इस समय चीजें स्थिर हैं। हमें उत्पादन क्षमता तैयार करने की जरूरत है, पर यह रातों-रात नहीं हो सकता।
मार्च 2015 से आरंभ होने वाली नीतियों से अपना असर दिखाने वाले लक्ष्यों को पाने में 3-4 साल का समय लगेगा। बाजार अभी अस्थिर हालत में मँडरा रहा है। बाजार में हमें दो कारक पीछे धकेल रहे हैं। पहला, अन्य उभरते बाजारों के सस्ता होने से अतिरिक्त निवेश हमारी तुलना में उनके पास जा रहा है। दूसरा, निजी क्षेत्र और भारत सरकार दोनों की तरफ से काफी नये इश्यू आ रहे हैं, जो भारत में आ रहा सारा अतिरिक्त निवेश सोख लेते हैं। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का गिरना घरेलू बाजार के लिए चिंताजनक है। इसके अलावा, भारत को लंबी अवधि की ऋण पूँजी आकर्षित करने की जरूरत है, जिसका इस्तेमाल बुनियादी ढाँचे में किया जा सकता है।
भारत में ऋण-पत्रों में निवेश के लिए अच्छे और पारदर्शी नियम बनाये जाने की आवश्यकता है। भारत को तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था माना जा रहा है और इसी के अनुरूप बाजार पूँजी भी बढ़ेगी। वहीं, 1,000 अरब डॉलर की बाजार पूँजी होने की वजह से माना जा रहा है कि हमारे बाजार की गहराई बढ़ चुकी है और इसीलिए यह ज्यादा इक्विटी निवेश आकर्षित करने में सक्षम है। पशुपति आडवाणी, सीईओ, ग्लोबल फोरे (Pahupati Advani, CEO, Global Fore)
(शेयर मंथन, 09 जनवरी 2015)