राजीव रंजन झा
बेशक सत्यम कंप्यूटर के चेयरमैन बी रामलिंग राजू कह सकते हैं कि मेटास प्रॉपर्टीज और मेटास इन्फ्रा का अधिग्रहण कानूनी रूप से बिल्कुल सही है। शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियाँ पहले भी अपने प्रमोटरों के स्वामित्व वाली कंपनियों को खरीदती रही हैं। जब तब सवाल उठते भी रहे हैं, लेकिन लोग यह मान लेते थे कि केवल कुछ छुटभैया कंपनियाँ ही प्रमोटरों को फायदा दिलाने की नीयत से ऐसा करती हैं। यानी एक समस्या को बेहद छोटे स्तर पर मान कर कभी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन अब सत्यम की मिसाल ने साबित किया है कि कोई कानूनी छेद कभी छोटा नहीं होता और उस छेद से कोई जब चाहे एक बड़ा फायदा उठा सकता है।
सत्यम कंप्यूटर ने प्रमोटर परिवार के स्वामित्व वाली मेटास प्रॉपर्टीज की 100% हिस्सेदारी 1.3% अरब डॉलर यानी लगभग 6250 करोड़ रुपये में खरीदने का फैसला किया है। जाहिर है कि यह रकम राजू परिवार की जेब में जायेगी। और जिस मेटास प्रॉपर्टी का पूरा नफा-नुकसान राजू परिवार का अपना नफा-नुकसान था, वह अब सत्यम कंप्यूटर की जिम्मेदारी बन जायेगा। इसी तरह मेटास इन्फ्रा में 31% हिस्सेदारी मेटास के प्रमोटरों से और 20% हिस्सा खुले प्रस्ताव (ओपन ऑफर) के जरिये खरीदने की योजना है। ध्यान देने की बात यह है कि खुद मेटास इन्फ्रा में प्रमोटरों की अपनी हिस्सेदारी महज 36.64% है और इसमें से 31% अब सत्यम खरीद लेगी। यानी मेटास इन्फ्रा से भी राजू परिवार ने हाथ धो लिया और इसका सारा नफा-नुकसान सत्यम के माथे डाल दिया। लेकिन ऐसा करते समय वे 475 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से करीब 866.5 करोड़ रुपये की रकम अपनी जेब में जरूर डाल रहे हैं। अब इस सत्यम कंप्यूटर में तो राजू परिवार की हिस्सेदारी केवल 8.6% ही है, भले ही बतौर प्रमोटर वे पूरी तरह से इसके कर्ता-धर्ता बने बैठे हैं। इसलिए अगर सत्यम को निचोड़ कर अपना बैंक खाता भर रहा हो तो उसमें प्रमोटरों को कैसी हिचक! कोई ताज्जुब नहीं कि शेयर बाजार के कई दिग्गज विशेषज्ञ इस पूरे मामले को दिनदहाड़े डकैती करार दे रहे हैं।
चलिए, एक क्षण को यह मान लेते हैं कि वास्तव में राजू परिवार अब तक जिन दो मुख्य व्यवसायों में संलग्न लगा रहा है, उन्हें एक साथ लाकर वह इन कंपनियों के जोखिम को घटाना चाहता है। लेकिन वैसी हालत में वह सत्यम के बहीखातों में पड़ी नकदी अपनी जेब में डालने का इंतजाम नहीं करता। इसके बदले राजू परिवार शेयरों के लेन-देन के जरिये इनके विलय का रास्ता चुनता। यहाँ तो सीधा मामला यही दिख रहा है कि जमीन-जायदाद और बुनियादी ढांचे के संकट वाले व्यवसायों से बाहर निकलने के लिए राजू परिवार ने अपनी (केवल 8.6% हिस्सेदारी वाली!) आईटी कंपनी की नकदी का इस्तेमाल कर लिया। इस “डकैती” के बाद सत्यम की लगभग सारी नकदी खत्म हो जायेगी। इन सौदों की 75% रकम, यानी लगभग 5800 करोड़ रुपये का भुगतान सत्यम के पास मौजूद नकदी से किया जाना है, जबकि बाकी 25% की रकम का भुगतान करने के लिए सत्यम बाजार से कर्ज लेगी।
इस सौदे को सही ठहराने के लिए सत्यम कंप्यूटर के प्रबंधन की ओर से जो सबूत दिये जा रहे हैं, वे किसी के गले नहीं उतरने वाले। सीधे तौर पर यही दिख रहा है कि सत्यम कंप्यूटर के खातों में पड़ी नकदी को प्रमोटर परिवार के बैंक खातों में डालने का इंतजाम किया गया है। और यह रकम भी कोई छोटी नहीं है, हम कह सकते हैं कि सत्यम कंप्यूटर नाम की सोने की मुर्गी को इसके प्रमोटरों ने एक बार में हलाल करने का फैसला कर लिया है। खुद अपने परिवार की कंपनियों का अधिग्रहण लगभग 7700 करोड़ रुपये में करने का फैसला ऐसे प्रमोटरों ने किया है, जिनके पास सत्यम की केवल 8.6% हिस्सेदारी है। जब भी भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मजाक उड़ाये जाने का इतिहास लिखा जायेगा, तो उसके पहले पन्ने पर इस मामले का जिक्र होगा।
सत्यम कंप्यूटर में राजू परिवार की इतनी कम हिस्सेदारी रहने के चलते ही पिछले कई सालों से यह कयास लगता रहा है कि राजू परिवार अपनी हिस्सेदारी बेच कर इससे निकलना चाहता है। हालांकि खुद बी रामलिंग राजू इस बात का खंडन करते रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद कभी आईबीएम तो कभी किसी और कंपनी का नाम सत्यम के संभावित खरीदार के रूप में सामने आता रहा है। अब मेटास सौदों के जरिये राजू परिवार सत्यम के खातों से 7100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा अपनी जेब में डाल रहे हैं, जबकि सत्यम में उनकी समूची 8.6% हिस्सेदारी की कुल कीमत 16 दिसंबर को बीएसई के बंद भाव के हिसाब से 1300 करोड़ रुपये ही बैठती है। अब उन्हें क्या फर्क पड़ता है, अगर इन सौदों की घोषणा के अगले दिन सत्यम का शेयर भाव आधा डूब जाये या पूरा डूब जाये!
सत्यम कंप्यूटर के बोर्ड में इस फैसले को सर्वसम्मति से मंजूरी मिलना यह साफ कर देता है कि कैसे भारतीय कंपनियों के निदेशक बोर्ड प्रमोटर परिवारों की कठपुतलियों की तरह काम करते हैं। जब महज 8.6% हिस्सेदारी रखने वाले प्रमोटर अपने बोर्ड से ऐसा फैसला करा सकते हैं, तो वैसी कंपनियों की बात ही क्या करें जिनमें प्रमोटरों की हिस्सेदारी 50% या 75% से भी ज्यादा होती है। स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किये जाने के नियमों ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस को अब तक कितना सुधारा है, यह सौदा इसकी मिसाल पेश करता है!
राजू परिवार को सत्यम कंप्यूटर के शेयरधारकों की कितनी परवाह है, यह इस बात से ही जाहिर है कि मेटास सौदों पर इतने तीखे सवाल उठने के बावजूद बी रामलिंग राजू को इन पर शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं लगती। उनका साफ कहना है कि वे इन सौदों की मंजूरी का प्रस्ताव गैर-प्रमोटर शेयरधारकों के सामने नहीं रखने जा रहे। यानी कंपनी की 90% से हिस्सेदारी रखने वाले शेयरधारकों को इतने बड़े फैसले पर अपनी राय देने का कोई हक ही नहीं है!
कंपनी के प्रमुख शेयरधारकों को एक भी दिन गँवाये बिना कंपनी के शेयरधारकों की आपात बैठक बुलाने की मांग करनी चाहिए और प्रमोटरों से इस सौदे की सफाई मांगनी चाहिए। वास्तव में ऐसे प्रमोटरों को एक दिन भी कंपनी के प्रबंधन में बने रहने का कोई हक नहीं है। निवेशकों के दबाव में अगर सत्यम का प्रबंधन इन दोनों सौदों को रद्द कर भी दे, तो भी इस तरह की नीयत वाले प्रमोटरों के हाथों में यह कंपनी सुरक्षित नहीं मानी जा सकेगी। अगर 90% से ज्यादा गैर-प्रमोटर निवेशक ऐसे प्रमोटरों को बाहर का दरवाजा दिखाने में नाकाम रहें, तो यह खुद उनके लिए शर्म की बात होगी।
कंपनी कार्य (कंपनी अफेयर्स) मंत्रालय को भी खुद अपनी ओर से पहल करके इस मामले की जाँच करनी चाहिए। जब तक यह जाँच पूरी नहीं होती, या जब तक कंपनी के शेयरधारक इस मामले में कोई फैसला नहीं कर लेते, तब तक उसे कंपनी का प्रबंधन कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति के हवाले कर देना चाहिए।