राजीव रंजन झा देश के तमाम दिग्गज उद्योगपति मांगपत्रों का चिट्ठा लेकर सामने बैठे हों, यह नजारा केवल प्रधानमंत्री और दूसरे वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के साथ ही दिखता है। लेकिन कल यह नजारा विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी के दरबार का था। यह बैठक आर्थिक संकट से भारत को बचाने में कितनी मददगार होगी, यह तो बाद की बात है, लोगों का सबसे पहला ध्यान इस बात पर गया कि इसमें दोनों अंबानी बंधु पधारे, हाथ मिलाया और एक-दूसरे का हाथ कस कर पकड़ा! इस दृश्य की नाटकीयता चाहे जितनी भी हो, यह इस बात का एक प्रमाण है कि उद्योग जगत ने बीजेपी के बुलावे को कितनी गंभीरता से लिया। तो क्या उद्योग जगत बीजेपी की अगली सरकार बनती देख रहा है? जी नहीं, लेकिन वह मौजूदा यूपीए गठबंधन की धुरी का काम कर रही कांग्रेस से बस थोड़ी-सी सीटें कम पाकर पिछले साढ़े चार साल से विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी को नजरअंदाज भी नहीं कर सकता। आडवाणी की इस बैठक में आने वाले उद्योगपतियों में दोनों अंबानी बंधुओं के अलावा राहुल बजाज, सुनील मित्तल, वेणु श्रीनिवासन, शशि रुइया, सुभाष चंद्र, जी एम राव, बाबा कल्याणी, जे पी गौड़, सज्जन जिंदल, राजीव चंद्रशेखर जैसे तमाम नाम शामिल थे। इनमें से कई नामों को व्यक्तिगत रूप से बीजेपी का करीबी तो नहीं ही कहा जा सकता है। इसके बावजूद आडवाणी के बुलावे पर ये सारे लोग आये, तो यही कहा जा सकता है कि उन्होंने लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका का मान रखा। बेशक बीजेपी इस बैठक के जरिये आडवाणी को भविष्य के प्रधानमंत्री की तरह पेश कर रही है। और शायद इसीलिए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस बैठक की खिल्ली उड़ायी। लेकिन अगर चिदंबरम इस बैठक का स्वागत करते और इसे विपक्ष के साथ आर्थिक मुद्दों पर राजनीतिक आम सहमति बनाने के मौके के रूप में लेते, तो शायद खुद उनकी इज्जत कुछ और बढ़ जाती। इस बैठक का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि बीजेपी ने सरकार की मौजूदा नीतियों की सिर्फ आलोचना करने के बदले अपनी एक वैकल्पिक नीति भी सामने रखी। इस नीति पर अमल करने का मौका बीजेपी को तभी मिलेगा, जब जनता उसे अगले चुनाव में सरकार बनाने की इजाजत देगी। लेकिन मौजूदा सरकार के पास तो अभी कुछ महीने बचे हैं, यह दिखाने के लिए कि मौजूदा संकट से निपटने के लिए उसकी नीतियाँ ज्यादा कारगर हैं।
डॉनल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले हैं। जनवरी में उनका अगला कार्यकाल शुरू होगा। अमेरिका में 100 साल से ज्यादा समय में पहली बार ऐसा हुआ है, जब कोई राष्ट्रपति एक चुनाव हारने के बाद वापसी करने में कामयाब हुआ है।
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