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आरबीआई (RBI) छोड़े अपनी कच्छप चाल, दरें और घटाये

राजीव रंजन झा : हाल में पूरे 9 महीनों के अंतराल के बाद जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी नीतिगत ब्याज दर को घटाया तो साथ में ऐसा कोई संकेत नहीं था कि अब नियमित रूप से इसमें कमी होती रहेगी।

जिस तरह आरबीआई ने पिछली नीतिगत समीक्षाओं में संकेत दिया था कि आगे दरें घट सकती हैं, वैसा स्पष्ट संकेत इस बार आरबीआई की टिप्पणियों में नहीं मिला था। लेकिन अब जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर एक दशक के सबसे निचले पायदान पर खड़ी नजर आ रही है, उससे यह जरूरी लगता है कि आरबीआई अगली समीक्षा में फिर से दरें घटाने का कदम उठाये। उद्योग संगठनों ने इस विकास दर पर अपनी प्रतिक्रिया में आरबीआई से यही गुहार लगायी है। दरें घटाने में अगर आरबीआई ने कच्छप-चाल रखी तो अर्थव्यवस्था के सुधरने में लंबा समय लग सकता है।
कल केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) ने 2012-13 के दौरान केवल 5% जीडीपी विकास दर रहने का जो अग्रिम अनुमान सामने रखा है, वह खुद आरबीआई की ओर से इसी नीतिगत समीक्षा के समय रखे गये 5.5% के ताजा अनुमान से भी कम है। भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर ज्यादा आशान्वित रहने वाले कुछ वैश्विक संगठनों के अनुमान भी सीएसओ के ताजा अनुमान से कुछ ऊपर ही रहे हैं। हालाँकि हाल में इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) ने साल 2012 में भारत की विकास दर केवल 4.5% रहने का ताजा अनुमान पेश किया और साल 2013 के लिए 5.9% का। आईएमएफ का आकलन कैलेंडर वर्ष के लिए है, लिहाजा इसके 2012 के अनुमान में 2012-13 के कारोबारी साल के शुरुआती नौ महीने शामिल हैं।
हालाँकि वित्त मंत्रालय सीएसओ के ताजा अनुमान से पैदा घबराहट को शांत करने के लिए तर्क दे रहा है कि यह केवल नवंबर तक के आँकड़ों के आधार पर है। मंत्रालय यह संदेश देना चाहता है कि नवंबर के बाद से अर्थव्यवस्था में सुधार के जो संकेत मिले हैं, उनका असर इन अनुमानों में नहीं झलक रहा है। साथ ही इसमें एक संदेश यह भी है कि सरकार ने हाल के महीनों में सुधारों को लेकर जो कदम उठाये हैं, उनकी वजह से दूसरी छमाही पहली छमाही से बेहतर रहनी चाहिए।
लेकिन सरकार केवल इस उम्मीद के पीछे छिप कर अपना बचाव करने के बदले अगर घरेलू माँग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाये तो बेहतर होगा। सरकार वैश्विक दशाओं को बदल नहीं सकती और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए उसके पास सीमित विकल्प ही हैं। लिहाजा अगर वह घरेलू माँग को प्रोत्साहित करने वाले कदम उठाये, तभी 2012-13 की दूसरी छमाही बेहतर रहने की उम्मीद हकीकत में बदल सकेगी। इसीलिए उद्योग जगत की नजरें अब इस बात पर टिक गयी हैं कि आने वाले बजट में उत्पादन क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जाता है।
जहाँ तक बाजार की प्रतिक्रिया का सवाल है, बाजार का पहले फीका चल रहा उत्साह कल जीडीपी के कमजोर आँकड़ों के चलते और घटा है। इन स्तरों पर सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि अगर यहाँ से बाजार नहीं सँभला तो बिकवाली का दबाव बढ़ने की आशंका रहेगी। निफ्टी 50 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (SMA) से थोड़ा नीचे आ गया है। साथ ही पिछले साल मई-जून से अब तक की जो चढ़ती पट्टी मध्यम अवधि के लिहाज से बाजार का सकारात्मक रुझान बना कर चल रही थी, उसकी निचली रेखा भी निफ्टी के मौजूदा स्तरों पर ही है। मोटे तौर पर 5900 से नीचे फिसलना निफ्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 08 फरवरी 2013)

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