अच्छे बहुमत के साथ मोदी सरकार बनने से ज्यादातर उद्योगों के लिए स्थिति बदलती दिख रही है।
इस परिदृश्य में सरकारी कंपनियों के विनिवेश की संभावनाओं को टटोलना दिलचस्प हो सकता है। विनिवेश के कई लक्ष्य होते हैं। यूपीए सरकार ने इन लक्ष्यों में से सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) के प्रबंधन को अपना मुख्य लक्ष्य बना रखा था। लेकिन अगर नयी सरकार ने सरकारी घाटे को कम करने के अन्य तरीकों को अपनाया तो वैसी स्थिति में एक संभावना यह होगी कि सरकार विनिवेश कार्यक्रम को उतनी प्राथमिकता न दे और इसका आकार भी घटा दे।
लेकिन विनिवेश का एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है। इतिहास में देखें तो भारत में सरकारी कंपनियों के विनिवेश ने इनके आईपीओ के जरिये बड़ी संख्या में निवेशकों को पूँजी बाजार में लाने का काम किया है। मिसाल के तौर पर, अकेले कोल इंडिया के आईपीओ ने कई लाख नये निवेशकों को बाजार में खींचा था। नयी सरकार का ध्यान वित्तीय समावेश और पूँजी बाजार के उत्पादों की पैठ बढ़ाने पर है, लिहाजा वह सरकारी कंपनियों के विनिवेश कार्यक्रम को जारी रखना महत्वपूर्ण मान सकती है।
इस पृष्ठभूमि में नयी सरकार पीएसयू कंपनियों की उत्पादकता बढ़ाने और कामकाज में सुधार लाने की दिशा में काम कर सकती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादातर बड़ी सरकारी कंपनियों के पास काफी मजबूत संपदा आधार और कीमती प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं। इन सरकारी कंपनियों का हाल के वर्षों में कमजोर प्रदर्शन संपत्तियों की कमी के कारण नहीं, बल्कि उत्पादकता की कमी और प्रबंधन की कमजोरी की वजह से रहा है। अगर नयी सरकार सक्षम संचालन, उत्पादकता में वृद्धि और प्रबंधन को मजबूत करने पर ध्यान दे तो इन सरकारी कंपनियों में छिपी संभावनाएँ निकल कर बाहर आ सकती हैं।
इस बीच शेयर बाजार अपने नये रिकॉर्ड स्तरों पर है, लेकिन आईपीओ बाजार अब भी एकदम ठंडा पड़ा है। जब शेयर बाजार ठंडा पड़ा था, उस समय आईपीओ बाजार में सन्नाटा रहना समझ में आता था। लेकिन बीते छह महीनों से बाजार में तेजी दिखने के बावजूद आईपीओ बाजार में कोई हलचल नहीं है। साल 2014 में अब तक वंड्रेला हॉलिडेज का एकमात्र आईपीओ आया है।
साल 2011 से लेकर 2014 में अब तक 109 आईपीओ के लिए सेबी से मंजूरी मिलने के बाद भी उन्हें बाजार में नहीं लाया गया। सेबी से मंजूरी मिलने के बाद की तय अवधि एक साल के भीतर ये आईपीओ नहीं खुल पाये। सामान्यतः शेयर बाजार में तेजी आने पर इसका सकारात्मक असर आईपीओ के बाजार पर होता है और गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं। लेकिन अभी लगभग हर दिन शेयर बाजार में नया रिकॉर्ड बनने के बावजूद आईपीओ बाजार ने गति नहीं पकड़ी है।
उम्मीद करनी चाहिए कि आईपीओ बाजार भी जल्दी ही हरकत में आयेगा और कॉर्पोरेट जगत पूँजी जुटाने की नयी योजनाओं की तैयारी में उतरेगा। लेकिन अगर इसमें ऐसी ही सुस्ती बनी रही तो इसके चलते कंपनियों को विस्तार परियोजनाओं के लिए पूँजी जुटाने में दिक्कत होगी। नतीजतम क्षमता विस्तार और रोजगार सृजन में धीमापन जारी रहेगा।
आगे यह देखना होगा कि केंद्र सरकार का विनिवेश कार्यक्रम के प्रति कैसा नजरिया सामने आता है। अगर विनिवेश कार्यक्रम आगे बढ़ा तो इसके तहत कई बड़ी सरकारी कंपनियों के आईपीओ आ सकते हैं। शेयर बाजार में तेजी के टिकने, विनिवेश के प्रति भारत सरकार के रवैये और वैश्विक बाजार में नकदी की उपलब्धता के आधार पर तय होगा कि आगे आईपीओ बाजार कैसा चलेगा। जगन्नादम तुनुगुंटला, रिसर्च प्रमुख, एसएमसी ग्लोबल
(शेयर मंथन, 09 जून 2014)
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