राजीव रंजन झा
बाजार में उम्मीदें और आशंकाएँ तो हमेशा ही रहती हैं। यह समय भी कोई अपवाद नहीं है। सेंसेक्स को अगले कुछ महीनों में 5000-6000 पर देखने वाले भी मौजूद हैं, तो कई विश्लेषकों या ब्रोकिंग फर्मों ने मार्च 2009 तक 12,000-14,000 तक के लक्ष्य भी दे रखे हैं। बाजार वास्तव में कौन-सी दिशा पकड़ेगा या हाल के कुछ हफ्तों की तरह एक दायरे में झूलता रहेगा, यह समझने के लिए आने वाले महीनों में बाजार के सामने मौजूद मुख्य मुद्दों को समझना जरूरी है। हालांकि अब चुनावी चर्चाएँ गरमाने लगेंगीं, लेकिन उन चर्चाओं से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होंगीं विकास दर की संभावनाएँ।
रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव की हाल की टिप्पणी से स्पष्ट है कि जनवरी में अपनी नीतियों की समीक्षा के दौरान वे विकास दर के अनुमान को घटायेंगे। लेकिन बाजार की नजर इस बात पर रहेगी कि वे इसे 7.5% से घटा कर किस स्तर पर लाते हैं। आईएमएफ, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकिंग फर्मों ने भारत की विकास दर के जो अनुमान इस साल और अगले साल के लिए रखे हैं, वे आरबीआई के मौजूदा अनुमानों से काफी नीचे हैं। इसलिए आरबीआई का नया अनुमान 7.5% की तुलना में काफी नीचे रहता है, या उसी के आसपास रहता है, यह देखना काफी महत्वपूर्ण रहेगा।
जनवरी में तकरीबन उसी समय हमें अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के तमाम कारोबारी नतीजे भी मिल रहे होंगे। बाजार में काफी हद तक आम राय दिख रही है कि ये नतीजे काफी कमजोर हो सकते हैं। इसलिए यह देखना दिलचस्प रहेगा कि अगर नतीजे वास्तव कमजोर रहते हैं, तो उस पर बाजार की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी। अगर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं रही, तो लोग कहेंगे कि ये नतीजे तो पहले ही बाजार भावों में शामिल थे। अगर बाजार ने तीखी प्रतिक्रिया दिखायी, तो लोग कहेंगे कि बाजार ने खराब नतीजों पर कंपनियों को दंड दिया है।
लेकिन अगर उन नतीजों ने कुछ सकारात्मक आश्चर्य सामने रखे और नतीजे उतने खराब न निकलें जितना सोचा जा रहा है, या कंपनियाँ भविष्य के अनुमानों को लेकर निराशा न दिखायें, तो बाजार का मिजाज बदल भी सकता है। लेकिन फिलहाल तो हमें औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों को देखना है। बुनियादी ढांचा क्षेत्र के आंकड़ों ने संकेत दे ही दिया है कि अक्टूबर के औद्योगिक उत्पादन के बारे में हमें ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए।