संसद के बजट सत्र की आज शुक्रवार (31 शुक्रवार) से शुरुआत हो गयी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सत्र के पहले दिन आर्थिक समीक्षा पेश की। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर क्यों सुस्त पड़ी है। साथ ही आगे भी सुस्ती बरकरार रहने का अंदेशा व्यक्त किया गया।
अगले वित्त वर्ष में भी 7% से कम रहेगी वृद्धि दर
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.3% से 6.8% रहने का अनुमान है। यानी घरेलू अर्थव्यवस्था के बढ़ने की गति पर अगले वित्त वर्ष में भी कुछ हद तक अंकुश लगा रहने वाला है। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था पहले ही सुस्ती का शिकार हो चुकी है। दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर महज 5.4% रही है, जो पिछली सात तिमाहियों में सबसे कम है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया है। इस महीने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान में चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 6.4% रहने की आशंका जतायी गयी है, जो बीते 4 सालों की सबसे धीमी दर है।
04 अप्रैल तक चलने वाला है संसद का बजट सत्र
इस बार ससंद का बजट सत्र दो हिस्सों में आयोजित हो रहा है। बजट सत्र का पहला हिस्सा आज से शुरू हुआ है और यह 13 फरवरी तक चलेगा। इसमें दूसरे दिन यानी 01 फरवरी को वित्त वर्ष 2025-26 का बजट पेश होगा। बजट सत्र के दूसरे हिस्से की शुरुआत 10 मार्च को होगी और वह 4 अप्रैल को समाप्त होगा। वित्त वर्ष 2025-26 की शुरुआत 01 अप्रैल 2025 से होगी।
दो दशक तक लगातार खर्च बढ़ाने की जरूरत
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन द्वारा तैयार आर्थिक समीक्षा के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकार का पूँजीगत व्यय धीमा हुआ। इसके ऊपर लोकसभा चुनाव के चलते मँजूरियों में कमी का असर पड़ा। साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में हुई अत्यधिक बारिश ने भी पूँजीगत व्यय को प्रभावित किया। इसका असर आर्थिक वृद्धि दर पर भी हुआ। हालाँकि समीक्षा में कहा गया है कि पहली तिमाही के बाद यानी जुलाई महीने से पूँजीगत व्यय तेज हुआ है। आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर भारत तेज गति से आर्थिक वृद्धि करना चाहता है तो उसे अगले दो दशक तक बुनियादी संरचनाओं पर लगातार खर्च बढ़ाने की जरूरत पड़ने वाली है।
आर्थिक समीक्षा की मुख्य बातें :
1. वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में में 6.4% है, जो दशक के औसत के अनुरूप है। वित्त वर्ष 2025-26 में वृद्धि दर 6.3-6.8% के बीच रहने की उम्मीद है।
2. आर्थिक वृद्धि में सभी क्षेत्र योगदान दे रहे हैं। कृषि क्षेत्र मजबूत है। उद्योग महामारी से पहले के स्तर पर पहुँच चुके हैं। सेवा क्षेत्र में वृद्धि दिख रही है।
3. मुद्रास्फीति नियंत्रण में आ रही है। खुदरा मुद्रास्फीति 2023-24 में 5.4% थी, जो घटकर चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर के दौरान 4.9% रह गयी है। अगले वित्त वर्ष में यह लगभग 4% पर आ जायेगी।
4. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) समग्र रूप से सकारात्मक हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में पुनरुद्धार के संकेत दिख रहे हैं।
5. विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत हुआ है। यह सितंबर 2024 में 706 अरब डॉलर तक पहुँच गया। 27 दिसंबर 2024 को यह 640.3 अरब डॉलर पर था, जो बाह्य ऋण के 89.9% के बराबर है।
6. बैंकिंग और बीमा क्षेत्र स्थिर है। बैंकों का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (जीएनपीए) अनुपात सितंबर 2024 तक कम होकर 2.6% पर आ गया है।
7. निर्यात बढ़ रहा है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में कुल निर्यात 6% की वृद्धि के साथ 602.6 अरब डॉलर तक पहुँच गया। इस दौरान आयात 6.9% बढ़ा।
8. चालू वित्त वर्ष में नवंबर तक सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) के कर्ज में 13% वृद्धि आयी है। बड़े उद्यमों के ऋण में 6.1% तेजी आयी है। कृषि और औद्योगिक ऋण की वृद्धि दर क्रमशः 5.1% और 4.4% रही है।
9. विकास के लिए नियमन में ढील की आवश्यकता है। यह आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने, निर्माण क्षमता सुधारने और नियामकीय टकरावों को कम करने के लिए आवश्यक है।
10. सरकार ने बीते 5 वित्त वर्ष में बुनियादी संरचना पर व्यय में 3.3 गुने की वृद्धि की है। इसमें निजी क्षेत्र के खर्च को बढ़ाने की आवश्यकता है।
(शेयर मंथन, 31 जनवरी 2025)
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