राजीव रंजन झा
सत्यम कंप्यूटर का घटनाक्रम बड़ी तेजी से बदल रहा है। हाल में सरकार, सेबी और दूसरी जाँच एजेंसियों ने जो कदम उठाये हैं, वे काफी हद तक भरोसा बढ़ाने वाले हैं। लेकिन शायद अब भी निवेशकों को इस शेयर के बारे में काफी सावधानी बरतने की जरूरत है।
सरकार ने सत्यम के पुराने बोर्ड को भंग कर नया बोर्ड बनाने का जो फैसला किया, वह वाकई जरूरी था, क्योंकि पिछले बोर्ड के रहते सत्यम का पूरा सत्य सामने आने के बारे में संदेह रहता। सत्यम के पुराने प्रबंधन के वरिष्ठ अधिकारियों पर भी कितना विश्वास किया जा सकता है, यह बात एक बड़ा सवाल है। लेकिन अब अगर सरकार की ओर अपने-अपने क्षेत्र के 3 बड़े प्रतिष्ठित व्यक्तियों को सत्यम के बोर्ड का सदस्य बना कर कंपनी की बागडोर सौंप दी गयी है, तो इससे यह भरोसा बँधता है कि कंपनी का सत्य सामने आने में कोई रुकावट नहीं रहेगी।
दीपक पारिख, किरण कर्णिक और सी अच्युतन, ये तीनों काफी प्रतिष्ठित और सक्षम नाम हैं। इनसे यह उम्मीद रखना स्वाभाविक है कि वे सत्यम को इस संकट से उबारने की चुनौती में सफल रहेंगे। लेकिन एक निवेशक के लिहाज से फिलहाल सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि सत्यम के पूरे कामकाज के बारे में जो सवाल खड़े हैं, उनका सत्य सामने आये। अगर रामलिंग राजू के पत्र के मुताबिक ही कंपनी की आमदनी कभी उतनी नहीं रही, जितनी कागजों में दिखायी जाती रही, तो जब तक कंपनी के कामकाज की असली सूरत सामने नहीं आती, तब तक निवेश का कोई भी फैसला वास्तव में केवल एक सट्टा होगा। आखिर आप किन आँकड़ों के आधार पर देखेंगे कि इस शेयर का कौन-सा भाव वाजिब है?
दूसरी संभावना, जिसे अब बाजार काफी गंभीरता से देख रहा है, यह है कि शायद वास्तव में कंपनी की आमदनी तो अच्छी रही हो, लेकिन उस पैसे को राजू परिवार कंपनी से निकाल लेता रहा हो। अगर ऐसी कोई बात निकलती है, तो कंपनी के नये बोर्ड और सरकार के लिए यह चुनौती रहेगी कि कैसे कंपनी से बाहर निकाले गये पैसे को वापस लाया जा सके। ऐसी रकम को पूरी तरह वापस निकाल पाना तो शायद असंभव ही होगा।
कुल मिला कर जब तक कंपनी के कामकाज की पूरी स्थिति साफ नहीं हो जाती, तब तक कंपनी का कोई भी मूल्यांकन संभव नहीं है। अभी तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सत्यम पुराने स्वरूप में अपने अस्तित्व और कामकाज को बचाये रख सकेगी। निवेशक फिलहाल इन बड़े सवालों को सुलझ जाने दें, उसके बाद ही कोई फैसला करना ठीक रहेगा।