उतार-चढ़ाव का दौर अभी शेयर बाजार में जारी रहने वाला है।
जैसी खबरें आती रहेंगी, उनके हिसाब से बाजार ऊपर-नीचे होता रहेगा। उनके आधार पर ही बाजार की धारणा बनती-बिगड़ती रहेगी। एक अच्छी बात यह है कि सरकार खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण से संबंधित अपने दो महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की पुरजोर कोशिश कर रही है। मेरे विचार से इन दोनों में भूमि अधिग्रहण विधेयक ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस समय सभी लोगों ने ब्याज दरें घटने की बातें करनी शुरू कर दी है। लेकिन उसके अलावा विभिन्न परियोजनाओं में निवेश की गति बढ़ाने की भी जरूरत है। यह निवेश दो बातों के आधार पर होगा – ऊर्जा और भूमि। ऊर्जा के क्षेत्र में सरकार ने काफी कदम उठाये हैं। लेकिन जब भी कोई उद्योग अपना विस्तार करेगा तो उसे भूमि की जरूरत होगी। अगर भूमि उपलब्ध नहीं होगी तो काम अटक जायेगा।
इन सब बातों को देखें तो लंबी अवधि के लिए कुछ सकारात्मक चीजें हो रही हैं। मेरा ख्याल है कि दिसंबर 2013 या मार्च 2014 तक हमें सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। पर इसका मतलब यह है कि मौजूदा साल निकल जायेगा। इसलिए हर सकारात्मक खबर से बाजार की धारणा पर तो कुछ असर होगा, लेकिन असली टिकाऊ असर दिसंबर या मार्च के बाद से ही दिखना शुरू होगा।
चुनावी नजरिये से बेशक कांग्रेस का ध्यान खाद्य सुरक्षा विधेयक पर ज्यादा रहेगा, लेकिन कांग्रेस के अंदर जो सुधारवादी लोग हैं, वे भूमि अधिग्रहण विधेयक और अन्य कदमों पर भी जोर देंगे। अगर संसद के मानसून सत्र में ये विधेयक पारित हो जाते हैं तो इससे बाजार को अच्छा संकेत मिलेगा। इस बीच मानसून की जिस तरह अच्छी प्रगति हो रही है, उसका भी सकारात्मक असर हुआ है। पर इसके अलावा और कोई खास संकेत अभी नहीं है। कम-से-कम यह तिमाही तो बाजार के लिए मुश्किल रहेगी।
अगली तिमाही में हमें विकास दर (जीडीपी) में सुधार देखने को मिल सकता है। इसके दो कारण बनते हैं। एक तो कमोडिटी की कीमतें घटने का सकारात्मक असर देखने को मिलेगा, क्योंकि कंपनियों के मुनाफे में इससे बढ़ोतरी होगी। दूसरे, सुधारों का जो चक्र है और खास कर ब्याज दरों में कमी की जो बात है, उसका फायदा मिलेगा। महँगाई दर नियंत्रण में आयी है, जिसे देखते हुए संभवतः 17 जून की बैठक में या उसकी अगली बैठक में आरबीआई दरों में कटौती करेगा।
आरबीआई ने अब तक ब्याज दरें घटाने में जो संकोची रवैया अपना रखा था, उसका एक स्पष्ट कारण था। अगर वे पहले ब्याज दरें घटा भी देते तो अर्थव्यवस्था को कोई खास लाभ नहीं मिल पाता। आरबीआई को अभी नकदी (लिक्विडिटी) की कमी के मुद्दे पर ध्यान देना है। जब तक नकदी की उपलब्धता आरबीआई के मुताबिक सहज स्थिति में नहीं आ जाती, तब तक आप ब्याज दरों में चाहे जितनी भी कमी कर लें, उसका लाभ नहीं मिलेगा। आखिर बैंकिंग व्यवस्था में अगर पैसा नहीं आयेगा तो दरों में कमी से क्या होगा? मैं विदेशी निवेश के प्रवाह के साथ-साथ घरेलू नकदी की भी बात कर रहा हूँ। अभी नकदी एकदम सूखी हुई थी, अब कुछ आनी शुरू हुई है। अब भी इसमें सकारात्मक स्थिति नहीं बनी है, लेकिन पहले से स्थिति सुधरी है। जमाराशि (डिपॉजिट) की वृद्धि दर भी सँभलने लगी है। हाल तक जमाराशि और ऋण दोनों की वृद्धि दर घट रही थी। अगले तीन महीनों में जमाराशि की वृद्धि दर और बेहतर होने की उम्मीद है।
अगले छह से नौ महीने की अवधि में इक्विटी यानी शेयर बाजार की तुलना में ऋण-पत्रों (डेब्ट) का बाजार ज्यादा अच्छा लगता है। इस समय भी इक्विटी के प्रति लोगों की धारणा विपरीत है। लेकिन जब इक्विटी में लाभ दूसरे क्षेत्रों से ज्यादा दिखने लगेगा तो पैसा इसकी ओर आने लगेगा। तब तक अगले छह-नौ महीने का समय शेयर बाजार के लिए मुश्किलों वाला होगा।
करीब इतने समय में ही शायद राजनीतिक अनिश्चितताएँ भी छँट जायें। बातें सुनने को मिल रही हैं कि अक्टूबर-दिसंबर के बीच चुनाव हो सकते हैं। हालाँकि मेरे लिए कहना मुश्किल है कि चुनाव अक्टूबर-दिसंबर में हो जायेंगे या अगले साल ही होंगे। चुनाव के बाद अगर कहीं तीसरे मोर्चे की सरकार की नौबत आयी तो यह बाजार के लिए एक झटका होगा। अगर कांग्रेस या भाजपा किसी के समर्थन से भी सरकार बना लेती है तो शुरुआती भावनात्मक असर के बाद बाजार सँभलने लगेगा।
चुनाव अक्टूबर-दिसंबर में होंगे या इसके बाद, इसका संकेत काफी हद तक मानसून सत्र से मिल सकता है। इसे समझने के लिए यह देखना होगा कि मानसून सत्र में राजनीतिक रूप से कैसे समीकरण बनते हैं। अभी राजनीतिक रूप से लग रहा है कि अक्टूबर-दिसंबर के बीच चुनाव होने की संभावना बन सकती है।
अगर अक्टूबर-दिसंबर में ही चुनाव होने हैं तो सरकार के पास सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। आज अगर सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित करा भी ले तो उसे जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए 6-12 महीने तक लग जायेंगे। इसलिए फैसले होने और सुधारों के आगे बढ़ने के बाद अर्थव्यवस्था पर उसका सकारात्मक असर दिखने में इतना समय लगेगा। अगर अभी फैसला हो गया तो अगले 6-9 महीनों में असर होने लगेगा। लेकिन अगर अभी ये फैसले नहीं हो सके तो यह समय और साल भर आगे खिसक जायेगा। अगर अगले तीन महीनों में कुछ नहीं हो पाया तो लोग कहने लगेंगे कि अब अगले साल का भी छह महीना हाथ से निकल गया।
इन सबके मद्देनजर लगता है कि शेयर बाजार में निफ्टी अगले 6-8 महीनों तक ऊपर 6200 और नीचे 5700 तक के दायरे में चलता रहेगा। इस दौरान नया रिकॉर्ड स्तर आने की उम्मीद मुझे कम लगती है। वहीं 5700 के ज्यादा नीचे जाने की भी संभावना कम है, क्योंकि उन स्तरों पर काफी खरीदारी आ ही जाती है। उन स्तरों पर वैश्विक बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार सस्ता लगने लगता है और निवेश आने लगता है। इस समय भी भारतीय बाजार 14-17 के पीई पर घूम रहा है। विश्व बाजार में अभी नकदी पर्याप्त है। इसलिए जब भी 14 पीई के पास भारतीय बाजार आता है तो नकदी इधर आने लगती है। दूसरी ओर ऊपर 17 के पीई पर जाने पर यानी 6100-6200 के आसपास मुनाफावसूली आने लगती है।
निवेशकों को मेरी सलाह यही होगी कि वे चुनिंदा तौर पर बाजार में लंबी अवधि के लिए निवेश शुरू कर दें। हमेशा आपको इस तरह के मूल्यांकन नहीं मिलेंगे। जब भी बाजार 14-15 पीई के पास हो, तब लंबी अवधि का निवेश करने पर ध्यान दें। पिछले चार-पाँच साल में निवेशकों ने बाजार में काफी गँवाया है। लेकिन अगर लोकसभा चुनाव के बाद कोई राजनीतिक संकट नहीं हो तो बाजार में अच्छी तेजी आने की उम्मीद रहेगी। इसके बाद अगले दो-तीन सालों तक बाजार में मजबूती रह सकती है।
मूल्यांकन के लिहाज से मैं कैपिटल गुड्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर शेयरों को पसंद करूँगा। लंबी अवधि में घरेलू स्तर पर इनमें अच्छी वृद्धि होगी। बैंकिंग क्षेत्र में भी तेजी की उम्मीद रहेगी। इन क्षेत्रों को मैं ज्यादा प्राथमिकता दूँगा। इसके अलावा एफएमसीजी क्षेत्र पर मेरी नजर रहेगी, क्योंकि यहाँ घरेलू खपत में वृद्धि की कहानी जारी रहने वाली है। इनका मूल्यांकन ऊँचा है, लेकिन एफएमसीजी और दवा दोनों क्षेत्रों में ऐसा इसलिए है कि ये क्षेत्र निवेशकों को ज्यादा सुरक्षित लगते हैं। आईटी क्षेत्र में मुझे अभी चुनौतियाँ दिख रही हैं। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय बाजार पर ज्यादा निर्भर है, इसलिए उसके बारे में मेरा भरोसा कम है।
प्रदीप गुप्ता, वाइस चेयरमैन, आनंद राठी सिक्योरिटीज (Pradeep Gupta, Vice Chairman, Anand Rathi Securities)
(शेयर मंथन, 08 जून 2013)
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