राजीव रंजन झा
सेबी ने कल कई फैसले सामने रखे। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियाँ मिलीं आईपीओ और म्यूचुअल फंड वाली खबरों को। लेकिन मेरे ख्याल से कल सेबी का सबसे बड़ा फैसला खुद उसके अपने कामकाज के बारे में था। आईपीओ और म्यूचुअल फंड से जुड़े फैसले महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ऐसे नहीं जो इतिहास के पन्नों में शामिल होंगे। लेकिन भारत के वित्तीय बाजारों का इतिहास लिखते समय इस बात को जरूर याद किया जायेगा कि कब सेबी ने खुद अपने कामकाज को सारी जनता के सामने खोलने का फैसला किया।
सेबी के निदेशक मंडल के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए यह फैसला किया गया है कि जितने भी एजेंडा पेपर निदेशक मंडल में रखे जायेंगे, उन पर फैसला हो जाने के बाद उन्हें सेबी की वेबसाइट पर डाल दिया जायेगा। ऐसे हर मामले में निदेशक मंडल की बैठक में होने वाली चर्चा का पूरा ब्यौरा भी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जायेगा। यानी किस मुद्दे पर सेबी के निदेशक मंडल के किस सदस्य की क्या राय थी, और उनके क्या तर्क थे, यह सब आप खुद जान सकेंगे। इन बातों के लिए अब आपको सूत्रों के हवाले से लिखी-बोली गयी खबरों पर निर्भर नहीं रहना होगा। बेशक यह जानकारी जनता को तब मिलेगी, जब उस मुद्दे पर अंतिम फैसला हो चुका होगा। लेकिन इसके चलते निदेशक मंडल के हर सदस्य को यह अहसास रहेगा कि उनकी बातों पर आगे चल कर सारी दुनिया की नजर पड़ने वाली है।
सेबी अपने निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए एक आचार-संहिता भी बनाने वाली है। इसका मकसद यह है कि हितों का कोई टकराव रोका जा सके, यानी सेबी के निदेशक मंडल के रूप में उनके किसी भी फैसले का टकराव उनके किसी निजी हित से न होता हो।
सेबी के कामकाज और भारत के वित्तीय क्षेत्र के नियमन में यह एक नया दौर ला सकता है, जिसमें खुलापन होगा, ताजगी का एक अहसास होगा। काफी हद तक यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रस्तावित आचार-संहिता को किताबों में समेट कर रख दिया जाता है या उस पर शब्द और भावना, दोनों रूपों में अमल किया जाता है। लेकिन कम-से-कम निदेशक मंडल की चर्चाओँ को सार्वजनिक करने की पहल में तो अगर-मगर की ऐसी कोई गुंजाइश भी नहीं रहेगी। वहाँ तो सब जनता के सामने आयेगा ही। स्वागत है!