अक्टूबर 2008 में औद्योगिक उत्पादन घटने के बाद जारी अपनी रिपोर्ट में सेंट्रम ब्रोकिंग ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से ब्याज दरों में कटौती और नकदी बढ़ाने के उपायों ने अब तक ज्यादा सहारा नहीं दिया है। सेंट्रम का मानना है कि ये कदम जरूरी थे, लेकिन ऋण जोखिम पर इनका ज्यादा असर नहीं पड़ा।
अक्टूबर 2008 में घरेलू और विदेशी, दोनों ही बाजारों में मांग घटने का असर औद्योगिक उत्पादन पर पड़ा है। सेंट्रम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन कमजोर रहने से जाहिर है कि मांग में कमी आयी है। इसके अलावा विदेशी मांग घटने से अक्टूबर के निर्यात में भी पिछले साल की तुलना में 12.1% की कमी आयी।
सेंट्रम का मानना है कि आगे चल कर महंगाई दर में काफी नरमी आने की उम्मीदों और नवंबर में औद्योगिक उत्पादन फिर से कमजोर रहने की आशंका के चलते ब्याज दरों में और कटौती होने की प्रबल संभावना है। इसके अलावा चुने हुए क्षेत्रों के लिए सरकार की ओर राहत पैकेज भी लाया जायेगा। सेंट्रम का अनुमान है कि इस कारोबारी साल के बाकी बचे महीनों में आरबीआई अपनी ब्याज दरों में 1% अंक तक की कमी कर सकती है। लेकिन यह ब्रोकिंग फर्म सीआरआर में कमी या नकदी बढ़ाने वाले और उपायों की संभावना नहीं देख रही है।
इसका यह भी मानना है कि विकास दर को सहारा देने के लिए हाल में उठाये गये, या निकट भविष्य में उठाये जाने वाले कदमों का असर होने में अभी एक तिमाही का वक्त लग सकता है। इसी आधार पर सेंट्रम ने नवंबर में औद्योगिक उत्पादन में 1.5% की कमी होने का अनुमान सामने रखा है।