इस साल की शुरुआत में भारी गिरावट ने अपना चेहरा दिखा दिया। विभिन्न घरेलू और वैश्विक चिंताओं के चलते शेयर बाजार ने मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मिली बढ़त का एक बड़ा हिस्सा खो दिया और सूचकांक नीचे आ गये।
शेयर बाजार पर दो साल तक भरोसा करने के बाद खुदरा निवेशक भी शुद्ध बिकवाल बन गये। उन्होंने मार्च 2016 में घरेलू म्यूचुअल फंडों से 1,370 करोड़ रुपये निकाल लिये।
इस निराशा के बीच बाजार के प्रमुख सूचकांकों ने वापसी की है। निफ्टी की लगभग 1000 अंकों की मजबूत वापसी का श्रेय वैश्विक स्तर पर जोखिम लेने का रुझान बढ़ने से विदेशी निवेशकों की खरीदारी शुरू होने को दिया जा सकता है। अमेरिका से ले कर यूरोप और जापान तक के केंद्रीय बैंकों ने विकसित क्षेत्रों की धीमी अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए पूँजी प्रवाह जारी रखने की अपनी प्रतिबद्धता के जरिये कुछ सुकून प्रदान किया है।
घरेलू खबरों की धारा भी सकारात्मक हो गयी है। सरकार ने राजकोषीय मजबूती के मार्ग पर दृढ़ रह कर बाजार की उम्मीदों को संभालने की दिशा में अच्छा काम किया है। साथ ही सरकार ने सड़क, रेल और जलमार्ग के साथ-साथ ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के निर्माण में निवेश बढ़ाते हुए इस साल आक्रामक पूँजीगत व्यय की तस्वीर प्रस्तुत की है। इस साल अच्छे मॉनसून का शुरुआती पूर्वानुमान भी लगातार दो साल से सूखा और इस दौरान चार फसलों की विफलता झेल रहे ग्रामीण क्षेत्र के लिए भगवान के उपहार की तरह है।
इसके बावजूद सब कुछ ठीक नहीं है। वैश्विक और घरेलू स्तर पर बरकरार कई चुनौतियाँ निकट भविष्य में किसी भी उल्लेखनीय बढ़त को कम कर सकती हैं।
वैश्विक तौर पर स्थिति डाँवाडोल बनी हुई है। ब्रिटेन जल्द ही यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के लिए जनमत संग्रह पर मतदान करेगा। यह काफी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि ब्रिटेन के निकलने से यूरोप में मौद्रिक एकता स्थापित करने का प्रयोग विफल हो सकता है। इससे कमजोर यूरोपीय देशों के सामने जोखिम बढ़ेगा।
घरेलू स्तर पर संसद में जारी गतिरोध के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्च विकास दर के मार्ग पर ले जाने वाले महत्वपूर्ण सुधारों पर प्रगति धीमी बनी रहेगी। और आखिरी लेकिन महत्वपूर्ण बात, शेयर बाजार तो अंततः कंपनियों की आय के गुलाम ही होते हैं, और कंपनियों की आय पिछले दो सालों से उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। अब उम्मीद है कि इस वित्त वर्ष में इनकी आय में सुधार होगा। इसकी संभावना दिख तो रही है, लेकिन शायद ऐसा बाद के समय में हो।
अधिकांश विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि बेहतर माँग (अच्छे मानसून और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत वेतन वृद्धि) के कारण आखिरकार 2016-17 में आय वृद्धि दो अंकों में संभव हो सकेगी। साथ ही पिछले दो वर्षों में धीमी बढ़त के चलते पिछले साल के आँकड़े नीचे होने (लो बेस) से भी इस साल वृद्धि दर अच्छी दिखेगी। हमारा विश्लेषण दिखाता है कि 2016-17 में सेंसेक्स आय में वृद्धि दर 12-14% रह सकती है। हालाँकि आय वृद्धि दर में सुधार धीरे-धीरे होगा जो 2016-17 की दूसरी छमाही में ज्यादा स्पष्ट रूप से दिख सकेगा।
इन परिस्थितियों में हमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय शेयर बाजार कई वर्षों की तेजी के मार्ग पर है। ऊपरी स्तरों पर जाने के रास्ते में आने वाली अड़चनें बाजार के लिए महज दम भरने और ठहराव (कंसोलिडेशन) का अवसर होंगी। निवेशकों के लिए ऐसे ठहराव लंबी अवधि का निवेश करने के अवसर होंगे, क्योंकि इनसे न केवल अच्छे शेयरों के मूल्यांकन में आया अतिरेक खत्म होगा बल्कि सही शेयर चुनने के लिए सावधानीपूर्वक अध्ययन करने का पर्याप्त समय भी मिल सकेगा। - गौरव दुआ, रिसर्च प्रमुख, शेयरखान (Gaurav Dua, Research Head, Sharekhan)
(शेयर मंथन, 26 अप्रैल 2016)