राजीव रंजन झा
सत्यम कंप्यूटर के चेयरमैन बी रामलिंग राजू को आश्चर्य है कि मेटास प्रॉपर्टीज और मेटास इन्फ्रा को खरीदने की उनकी योजना पर निवेशकों ने इतनी तीखी प्रतिक्रिया जतायी। लेकिन आश्चर्य तो हमें है, समूचे शेयर बाजार को है कि कैसे उन्होंने कॉर्पोरेट लूट का ऐसा फैसला करने का साहस जुटाया, इसके बारे में आखिर सोचा ही कैसे।
टेम्प्लेटन एसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रतिनिधियों ने तो कल शाम कॉन्फ्रेंस कॉल के दौरान सत्यम के पूरे प्रबंधन के सामने ही कह दिया कि वे इस सौदे को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।
निवेशकों का यह कड़ा रुख ही था, जिसके चलते रामलिंग राजू ने मेटास अधिग्रहणों को रद्द करने का फैसला किया है। याद रखें कि जब एक अल्पमत प्रबंधन के सामने कंपनी के बड़े निवेशक इस सुर में बात करते हैं, तो इसका नतीजा खुद प्रबंधन में उलटफेर तक जा सकता है। सत्यम कंप्यूटर में प्रवर्तकों (प्रमोटरों) यानी राजू परिवार की हिस्सेदारी महज 8.6% है। अब तक भारत में बड़े निवेशकों के दबाव के चलते कंपनियों के बोर्ड या प्रबंधन में बदलाव का कोई खास इतिहास नहीं रहा है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों में यह एक आम चलन है।
इस सौदे को सही ठहराने की चाहे जो भी दलील राजू परिवार की ओर से दी जाये, वह बाजार और निवेशकों के गले नहीं उतरने वाली। सीधे तौर पर यही दिख रहा था कि सत्यम कंप्यूटर के खातों में पड़ी नकदी को प्रमोटर परिवार के बैंक खातों में डालने का इंतजाम किया गया है। खुद अपने परिवार की कंपनियों का अधिग्रहण लगभग 7700 करोड़ रुपये में करने का फैसला ऐसे प्रमोटरों ने किया है, जिनके पास सत्यम की केवल 8.6% हिस्सेदारी है।
इन सौदों को रद्द करने के फैसले के बावजूद अभी कई सवाल बाकी रहेंगे। सबसे पहला सवाल यह होगा कि क्या सत्यम की 90% से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले गैर-प्रमोटर निवेशकों को अब भी राजू परिवार का नेतृत्व गवारा होगा? क्या ऐसे बेतुके फैसले को सर्वसम्मत मंजूरी देने वाले निदेशक बोर्ड को सत्यम के निवेशक माफ कर देंगे? स्वतंत्र निदेशकों के नियम के बावजूद अगर कंपनियों के बोर्ड प्रमोटर परिवारों की कठपुतली जैसा बर्ताब करते हैं, तो अब इन नियमों में कैसा सुधार किया जाना चाहिए? और, जिन कानूनी छेदों के चलते इस तरह की हेराफेरी संभव हो सकती है, उन कानूनों में सुधार के लिए सरकार अब क्या करेगी?