राजीव रंजन झा
वित्त मंत्रालय की बागडोर संभालने के बाद कल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक के बाद भले ही तुरंत कोई फैसला नहीं लिया गया, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही, शायद अगले हफ्ते की शुरुआत में ही सरकार की ओर से कुछ बड़े कदम उठाये जा सकते हैं। सूत्रों के हवाले से जो खबरें मीडिया ने छापी हैं, उनके मुताबिक बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के लिए एक खास फंड बना कर 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि उपलब्ध करायी जायेगी। निर्यातकों के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध कराया जायेगा, खास कर कपड़ा, हस्तशिल्प (हैंडीक्राफ्ट) और चमड़ा उत्पादों के निर्यातकों पर ज्यादा ध्यान रहेगा। इसी तरह सस्ते घरों के लिए कर्ज पर भी राहत दी जायेगी और संभवतः 10 लाख रुपये तक के घर कर्ज को ज्यादा सस्ता बनाया जायेगा।
उम्मीद यह भी जतायी जा रही है कि इन सारे कदमों के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी ब्याज दरों में कटौती करेगा। लेकिन यहाँ सवाल उठता है कि भला ब्याज दरों में कटौती के लिए आरबीआई अब किस बात का इंतजार कर रहा है। जब 13 नवंबर को महंगाई दर ने सबको चौंकाया और सीधे 10.72% से फिसल कर 8.98% पर आ गयी, उसके बाद से ही यह कयास लगाया जाता रहा है कि आरबीआई अब जल्दी ही ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। पहले लगा कि आरबीआई शायद एक हफ्ते और इंतजार कर लेना चाहता है, जिससे यह साफ हो सके कि महंगाई दर में मिली राहत बस एक बार की नहीं है। उसके बाद के 2 हफ्तों में यह घट कर पहले 8.90% और फिर 8.84% पर आ चुकी है। लेकिन अब भी आरबीआई के फैसले का इंतजार जारी है।
विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट के जवाब में भारत सरकार की प्रतिक्रिया अब तक उत्साह जगाने वाली नहीं रही है। यही लगता रहा है कि भारत सरकार काफी धीरे-धीरे और काफी छोटे-छोटे कदम उठा रही है। लोगों को यह भरोसा चाहिए कि सरकार बड़े फैसलों से नहीं हिचक रही है और स्थिति का सामना करने में वह पर्याप्त रूप से मुस्तैद है। अब सीधे प्रधानमंत्री के हाथों में वित्त मंत्रालय की कमान आ जाने से लोगों में काफी उम्मीदें जगी हैं। लेकिन अगर बड़ी उम्मीदें पूरी न हों तो उससे पैदा होने वाली निराशा भी बड़ी होती है, इस बात का ध्यान उन्हें रखना चाहिए।