अनुज पुरी, चेयरमैन, एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स
किसी भी आम चुनाव के दौरान जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) क्षेत्र से जुड़े लोग उस चुनाव से रियल एस्टेट बाजार पर होने वाले प्रभावों के बारे में काफी अनुमान लगाते हैं।
परंपरागत रूप से चुनावों की घोषणा से लेकर नतीजों के दिन तक की अवधि पूरे रियल एस्टेट बाजार के लिए सावधानी और हिचक की अवधि मानी जाती है।
इस प्रतीक्षा अवधि में निवेशक आम तौर पर बाजार में लेन-देन या सौदे करने से बचते हैं। वहीं खरीदार भी प्रतीक्षा करते हुए नजर रखने वाला रवैया अपनाते हैं। इसके पीछे अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जैसे यह कयास कि नव-निर्वाचित या फिर से चुनी जाने वाली सरकार मकान खरीदने वालों को अधिक प्रोत्साहनों की पेशकश कर सकती है।
इस अवधि में डेवलपर नयी परियोजनाएँ शुरू करने के बजाय समझदारी से अपने अनबिके मकानों को बेचने पर ध्यान देना पसंद करते हैं। ऐसे में आम चुनावों के करीब का समय मकान खरीदने वालों के लिए निश्चित रूप से अधिक अनुकूल होता है। खरीदार ऐसे समय में डेवलपरों के साथ ज्यादा मोल-भाव कर सकते हैं, क्योंकि डेवलपरों को अधिक नकदी के लिए अपने स्टॉक को बेचने की जरूरत होती है। कुल मिला कर यह एक ऐसी अवधि है जब सभी हितधारक अंतिम परिणामों की बैचेनी से प्रतीक्षा करते हैं।
यह कोई रहस्य नहीं है कि अतीत में राजनीतिक दलों की ओर से रियल एस्टेट में लगाया गया पैसा चुनाव अभियानों में इस्तेमाल के लिए इस क्षेत्र से निकाला गया। इसी कारण रियल एस्टेट बाजार अभी गंभीर नकदी संकट से गुजर रहा है। हालाँकि नये कानूनों में राजनीतिक दलों द्वारा अपने अभियानों के लिए दान के रूप में स्वीकार की जा सकने वाले राशियों की ऊपरी सीमा तय हुई है। मगर इससे पैसे निकालने के सभी संभावित मार्ग बंद नहीं होते हैं। बहरहाल, चुनाव की यह अवधि पूरे रियल एस्टेट
बाजार के लिए तनावपूर्ण साबित हो सकती है।
निश्चित रूप से यह देखने लायक बात होगी कि भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र में सुधार के लिए वर्तमान सरकार ने जो काम शुरू किये हैं, उन्हें पूरा करने के लिए वह सत्ता में बनी रहेगी, या फिर एक नव-निर्वाचित सरकार परिवर्तन का झंडा लेकर उसे अगले दौर में ले जायेगी।
आम चुनावों के बाद जो समग्र व्यापक आर्थिक माहौल बनेगा, वह 2019 और उसके बाद भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र के भाग्य का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इस क्षेत्र के स्वस्थ रहने और संपूर्ण विकास के लिए केंद्र में एक स्थिर सरकार का आना आवश्यक है। साथ ही विकास के मौजूदा संवेग को बरकरार रखना भी जरूरी है, इसमें धीमापन नहीं आना चाहिए।
एनारॉक के आँकड़ों के मुताबिक पिछले आम चुनाव के वर्ष 2014 में देश के मुख्य 7 शहरों में सर्वाधिक नयी इकाइयाँ बाजार में आयीं और खपत भी सर्वाधिक रही। वर्ष 2014 में करीब 5.45 लाख नयी इकाइयाँ बाजार में प्रस्तुत की गयीं, जबकि करीब 3.43 लाख इकाइयों की बिक्री दर्ज की गयी। उससे पिछले वर्ष यानी 2013 में कहीं कम, करीब 4.6 लाख इकाइयाँ बाजार में उतारी गयीं और बिक्री भी 2014 से नीची थी। इससे दिखता है कि स्पष्ट बहुमत के साथ नयी सरकार के सत्ता में आने से रियल एस्टेट क्षेत्र में उम्मीदें बढ़ीं और धारणा में सुधार होने के चलते बिक्री और नयी परियोजनाएँ शुरू होने की रफ्तार भी बढ़ी।
हालाँकि इसके बाद उद्योग को झटके देने वाली नीतियों के कारण साल-दर-साल आधार पर नयी परियोजनाओं और बिक्री में गिरावट देखने को मिली। वर्तमान सरकार द्वारा लायी गयी हर नीति से रियल एस्टेट में अपनी ही तरह की हलचलें पैदा हुईं। रियल एस्टेट क्षेत्र इन नीतियों के कारण उपजे विभ्रम से अभी पूरी तरह उबर नहीं पाया है।
इस तरह से सत्ता में स्थिर सरकार होने के बावजूद सुधारवादी परिवर्तनों से छोटी अवधि में रियल एस्टेट को कई झटके लगे, हालाँकि ये परिवर्तन निस्संदेह लंबी अवधि में अनुकूल परिणाम देंगे। मगर उन परिवर्तनों के दीर्घकालिक फायदे वर्तमान या अगली सरकार द्वारा उन पर अमल में निरंतरता बनाये रखे जाने पर ही मिल सकेंगे। (शेयर मंथन, 23 अप्रैल 2019)