अभीक बरुआ
मुख्य अर्थशास्त्री, एचडीएफसी बैंक
साल 2018-19 का बजट (Budget) कई लिहाज से काफी दिलचस्प रहेगा। यह संभवतः 2019 के चुनाव से पहले का अंतिम बजट होगा। यह साल भी राज्य विधान सभा चुनावों के लिहाज से काफी व्यस्त साल होगा।
शुक्रवार साल 2018 में आठ राज्यों में विधान सभा के चुनाव होंगे। लिहाजा बजट का जोर कहाँ रहेगा, इसे समझने के लिए इस राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखना महत्वपूर्ण है। लेकिन मुझे लगता है कि यह बजट तुलनात्मक रूप से राजनीति और लोक-लुभावन योजनाओं से मुक्त रहेगा। इसका मुख्य जोर कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर रहेगा। सरकार को लोक-लुभावन होने के दबाव और राजनीतिक मजबूरियों से अलग रख कर अनुशासित बनाने वाली एक अहम बात यह रहेगी कि सरकार का राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट), यानी साल के अंत में सरकार के खर्चों में से राजस्व आय को घटाने के बाद बचा शुद्ध घाटा मोटे तौर पर सरकार की पिछली प्रतिबद्धता के अनुरूप ही रहेगा। सरकार ने प्रतिबद्धता जतायी थी कि इस साल राजकोषीय घाटा 3.2% पर रखा जायेगा और अगले साल इसे 3% पर लाया जायेगा। अगर इस तरह का अनुशासन बना रहता है और खर्चों पर अंकुश रखा जाता है तो राजनीतिक दबावों के आगे झुकने की संभावना कम रहेगी।
मगर निश्चित रूप से कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। अगर इन मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है तो उन्हें कई बार गलत तरीके से लेकर लोक-लुभावन बताया जा सकता है। मेरे विचार से ग्रामीण क्षेत्र एक गंभीर समस्या से गुजर रहा है। इसके निदान के लिए कई कदम उठाये जायेंगे। इसलिए ग्रामीण आम आदमी को कई योजनाओं से फायदा होगा। सरकार का दूसरा बड़ा जोर होगा शहरीकरण और शहरी विकास पर। इसलिए सस्ते आवास (अफोर्डेबल हाउसिंग), शहरी बुनियादी ढाँचे आदि पर जोर रहेगा। इनका भी लाभ वास्तव में आम आदमी या मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को मिलेगा। उन लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा जो गरीबी रेखा के पास हैं। इस तरह के कदमों की उम्मीद मुझे है। अमूमन जो कर रियायतें दी जाती हैं, वे भी संभवतः इस बजट में होंगी। आय करदाताओं के लिए छूट की सीमा बढ़ सकती है। मोटे तौर पर इस बजट में इन्हीं बातों पर मुख्य ध्यान होने की उम्मीद है।
इस बजट की एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले बजटों में जो चीजें रहती थीं, उनका एक बड़ा हिस्सा जैसे कि उत्पाद शुल्क (एक्साइज) वगैरह अब बजट के बाहर चला गया है क्योंकि जीएसटी लागू हो गया है। इसलिए बजट में प्रत्यक्ष करों, जिसमें आय कर छूट और कंपनियों के लिए आय कर की दर में कमी शामिल हैं, और सरकारी व्यय पर मुख्य ध्यान होगा। हालाँकि सरकार काफी योजनाओं पर खर्च करेगी, पर यह एक सीमा से ज्यादा इतना खर्च नहीं करेगी कि सरकारी घाटे का इसका लक्ष्य बिगड़ जाये।
आम आदमी के लिहाज से ऐसे एक-दो मुद्दे हैं, जो बजट से संबंधित हैं। ब्याज दरें और महँगाई दर इस समय ऊँची हुई हैं। ब्याज दरों के नीचे जाने की संभावना कम लग रही है। संभवतः ब्याज दरें थोड़ा ऊपर ही जायेंगी। इसलिए अगर आप देखें कि आपने जो कर्ज लिये हैं, उनकी ईएमआई सपाट है या थोड़ी बढ़ रही है तो बहुत चौंकें नहीं। सरकार अपनी उधारी का अनुशासन बनाये रखेगी, इसके बावजूद सरकारी आय-व्यय के दायरे से बाहर कई तरह के दबाव रहेंगे, जिनका असर दरों पर होगा।
मोटे तौर पर इस बजट की कुछ चीजों को लोक-लुभावन कहा जायेगा, लेकिन मेरा अनुमान है कि सरकार काफी हद संयमित रहेगी। जो लोग आशा कर रहे हैं कि सरकार हाथ खोल कर रेवड़ियाँ बाँटेगी, उन्हें निराशा होने वाली है। सरकार की ओर से समझदारी भरा खर्च होगा और खर्च किये जाने वाले पैसों को सही लक्ष्य तक पहुँचाने पर जोर रहेगा जिससे वास्तविक आम आदमी की जरूरतें पूरी हो सकें। (Abheek Barua, Chief Economist, HDFC Bank)
(शेयर मंथन, 31 जनवरी 2018)