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ट्रंप की कभी हाँ-कभी ना में लखटकिया बनने से पहले फिसला सोना, मगर तेजी की उम्मीद बरकरार

सोना 7 घोड़ों के रथ पर सवार बढ़े जा रहा था और ये रफ्तार अप्रैल में और भी बढ़ गई। 2025 की शुरुआत से लेकर अब तक सोने की कीमतों में 900 डॉलर की तेजी आ चुकी है। वहीं, इसमें से 500 डॉलर तो सिर्फ अप्रैल में बढ़े हैं। जिस रफ्तार से सोने के दाम चढ़ रहे थे बाजार को लग रहा था कि पलक झपकते ही 1 लाख रुपये के आँकड़े को भी छू लेगा।

लेकिन भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था, ऐसा हो न पाया। 1 लाख रुपये से महज कुछ सौ रुपये दूर से सोने की कीमतों ने यू-टर्न ले लिया। दाम गिरने लगे। हालाँकि बाजार में अब भी लोग मान रहे हैं कि ये गिरावट तो सिर्फ झांकी है, असली तेजी आनी तो अभी बाकी है। लेकिन तेजी आए उससे पहले ये जान लेना जरूरी है कि सोना गिरा क्यों? तो सोने को चढ़ाने वाले भी ट्रंप थे और गिराने वाले भी। कभी कुछ कहते तो सोना चढ़ जाता है, फिर कहते हैं कि नहीं नहीं लोगों ने गलत समझा, उनका वो इरादा नहीं था, तो सोना गिर जाता। इस बार भी ऐसा ही हुआ।

क्यों आई सोने में गिरावट?

पहले तो ट्रंप ने अमेरिकी फेड के प्रमुख जेरोम पॉवेल पर निशाना साधा। कहा कि आज जो अमेरिका के हालात हैं उसके लिए कोई और नहीं पॉवेल जिम्मेदार हैं। वो दरें घटा ही नहीं रहे हैं। फिर आगे कहा कि अगर दरें जल्द न घटीं तो अमेरिका मंदी की चपेट में आ जायेगा। ट्रंप ने ये भी आरोप लगाया कि पॉवेल ने अमेरिका के तत्कालीन पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए ब्याज दरों में कटौती की थी लेकिन वो उनके लिए नहीं कर रहे हैं। और भी काफी भला बुरा कहा। कहा कि अगर वो बोलेंगे तो पॉवेल को पद से हटना ही पड़ेगा। हालाँकि ये बात और है कि उनके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।

मगर ट्रंप यहीं नहीं रुके, कोर्ट पहुँच गये। बोले कि उन्हें फेड प्रमुख को हटाने का अधिकार मिले। अगर ये नहीं तो कम से कम मेंबर्स को हटाने का अधिकार तो मिलना ही चाहिए। बिने उसके काम नहीं चलेगा। कोर्ट ने इनकार कर दिया। बोला कि ऐसा संभव ही नहीं हैं। कोई प्रावधान ही नहीं है तो अधिकार कैसे मिले। फिर क्या था बाजार में इस बात को लेकर डर फैल गया कि ट्रंप पॉवेल को हटाने पर आमादा हैं और उन्हें हटा कर ही मानेंगे। डॉलर भी गोते खाने लगा। 3 सालों के निचले स्तरों पर पहुँच गया। सोना इस सब का सहारा लेकर रॉकेट बन गया। रफ्तार इतनी तेज की थी लगा 1 लाख रुपये के पार ही निकल जायेगा।

लेकिन अभी एक ही दिन बीता था कि ट्रंप मुस्कुराते हुए नजर आये। पॉवेल पर उन्होंने जो भी कुछ बोला उससे सिरे से पल्ला झाड़ लिया। कहा उनका पॉवेल को हटाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कभी ऐसा कहा ही नहीं। वो भला ऐसा क्यों करने लगे। सब मीडिया की देन है। उसी ने उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर लोगों के सामने पेश किया, जिससे लोगों को लगने लगा कि वो पॉवेल को हटाने चाहते हैं। जबकि ऐसा कुछ है ही नहीं। वो तो बस इतना चाहते हैं कि फेड ब्याज दरों में कटौती करे, जो जरूरी भी है, और कुछ नहीं।

ट्रंप के इस बयान ने सोने की तेजी को तो रोक दिया लेकिन उसकी रफ्तार को धीमा करने वाले उनके ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट थे। बेसेंट के चीन पर दिये बयान ने बाजार को राहत की साँस दी जिसने सोने की लगाम को खींचने का काम किया। बेसेंट बोले चीन के साथ जो अभी टैरिफ विवाद चल रहा है वो ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रहेगा। ऐसा उन्हें लगता है। आगे कहा कि चीन के साथ ये जारी विवाद जल्द सुलझ जाएगा। हालाँकि अभी दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद है जल्द शुरू हो ही जायेगी। ट्रंप भी मान चुके हैं कि चीन पर टैरिफ की दर कुछ ज्यादा है जो ज्यादा दिनों तक टिकेगी नहीं।

4000-4500 डॉलर का होगा सोना?

ये तो बात रही सोने की तेजी और फिर गिरावट की। लेकिन बाजार में दिग्गज मान रहे हैं कि भले ही अभी गिरावट आई है, लेकिन आगे सोने का भविष्य सुनहरा है। जेपी मॉर्गेन और गोल्डमैन सैक्स दोनों आगे सोने का उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। जेपी मॉर्गेन को उम्मीद है कि 2025 के अंत तक सोने का औसत भाव 3675 डॉलर प्रति औंस रह सकता है। वहीं, मजबूत माँग और ग्लोबल सेंट्रल बैंकों की खरीद से सोना जल्द ही 4000 डॉलर तक भी पहुँच सकता है। वहीं, गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि 2025 में सोना 3700 डॉलर प्रति औंस तक पहुँच सकता है और अगले साल यानी 2026 तक 4500 डॉलर का भी हो जायेगा।

क्यों 4000-4500 डॉलर का होगा सोना?

लेकिन सवाल ये है कि आखिर इन एजेंसियों को ऐसा क्या दिख रहा है जो वो सोने को लेकर इतने बुलिश हैं। चलिए समझते हैं। जेपी मॉर्गन के मुताबिक सोने की मजबूत माँग ही उसकी तेजी का सबसे बड़ा कारण है। अनिश्चितताओं के चलते वैश्विक केंद्रीय बैंक जम कर सोना खरीद रह हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल हर तिमाही ये खरीद 710 टन की हो सकती है। आपको अगर ये आँकड़ा कम लग रहा है तो बता दें कि भारत में सालाना 700-800 टन सोने की खपत होती है। यानी जितना सोना भारत पूरे साल में खरीदता है उतना सोना ग्लोबल सेंट्रल बैंक मिलकर एक तिमाही में ही खरीद सकते हैं। इसके अलावा सोने में लोगों का निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। सोने को आसमान पर चढ़ाने के पीछे ये भी एक बड़ा कारण है।

हालाँकि जेपी मॉर्गन ये भी आशंका जता रहा है कि अगर अमेरिका में महँगाई घटी, सेंट्रल बैंकों की खरीद घटी, टैरिफ वॉर खत्म हुआ और न हुआ तो कम से कम ठंडा पड़ा तो सोने की कीमतों में गिरावट आ सकती है।

(शेयर मंथन, 25 अप्रैल 2025)

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