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आईपीओ (IPO) के जरिये जुटाये गये महज 1,619 करोड़ रुपये

अब तक पूँजी जुटाने के प्रमुख स्रोत रहे प्राथमिक बाजार से कंपनियाँ दूरी बनाती दिख रही हैं। पिछले कुछ सालों के आँकड़े तो इसी बात की गवाही दे रहे हैं।
बीते साल विभिन्न कंपनियों ने प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये महज 1,619 करोड़ रुपये जुटाये। पिछले 12 सालों में आईपीओ के जरिये जुटायी गयी यह सबसे कम राशि है। इससे पहले साल 2001 में आईपीओ के जरिये केवल 296 करोड़ रुपये जुटाये गये थे।  
हालाँकि साल 2010 में कंपनियों ने आईपीओ के जरिये 37,535 करोड़ रुपये जुटाये थे, लेकिन उसके बाद के तीन सालों में कंपनियों ने इस रास्ते से अधिक पूँजी एकत्र नहीं की है। आईपीओ के माध्यम से साल 2011 में 5,966 करोड़ रुपये और साल 2012 में 6,938 करोड़ रुपये जुटाये गये। 
हालाँकि साल 2013 में 38 कंपनियों ने आईपीओ के जरिये पूँजी एकत्र की, लेकिन इसमें बड़े आकार के आईपीओ महज तीन ही रहे। इस साल जस्ट डायल (Just Dial) ने 919 करोड़ रुपये, रेपको होम फाइनेंस (Repco Home Finance) ने 270 करोड़ रुपये और वी-मार्ट रिटेल (V-Mart Retail) ने 94 करोड़ रुपये जुटाये।    
आखिर आईपीओ बाजार के इतने खराब प्रदर्शन की वजह क्या है। प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया कहते हैं, "द्वितियक बाजार में उतार-चढ़ाव, प्रवर्तकों के अपेक्षित मूल्यांकन न मिल पाना और कुल मिला कर बाजार की नकारात्मक धारणा इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा सरकार भी अपने विनिवेश कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में नाकाम रही है।"
यही वजह है कि बीते पाँच सालों में 107 कंपनियों ने सेबी (SEBI) से मिली स्वीकृति के बावजूद आईपीओ के जरिये पैसे नहीं जुटाये और इसे खत्म हो जाने दिया। इसके अलावा इसी अवधि में 54 कंपनियों ने आईपीओ से संबंधित वे आवेदन वापस ले लिये जो उन्होंने पूँजी बाजार नियामक के पास जमा कराये थे। गौरतलब है कि ये 161 कंपनियाँ कुल मिला कर 71,602 करोड़ रुपये जुटाने वाली थीं। 
सरकार का विनिवेश कार्यक्रम भी कम निराशाजनक नहीं रहा है। हालाँकि केंद्र सरकार ने कारोबारी साल 2013-14 में विनिवेश के जरिये 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन साल के पहले नौ महीने बीत जाने के बावजूद यह इसके माध्यम से महज 2,964 करोड़ रुपये ही हासिल कर सकी है। (शेयर मंथन, 04 जनवरी 2014)

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