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पचेली फाइनेंस समेत 6 अन्य पर चला सेबी का डंडा, पंप ऐंड डंप गतिविधि के आरोप में लगी रोक

निवेशकों में हित में सेबी का डंडा एक बार फिर चला है। इस बार इसकी गिरफ्त में पचेली इंडस्ट्रियल फाइनेंस लिमिटेड (पीआईएफएल) और छह अन्य संस्थाएँ हैं। सेबी ने अगले आदेश तक इन सभी को शेयर बाजार में हिस्सा लेने से रोक दिया है। दरअसल सेबी को पीआईएफएल के शेयर में "पंप-ऐंड-डंप" की गतिविधि होने की जानकारी मिली है।

अपनी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पीआईएफएल होटल, लॉजिंग हाउस और अन्य सेवाओं से संबंधित परामर्श सेवाएँ प्रदान करती है। उपरोक्त छह संस्थाएँ एक विशेष आवंटन की लाभार्थी थीं, जिसकी जाँच की जा रही है।

क्या है मामला?

2 दिसंबर 2024 से 16 जनवरी 2025 के बीच पीआईएफएल के शेयर की कीमत 21.02 रुपये से बढ़कर 78.2 रुपये हो गयी। यानी कंपनी के शेयर में सिर्फ एक महीने में ही 372% की बढ़ोतरी हुई है। कंपनी का पीई अनुपात 4 लाख से भी ज्यादा बढ़ गया। 16 जनवरी को दिये अपने आदेश में सेबी ने कहा कि है कुछ चीजों पर गौर करने से ये संकेत मिलते हैं कि कंपनी के शेयर में “पंप-ऐंड-डंप" की गतिविधि हुई है। यानी स्टॉक को जानबूझकर बढ़ा दिया गया और फिर गिरा दिया गया। इस “पंप-ऐंड-डंप" के जरिये कुछ खास लोगों को फायदा पहुँचने की कोशिश की गई है। जिससे कंपनी के शेयरधारकों को नुकसान हुआ है।

क्या है सेबी का आदेश?

सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि फौरी तौर पर देखने से ये पता चलता है कि “पंप-ऐंड-डंप” को एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। और कंपनी का प्रबंधन इसमें पूरी तरह से शामिल है। सेबी ने ये भी कहा कि कंपनी के वैधानिक ऑडिटर जीएसए और एसोसिएट्स एलएलपी शायद कंपनी प्रबंधन के साथ मिलकर काम कर रहे थे। सेबी ने इस मामले में ऑडिटर की भूमिका की जाँच की जरूरत पर भी जोर दिया है।

दरअसल सेबी की जाँच कमिटी ने कंपनी के शेयर की कीमत में हो रही असामान्य बढ़ोतरी को पकड़ा। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि जाँच में सामने आए आँकड़े कंपनी के खुद पेश किये गये वित्तीय आँकड़ों से मेल नहीं खाते।

वित्त वर्ष 2022 और 2023 में कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में किसी भी तरह की आय का जिक्र नहीं किया था। फिर अचानक 2024 में 1.07 करोड़ रुपये की आय रिपोर्ट की। इस आय को कंपनी ने बैड डेट से रिकवरी और ब्याज से आय के रूप में दिखाया। कंपनी के इस कदम से उसका मूल्य से आय (पीई) अनुपात 4,05,664 पर जा पहुँचा जो कंपनी के शेयर की कीमत और उसकी असल स्थिति में अंतर को साफ-साफ दिखाता है।

सेबी ने जाँच में पाया कि कंपनी ने 1,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। लेकिन कंपनी ने उसका कारण और लागत का खुलासा नहीं किया। बाद में प्रेफरेंशियल अलॉटमेंट के जरिये इस कर्ज को इक्विटी में बदल दिया गया। जाँच में यह भी पता चला कि इस कर्ज के जरिये जुटायी गयी रकम दूसरी संस्थाओं को दी गयी, जो लोन देने वाली एजेंसी से जुड़ी हुई थी। इस तरह कंपनी ने बिना किसी भुगतान के शेयर जारी किये। आदेश में यह भी कहा गया कि प्रेफरेंशियल आवंटन एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा लगता है। इससे कंपनी के शेयर कैपिटल को बढ़ाने के लिए 'जुड़ी हुई' संस्थाओं को बिना किसी भुगतान के शेयर आवंटित कर दिये गये। प्रेफरेंशियल आवंटन का लॉक-इन पीरियड 11 मार्च 2025 को खत्म हो जाएगा।

(शेयर मंथन, 18 जनवरी 2025)

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