हम लंबी अवधि के लिए संरचनात्मक तेजी के बाजार में हैं।
लेकिन याद रखें कि तेजी का बाजार भी एकदम सीधी रेखा में नहीं चलता। ऐसे बाजार में ठीक-ठाक गिरावटें भी आयेंगी, जिनका इस्तेमाल अच्छी गुणवत्ता वाले शेयरों को जुटाने में करना चाहिए। सरकार किस हद तक नतीजे दे पा रही है, इस पर भी करीब से नजर रखें। हालाँकि बाजार अभी सरकार को पर्याप्त समय दे रहा है, लेकिन अगर सरकार नतीजे दे पाने में चूकी तो उसकी निराशा से बाजार में मध्यम अवधि की गिरावट आ सकती है जो काफी तीखी भी हो सकती है।
आखिरकार बेहतर प्रदर्शन करने वाले बाजारों में ही पैसा आता है। केंद्र में सरकार की स्थिरता और उसके इरादों की वजह से भारत लंबे समय तक निवेश के लिहाज से आकर्षक बना रहेगा। हालाँकि सुधारों का धीमी गति से होना और विकास दर तेज नहीं हो पाना बाजार के लिए चिंता के कारण हैं। अगर बजट 2015 उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा तो इसके चलते भी बाजार की चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं में कमजोरी आने से मुद्रा बाजारों में मचने वाली उथल-पुथल भी घरेलू बाजार को परेशान कर रही है। वहीं, सुधारों को आगे बढ़ाने की मंशा वाली स्थायी सरकार का होना, बुनियादी ढाँचे के विकास की व्यापक संभावनाएँ और वैश्विक हलचलों में भी स्थिर रह सकने वाली आंतरिक खपत पर निर्भर अर्थव्यवस्था बाजार के लिए सकारात्मक है। अबंरीश बालिगा, बाजार विश्लेषक (Ambrish Baliga, Market Analyst)
(शेयर मंथन, 09 जनवरी 2015)