50 चुनिंदा सर्वश्रेष्ठ नामों की सूची में होना। इस शिखर पर टिके रहना आसान नहीं है।
सवाल है कि क्या निवेशक निफ्टी में अपनी जगह खो सकने वाले नामों को, और उसी तरह इसमें जगह बना पाने वालों को पहले से पहचान कर औसत से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं? अगर आपका चुनाव सही रहा, तो जरूर ऐसा हो सकता है। लेकिन यह ऐसा ही है कि रणजी मैचों के प्रदर्शन को देख कर राष्ट्रीय क्रिकेट टीम से मैदान में उतरने वाले 11 संभावित खिलाड़ियों का अनुमान लगाया जाये। अगर आप खेल और खिलाड़ी को इतनी बखूबी समझते हैं, तो जरूर सटीक अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन यह ‘अगर’ काफी बड़ा है।
कई आरामतलब निवेशक इस पचड़े में पड़ने के बदले सीधे-सीधे निफ्टी के साथ चलते रहने की रणनीति अपनाते हैं। कोई शेयर निफ्टी में आया तो उनके पोर्टफोलिओ में भी आ जायेगा, और अगर कोई शेयर निफ्टी से बाहर तो उनके पोर्टफोलिओ से भी बाहर। इंडेक्स फंड यही करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसे देख कर यहाँ के शेयर बाजार में यह तरीका भी बुरा नहीं है, क्योंकि इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन कर पाने में बड़े-बड़े फंड मैनेजरों के छक्के छूटते रहते हैं। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 04 जनवरी 2013)

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