राजीव रंजन झा
भारतीय उद्योग जगत के लिए चीफ मार्केटिंग ऑफिसर या चीफ स्ट्रेटेजी ऑफिसर की भूमिका निभाकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कल प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई के इंडिया इकोनॉमिक समिट में अर्थशास्त्र के कुछ बुनियादी सिद्धांत समझाये। जो सबसे प्रमुख बात उन्होंने कही, वह है दाम घटाने की। उनका कहना है कि विश्व अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत में अगर कंपनियों को अपने उत्पादों की मांग बढ़ानी है, तो उन्हें दाम घटाने होंगे। लेकिन लगता है कि ज्यादातर उद्योगों को उनकी यह बिना मांगी सलाह कुछ जमी नहीं।
दरअसल उद्योग जगत जब भी सरकार से कुछ रियायतें पाने के लिए दबाव बनाने की कोशिश करता है, सरकार की ओर से कोई ऐसा ब्रह्मास्त्र सामने आ जाता है कि उद्योग जगत खुद रक्षात्मक मुद्रा में आ जाता है और अपनी मांगें भूल जाता है। पिछली बार जब उद्योग जगत के आला प्रतिनिधि प्रधानमंत्री से मिले तो प्रधानमंत्री ने उन्हें कोई लॉलीपॉप नहीं दिया, उल्टे कह दिया कि नौकरियाँ कम मत करना। इस बार उद्योग जगत को वित्त मंत्री से कुछ रियायतों के ऐलान की उम्मीद थी, लेकिन वित्त मंत्री ने उल्टे उन्हें दाम घटाने की नसीहत दे डाली।
लेकिन वित्त मंत्री की यह सलाह बेजा नहीं लगती। अपवाद वाले कुछ उद्योगों को छोड़ दें, तो बाकी ज्यादातर उद्योग हाल तक काफी अच्छा मार्जिन कमाते रहे हैं। अगर संकट के इस दौर में वित्त मंत्री उन्हें अपने मार्जिन में कुछ कमी करने की सलाह दे रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? हालांकि शायद उन्होंने जिन चीजों का नाम लिया, उसमें ऑटो क्षेत्र को जोड़ने से बचा जा सकता था। कम-से-कम इस क्षेत्र के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इसने हाल में कोई मुनाफाखोरी की है। आज के हिंदुस्तान टाइम्स का एक विश्लेषण बता रहा है कि इस क्षेत्र का शुद्ध लाभ मार्जिन सितंबर 2007 में 8.8% और सितंबर 2008 में 6.6% था, जिसे किसी भी रूप में ऊँचा नहीं माना जा सकता। यह क्षेत्र तो पिछले साल डेढ़ साल से किसी तरह बस घाटे से बचने की जद्दोजहद में लगा रहा है।
लेकिन संकट के सिरमौर रियल एस्टेट क्षेत्र की हालत देखें। इसका शुद्ध लाभ मार्जिन सितंबर 2007 के 42.3% की तुलना में सितंबर 2008 में 49.6% आंका गया है। खुद एचडीएफसी के दीपक पारिख रियल एस्टेट कंपनियों के मौजूदा मार्जिन को बेतुका बता चुके हैं। वास्तव में जिन-जिन क्षेत्रों का शुद्ध लाभ मार्जिन 10% से ऊपर चल रहा है, उन्हें वित्त मंत्री की सलाह पर गंभीरता से गौर करना चाहिए। आज अपनी इच्छा से नहीं करेंगे, तो कल शायद मजबूर होकर करेंगे।