प्राइम डेटाबेस के मुताबिक एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियों में से लगभग 12% कंपनियों ने सेबी के निर्देशों के मुताबिक 31 मार्च 2015 की तय समय-सीमा बीत जाने के बाद भी अपने बोर्ड में कम-से-कम एक महिला निदेशक को शामिल नहीं किया।
इसकी रिपोर्ट में कहा गया है एनएसई में सूचीबद्ध और प्रासंगिक 1,456 कंपनियों में से 180 ने सेबी के इस निर्देश के मुताबिक महिला निदेशक की नियुक्ति नहीं की है। इस नियम की अनदेखी 32 सरकारी (PSU) कंपनियों ने भी की है।
यह स्थिति तब है, जब सेबी ने कंपनियों को यह दिशानिर्देश मानने के लिए साल भर से भी ज्यादा का समय दिया। इस बारे में सेबी की घोषणा 13 फरवरी 2014 को हुई थी। तब से कुल 832 महिलाओं को 872 कंपनियों में निदेशक के 912 पदों पर नियुक्तियाँ मिली हैं। इन 872 कंपनियों में से महज 43 कंपनियाँ ऐसी हैं, जिनके बोर्ड में पहले से ही कोई महिला निदेशक थी। इस तरह 829 कंपनियों ने सेबी के निर्देश को मानते हुए अपने बोर्ड में किसी महिला को जगह दी।
इन 829 कंपनियों में 789 महिलाओं को निदेशक के 861 पदों पर नियुक्तियाँ मिली हैं। हालाँकि गौरतलब है कि इन 861 में से कम-से-कम 363 गैर-स्वतंत्र महिला निदेशक हैं। प्राइम डेटाबेस के एमडी प्रणव हल्दिया का कहना है कि "इन महिलाओं की आवाज वही होगी जो प्रमोटरों की होगी। इस तरह वास्तविकता में (स्वतंत्र) रूप से लैंगिक विविधता लाने का मकसद ही अधूरा रह जाता है।"
ऐसी तमाम कंपनियाँ हैं, जिनमें प्रमोटरों के परिवार की महिलाओं को बोर्ड में जगह दे दी गयी है। कुछ प्रमुख नामों को देखें तो अनीता मणि को जस्ट डायर में, अर्चना जटिया को एशियन होटल्स (नॉर्थ) में, आरती कोठारी को कोठारी प्रोडक्ट्स में, बीना मोदी को गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया में, सीबी मम्मेन को एमआरएफ में, गौरी अतुल किर्लोस्कर को किर्लोस्कर ऑयल इंजन्स में, लक्ष्मी वेणु को टीवीएस मोटर में, नवाज गौतम सिंहानिया को रेमंड में, नीना भद्रश्याम कोठारी को कोठारी पेट्रोकेमिकल्स में, नीता मुकेश अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज में, रमाबाई वी. धूत को वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज में, रितु माल्या को मंगलौर केमिकल्स में, सुनंदा सिंहानिया को जेके टायर में, सुशीला देवी सिंहानिया को जेके सीमेंट में और वासवदत्ता बजाज को बजाज कॉर्प में निदेशक बनाया गया है।
हल्दिया के मुताबिक यह तर्क दिया जा सकता है कि संबंधियों को बोर्ड में शामिल करने में कुछ भी गलत नहीं है, बशर्ते वे सक्षम हों। मगर हल्दिया कहते हैं कि ऐसी महिलाओं को तो सेबी के दिशानिर्देश के बगैर भी बोर्ड में जगह मिल सकती थी।
तय समय-सीमा से पहले की हड़बड़ी इन दिशानिर्देशों को मानने में भी दिखी। ऐसा लगता है कि कंपनियाँ एक बार फिर समय-सीमा बढ़ने के इंतजार में थीं। हल्दिया बताते हैं कि जिन 829 कंपनियों ने सेबी के इन दिशानिर्देशों का पालन किया, उनमें से 278 ने यह काम मार्च 2015 के आखिरी महीने में किया। यहाँ तक कि 30 मार्च 2015 को 55 और आखिरी दिन 31 मार्च 2015 को 76 कंपनियों ने महिला निदेशक की नियुक्ति की।
एक अहम पहलू यह है कि काफी सरकारी कंपनियाँ भी नियम को मानने में पीछे रह गयीं। जिन 180 कंपनियों ने दिशानिर्देश का पालन नहीं किया, उनमें से 32 सरकारी (पीएसयू) कंपनियाँ हैं। इनमें से कुछ प्रमुख नाम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, भारत पेट्रोलियम, कंटेनर कॉर्प, गेल इंडिया, एनटीपीसी, ओएनजीसी, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, पंजाब नेशनल बैंक, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्प और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के हैं। (शेयर मंथन, 6 अप्रैल 2015)
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