कॉटन वायदा की कीमतों में छोटी अवधि में तब तक अस्थिरता रह सकती है जब तक कोई साफ तस्वीर उभर कर सामने नहीं आती है।
कॉटन वायदा (फरवरी) की कीमतें 18,900-19,450 रुपये के दायरे में सीमित दायरे में कारोबार कर सकती है। घरेलू बाजार में बंपर उत्पादन के बावजूद माँग काफी अच्छी है।
भारत से माह-दर-माह निर्यात बढ़ता जा रहा है और कपास की नयी फसल मुख्यतः बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है और कुछ चीन एवं इंडोनेशिया को भी किया जा रहा है। यह लगातार दूसरा महीना है जब कपास के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है।
चना वायदा (मार्च) की कीमतों के तेजी के रुझान के साथ 4,200 रुपये के स्तर पर पहुँचने की संभावना है। राज्य सरकारों द्वारा चना की कीमतों में गिरावट को रोकने के लिए केंद्र से अनुरोध के बाद नाफेड ने बाजार वर्ष 2019-20 के लिए 2018-19 (जुलाई-जून) की फसल के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,620 रुपये प्रति 100 किलोग्राम पर किसानों से चना खरीदना शुरु कर दिया है।
मेंथा तेल वायदा (फरवरी) की कीमतों में 1,140-1,120 रुपये तक गिरावट होने की संभावना है। वर्तमान परिदृश्य में, उपभोक्ता उद्योगों और निर्यातकों की ओर से माँग काफी कम है। आने वाले दिनों में, सर्दी के मौसम के अंत होने के दौरान मौसमी माँग के कम होने के कारण भी सेंटीमें कमजोर रह सकता है। प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में मेंथा की बुआई चल रही है और फसल की स्थिति के निर्धरण में मौसम की अहम भूमिका होगी। (शेयर मंथन, 13 फरवरी 2020)
भारत से माह-दर-माह निर्यात बढ़ता जा रहा है और कपास की नयी फसल मुख्यतः बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है और कुछ चीन एवं इंडोनेशिया को भी किया जा रहा है। यह लगातार दूसरा महीना है जब कपास के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है।
चना वायदा (मार्च) की कीमतों के तेजी के रुझान के साथ 4,200 रुपये के स्तर पर पहुँचने की संभावना है। राज्य सरकारों द्वारा चना की कीमतों में गिरावट को रोकने के लिए केंद्र से अनुरोध के बाद नाफेड ने बाजार वर्ष 2019-20 के लिए 2018-19 (जुलाई-जून) की फसल के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,620 रुपये प्रति 100 किलोग्राम पर किसानों से चना खरीदना शुरु कर दिया है।
मेंथा तेल वायदा (फरवरी) की कीमतों में 1,140-1,120 रुपये तक गिरावट होने की संभावना है। वर्तमान परिदृश्य में, उपभोक्ता उद्योगों और निर्यातकों की ओर से माँग काफी कम है। आने वाले दिनों में, सर्दी के मौसम के अंत होने के दौरान मौसमी माँग के कम होने के कारण भी सेंटीमें कमजोर रह सकता है। प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में मेंथा की बुआई चल रही है और फसल की स्थिति के निर्धरण में मौसम की अहम भूमिका होगी। (शेयर मंथन, 13 फरवरी 2020)
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