शेयर मंथन में खोजें

भारतीय कंपनियाँ हो सकती थीं चीन के अधिग्रहण का शिकार

भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीति में संशोधन करते हुए भारत की सीमा से सटे हुए देशों से स्वचालित तरीके (ऑटोमैटिक रूट) से एफडीआई को रोक दिया है। अब इन देशों से कोई भी एफडीआई निवेश भारत सरकार से स्वीकृति मिलने के बाद ही किया जा सकेगा। एफडीआई नीति में इस बदलाव और खास कर चीन से संभावित खतरे को लेकर कुछ अहम सवालों पर प्रस्तुत है द डायलॉग के संस्थापक काजिम रिजवी का नजरिया।

क्या चीन की ओर से भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण का एक वास्तविक खतरा हमारे सामने था?
अमेरिका और यूरोप की कंपनियों का अधिग्रहण करने के लिए चीन काफी प्रयास कर रहा है। अगर भारत सरकार ने कठोर कदम नहीं उठाये होते तो वह दिन दूर नहीं था जब भारतीय कंपनियाँ भी चीन के ऐसे अधिग्रहण का शिकार हो सकती थीं। कोविड-19 महामारी की वजह से कंपनियों के शेयरों की कीमतों में आयी भारी कमी ने उन्हें शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण को लेकर असुरक्षित बना दिया है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने पहले ही एचडीएफसी में मार्च तिमाही में अपना हिस्सा 0.8% से 1.01% तक बढ़ा लिया है, जो यह बताता है कि वह भारत में आर्थिक मंदी का फायदा उठा रहे थे।
भारत की कंपनियों में चीन के अत्यधिक निवेश करने से सबसे बड़ी हानि नवांकुर कंपनियों (स्टार्ट अप) को होती, क्योंकि देश के नवांकुरों में निवेश करना सबसे ज्यादा आसान और फायदेमंद है। अगर भारत सरकार यह कदम न उठाती तो शायद भारत के नवांकुरों को चीन खरीदने की कोशिश करता। केवल भारत ही नहीं बल्कि यूरोपीय संघ, इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित कई देशों ने अपनी घरेलू कंपनियों को अधिग्रहण से बचाने के लिए विदेशी निवेश के नियमों को कड़ा कर दिया है। दुनिया भर में आयी आर्थिक मंदी की वजह से सभी देश अपने घरेलू बाजार को चीन से बचाने के लिए विदेशी निवेश के नियम कड़े कर रहे है।

भारत ने केवल एफडीआई नियमों को बदला है, मगर एफपीआई के रास्ते से आने वाले निवेश पर अंकुश नहीं लगाया है। इस संबंध में आपका क्या कहना है?
भारत ने भले ही एफडीआई को रोक दिया हो, लेकिन चीन के पास एक और तरीका है भारत में निवेश करने का। विदेशी पोर्टफोलिओ निवेश (एफपीआई) के जरिये कोई भी विदेशी कंपनी शेयरों और बॉन्डों आदि में निवेश कर सकती है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि एफपीआई के जरिये निवेश 10% से ज्यादा नहीं हो सकता, जिसकी वजह से उसे कंपनी का स्वामित्व नहीं मिलता।
लेकिन फिर भी भारत को अगर चीन की कोशिशों को पूरी तरह निष्प्रभावी करना है तो उसे चीन से आने वाले इस तरीके के निवेश को भी रोकना पड़ेगा। एचडीएफसी में चीन के बढ़े निवेश को मद्देनजर रखते हुए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कस्टोडियन बैंकों को चीन और हांगकांग में स्थित विदेशी पोर्टफोलिओ निवेशकों (एफपीआई) के अंतिम लाभकारी मालिकों के विवरण बताने को कहा है। सेबी के ये निर्देश दर्शाते हैं कि इस तरीके के निवेश को भी बंद करना आवश्यक है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि भारत अप्रत्यक्ष निवेश के बारे में भी सख्त कदम उठा कर सतर्कता सुनिश्चित करे।

चीन ने भारत की एफडीआई नीति में बदलाव की आलोचना की है। तो क्या चीन वास्तव में भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण का इच्छुक लग रहा है?
चीन ने किसी भी और देश के एफडीआई नियमों में बदलाव का इतना पुरजोर विरोध नहीं किया है, जितना वह भारत का कर रहा है। यह दर्शाता है कि चीन भारत के इस कदम से विचलित हो उठा है, तभी उसने इन नये नियमों का विरोध किया है। यह जानना जरूरी है कि भारत में 30 में से 18 यूनिकॉर्न स्टार्ट अप में चीन की कंपनियों का निवेश है और चीन ने भारत में अब तक चार अरब डॉलर का निवेश केवल नवांकुर कंपनियों (स्टार्ट अप) में किया है। इसके अलावा, चीन का भारत के स्मार्ट फोन उद्योग में भी काफी निवेश है। अगर भारत ये कदम नहीं उठाता तो यह बिल्कुल संभव था कि चीन विश्व की आर्थिक मंदी का फायदा उठाते हुए भारत के घरेलू बाजार में अपनी मौजूदगी और बढ़ाने का प्रयास करता। (शेयर मंथन, 23 अप्रैल 2020)

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन पत्रिका

देश मंथन के आलेख

विश्व के प्रमुख सूचकांक

निवेश मंथन : ग्राहक बनें

शेयर मंथन पर तलाश करें।

Subscribe to Share Manthan

It's so easy to subscribe our daily FREE Hindi e-Magazine on stock market "Share Manthan"